जब भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम के बाद अपनी अपनी जीत हार के दावे और नुकसान के आकलन कर रहे थे और वाशिंगटन में राष्ट्रपति ट्रंप बार बार इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रहे थे, ठीक उसी समय ब्रुसेल्स में यूरोप और ब्रिटेन इतिहास के एक नये अध्याय पर हस्ताक्षर कर रहे थे। एक ऐसा इतिहास जो खामोशी से एक ध्रुवीय विश्व को बहुध्रुवीय दुनिया की तरफ ले जा रहा था। 19 मई 2025 को ब्रुसेल्स की सर्द हवाओं में यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने जो रणनीतिक समझौता किया, उसमें सुरक्षा, रक्षा, यूक्रेन समर्थन, प्रवास, जलवायु, शिक्षा और व्यापार तो शामिल था ही, इसमें अमेरिकी छत्रछाया से इतर एक नया यूरोप बनाने की दृढ़ इच्छा शक्ति की झलक भी थी।
यह समझौता महीनों की उस गोपनीय बातचीत का नतीजा था, जो जनवरी 2025 में राष्ट्रपति ट्रंप की दी हुई अपमानजनक उपेक्षा और अवहेलना से शुरू हुई थी। यह समझौता ब्रेक्सिट के पुराने जख्मों पर मरहम नहीं, बल्कि यूरोप की उस जिद का प्रतीक है जो अब अमेरिका के तलाकनामे के बाद अपनी नई राह तलाश रही है।
इस साल की शुरुआत में जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने ट्रेडमार्क सुनहरे बालों को हिलाते हुए व्हाइट हाउस में दोबारा क़दम रखा, तो शायद उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उनका तमाशा विश्व मंच पर एक नयी पटकथा लिख देगा। एक ऐसी पटकथा, जिसमें दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश होकर भी अमेरिका खुद जहां अकेला पड़ता जायेगा, वहीं इस इस राह पर नये कदमों से चलते यूरोप को रूस और चीन से अलग भारत की याद आएगी। उस भारत की जिसने नेहरु के जमाने से ही गुट निरपेक्षता की राह पकड़ी थी। आज यूरोप को लग रहा है कि नेहरु के रास्ते ठीक थे, उसने अमेरिका पर निर्भर रहकर कई दशक गंवा दिये।
ट्रम्प का तमाशा: ‘तलाक’ की स्क्रिप्ट
जब ट्रम्प ने अपने ट्रेडमार्क सुनहरे बालों को हिलाते हुए व्हाइट हाउस में दोबारा कदम रखा, तो शायद उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि उनका तमाशा विश्व मंच पर एक नई पटकथा लिख देगा। 20 जनवरी 2025 को, वाशिंगटन डीसी में ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ ली। इसके बाद, 15 मार्च को पेन्सिलवेनिया की एक रैली में उन्होंने नाटो को “बेकार का बोझ” ठहराया और यूरोप को “अमेरिकी खजाने पर पलने वाला मेहमान” बताया।
ट्रंप के ये बयान कोई तात्कालिक तुनकमिजाजी नहीं थे। राष्ट्रपति के रूप में उनका पहला कार्यकाल (2017–2021) भी इसी तरह के तानों से भरा था, जब उन्होंने नाटो को “पुराना ढाँचा” कहा, जर्मनी को “रूस का गुलाम” बताया, और ईयू को अमेरिका का “लाभ उठाने वाला” करार दिया। उस वक़्त तो यूरोप ने सदमे में खामोशी से आहें भरीं, जैसे कोई पुराना मित्र नाराज़ दोस्त की बातें झेल लेता है। मगर अब, 2025 में, इससे मर्माहत और तिलमिलाये यूरोप की आँखों में रोष है, मुट्ठियाँ बँधी हैं, और इरादे पक्के। ट्रम्प का तलाकनामा यूरोप के लिए अपमान नहीं, बल्कि एक नई सुबह का न्योता बन गया है।
यूरोप की कलम: व्यंग्य में विद्रोह
जब ट्रम्प के तानों ने यूरोप के गौरव को ललकारा, तो यूरोप की कलम ने विद्रोह की स्याही से जवाब लिखा। 5 मई 2025 को, फ्रांस के अखबार ले मॉन्ड ने अपने संपादकीय में लिखा, “ट्रम्प ने साफ कर दिया कि यूरोप उनके लिए एक पुराना कोट है, जिसे वे कबाड़खाने में फेंकने को तैयार हैं।” 20 अप्रैल को जर्मनी के डेर स्पीगल ने तंज कसा, “ट्रम्प हमें इसलिए नीचा दिखाते हैं, क्योंकि वे शक्ति को केवल बम-बारूद में देखते हैं। मगर यूरोप की ताकत उसकी कूटनीति, उसकी स्थिरता, उसका धैर्य है।”
15 अप्रैल को ब्रुसेल्स में यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स (ईसीएफआर) ने अपने पेपर नो लॉन्गर पार्टनर्स: ए पोस्ट-अटलांटिक यूरोप में ऐलान किया कि “ट्रान्सअटलांटिक गठबंधन अब इतिहास की बात है। स्वायत्तता अब सपना नहीं, बल्कि ज़रूरत है।” तथ्य यह है कि यूरोप और अमेरिका कभी विश्व मंच के दो जिगरी दोस्त थे। 1949 में दोनों ने मिलकर नाटो की नींव रखी, मार्शल प्लान (1948–1952) के ज़रिए यूरोप का पुनर्निर्माण किया। 11 सितंबर 2001 को, 9/11 हमलों के बाद नाटो ने पहली बार आर्टिकल 5 लागू किया, और यूरोप के सैनिक अफगानिस्तान में अमेरिका के साथ लड़े। 2008 के आर्थिक संकट में, यूरोपीय बैंकों ने अमेरिकी फेडरल रिजर्व के साथ मिलकर वैश्विक बाजारों को संभाला। मगर ट्रम्प के लिए ये सब पुरानी कहानियाँ हैं, जिन्हें वे लेन-देन के बहीखाते में बदलना चाहते हैं। ट्रम्प माने डील।
ईयू-यूके समझौता: नई राह, नया साथी
जब ट्रम्प के तलाकनामे ने यूरोप को झकझोरा, तो ब्रुसेल्स और लंदन ने एक नया गीत गाया। 19 मई 2025 को, ब्रुसेल्स में यूरोपीय आयोग ने जिस ईयू-यूके रणनीतिक समझौते की जो घोषणा की, वो जनवरी 2025 से शुरू हुई उस गोपनीय बातचीत का नतीजा था, जो ट्रम्प के अपमानजनक बयानों से प्रेरित थी। यह ब्रेक्सिट की कड़वाहट को भुलाने का प्रयास भर नहीं, बल्कि एक नया रिश्ता है— जैसे दो पुराने दोस्त नाराज़गी भुलाकर बराबरी के साथ गले मिलने को पहले से तैयार हों।
10 सितंबर 2024 को, विदेश सचिव डेविड लैमी ने ईयू फॉरेन अफेयर्स काउंसिल में भाग लिया। 15 अक्टूबर 2024 को, लंदन और बर्लिन ने ट्रिनिटी हाउस समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो एक ऐतिहासिक रक्षा सहयोग था। 1 नवंबर 2024 को, पोलैंड के साथ “विशेष साझेदारी” की योजना शुरू हुई। ट्रम्प के तानों से उपजे ये सारे कदम यूरोप को स्वायत्तता की ओर ले जाते हैं।
नाटो का संकट: ट्रम्प का डंडा, यूरोप का जवाब
ट्रम्प के तानों ने नाटो को हिलाकर रख दिया, जैसे कोई पुराना मकान हवा के झोंके से काँप उठे। 15 मार्च 2025 को पेन्सिलवेनिया में ट्रम्प ने नाटो से निकलने की धमकी दी और 5% जीडीपी रक्षा खर्च की माँग की। नाटो के 32 सदस्यों में से 23 अब 2% जीडीपी लक्ष्य को पूरा करते हैं, लेकिन 5% का लक्ष्य दूर की कौड़ी है। 10 जून 2025 को द हेग में होने वाला नाटो शिखर सम्मेलन इस गठबंधन की एकजुटता की कसौटी होगा। नए महासचिव मार्क रुटे, जो 1 अक्टूबर 2024 को नियुक्त हुए, यूरोपीय खर्च बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं, ताकि अमेरिका का साथ बना रहे। लेकिन कुल मिलाकर अमेरिकी झटके के बाद अब ईयू का स्वाभिमान जोर मार रहा है।
मगर यूरोप अब किसी के भरोसे नहीं बैठा। 15 जनवरी 2024 को, ब्रुसेल्स में ईयू ने यूरोपीय रक्षा संघ की योजना को गति दी, जिसमें €7.5 बिलियन का रक्षा कोष और संयुक्त कमांड सेंटर शामिल हैं। 15 मार्च 2025 को, यूरोपीय रक्षा औद्योगिक रणनीति की घोषणा हुई, और एक रक्षा आयुक्त नियुक्त किया गया। इन क़दमों ने ईयू को एक स्वतंत्र खिलाड़ी बनाया है। फ्रांस और पोलैंड ने रक्षा बांड प्रस्ताव रखा, हालाँकि जर्मनी और नीदरलैंड्स ने इसका विरोध किया। 1 फरवरी 2025 को, ब्रिटेन ने पेस्को की सैन्य गतिशीलता परियोजना में पुन: प्रवेश किया। यूरोप का रक्षा उद्योग अभी बिखरा हुआ है, और अमेरिकी हथियारों पर निर्भरता एक चुनौती है। मगर, जैसा ईसीएफ़आर कहता है, “द्विपक्षीय समझौतों का जाल” यूरोप की सामूहिक शक्ति को बढ़ा सकता है। पर उसकी कोशिशें यूरोप की नई उड़ान का परिचय दे रही हैं। ट्रम्प के तलाक ने यूरोप को न केवल जगा दिया, बल्कि उसे अपने पंखों पर उड़ने की हिम्मत भी दे दी है।
इंडिया की याद
जब ट्रम्प ने तलाक का नोटिस थमाया, तो यूरोप ने नए दोस्त की तलाश में भारत की ओर देखा। 10 फरवरी 2025 को, नई दिल्ली में ईयू-भारत शिखर सम्मेलन हुआ, जिसमें ईयू अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन शामिल हुईं। इस सम्मेलन ने 2021 के भारत-ईयू रणनीतिक रोडमैप को विस्तार देने का फैसला किया। व्यापार वार्ताएँ दिसंबर 2025 तक मुक्त व्यापार समझौते की ओर बढ़ रही हैं।
5 मई 2025 को, ब्रूगल थिंक टैंक ने अपने विश्लेषण में कहा, “ट्रम्प का पीछे हटना जोखिम के साथ अवसर लाता है।” भारत और ईयू के बीच व्यापार 2024 में €120 बिलियन तक पहुँचा, और 2025 में यह और बढ़ने की उम्मीद है। भारत की जीडीपी वृद्धि 2024 में ठीक रही, और उसका रक्षा निर्यात 2025 में $5 बिलियन तक पहुँचने की राह पर है। टाटा और इन्फोसिस जैसी कंपनियाँ यूरोप में डेटा सेंटर और एआई परियोजनाओं में निवेश कर रही हैं। रक्षा में, भारत का तेजस लड़ाकू विमान और ब्रह्मोस मिसाइल यूरोप के रडार पर हैं। ईयू के साथ भारत की दोस्ती वैश्विक शक्ति संतुलन को नया आकार दे सकती है।
विश्व मंच का नया रंगमंच
15 जनवरी 2025 को, ब्रुसेल्स में ईयू ने रूस से गैस आयात को 2027 तक खत्म करने की योजना की घोषणा की। ईयू की जीडीपी ($18.8 ट्रिलियन, 2024) अमेरिका के बराबर है, इसकी आबादी (450 मिलियन) उससे अधिक है, और इसकी नियामक शक्ति (जैसे जीडीपीआर) वैश्विक बाजारों को आकार देती है। एआई और हरित प्रौद्योगिकी में ईयू के मानक अब वैश्विक बेंचमार्क हैं।
रूस, पश्चिम से अलग-थलग, नाटो की दरारों और वाशिंगटन-ब्रुसेल्स के अविश्वास से मजे ले रहा है। मगर भारत? वह विश्व मंच का नया नायक बनने की स्थिति में है। भारत का व्यापार, तकनीक और रक्षा में बढ़ता प्रभाव उसे यूरोप का पसंदीदा साझेदार बनाता है।
अमेरिकी प्रभुत्व का अंत?
20 मार्च 2025 को, स्ट्रासबर्ग में उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा, “यूरोप अब अमेरिकी चुनावों का मोहरा नहीं रहेगा। हम संप्रभु हैं।” यह भाषण यूरोप की नई हिम्मत का प्रतीक था। यह संप्रभुता ट्रम्प के तमाशे की देन है। नए गठबंधन बन रहे हैं, और ग्लोबल साउथ—भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया—इसे उत्सुकता से देख रहा है। 10 मई 2025 को, पूर्व इतालवी प्रधानमंत्री एनरिको लेट्टा ने कहा, “ट्रम्प ने यूरोप को एकजुट किया—दोस्ती से नहीं, आग से।”
क्या भारत तैयार है?
ट्रम्प के तानों ने यूरोप के आत्माभिमान को झकझोरा है, उसके आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को जगा दिया है। इसीलिए ईयू-यूके समझौता एक बड़े बदलाव का प्रतीक है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का वर्ल्ड ऑर्डर, जो अमेरिका के इर्द-गिर्द घूमता था, अब साफ़ साफ़ बदल रहा है। यह समझौता कोई रीसेट नहीं, बल्कि एक हिसाब है। ट्रम्प के फैसलों ने यूरोप को करारा झटका और सदियों का सबक दिया है। इसीलिए उसे इंडिया की याद आ रही है। मगर सवाल यह है: क्या भारत इस नए विश्व व्यवस्था का नायक बनने को तैयार है? इसके लिए भारत को एक गंभीर, एकजुट, मजबूत और दूरदर्शी राष्ट्र के रूप में अपनी भूमिका निभानी होगी। लेकिन इससे भी जरूरी है कि हम किसी देश के पिछलग्गू ना बनें। ट्रंप की दोस्ती ने भारत को कहीं का नहीं छोड़ा है। बेहतर हो कि हम गुट निरपेक्ष ही रहें।
कूटनीति की सफलता बेहतर और गंभीर बातचीत में होती है, न कि जोर-जबरदस्ती और ना ही लप्पी झप्पी में। भारत पाक के बीच ताजा झड़प में हमने देख लिया कि कौन हमारे साथ खड़ा है। हमारे साथ कौन नहीं खड़ा हुआ, इसके लिए हमें आत्मावलोकन करना होगा। ये कहना ठीक है कि हमें दोस्त चाहिए, लेकिन ये कहना कि हमें उपदेश देने वाले नहीं चाहिए, राजनय की भाषा नहीं हो सकती। बेहतर डिप्लोमेसी खामोशी और मधुरता से होती है। कहते हैं कि एक अच्छा कूटनीतिज्ञ वह होता है जो तब भी एक दुश्मन का मित्र बना रह सकता है जब वह उसे नष्ट करने की योजना बना रहा हो। विंस्टन चर्चिल ने कहा था: “कूटनीति लोगों को नरक में जाने के लिए इस तरह से कहने की कला है, कि वे रास्ते पूछें।”