अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। ट्रम्प ने स्टील और एल्यूमीनियम पर आयात शुल्क (टैरिफ) को दोगुना करते हुए 50% कर दिया है। इस फैसले से भारत सहित कई देशों की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
भारत हर साल लगभग 39,000 करोड़ रुपये मूल्य का स्टील और एल्यूमीनियम अमेरिका को निर्यात करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले के बाद भारतीय निर्यातकों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है — “अब भारत यह स्टील और एल्यूमीनियम किसे बेचेगा?”
अमेरिकी बाजार में टैरिफ बढ़ने का असर वहां की कीमतों पर भी दिखेगा। अनुमान है कि अब अमेरिका में स्टील की कीमतें 1 लाख रुपये प्रति टन तक पहुंच सकती हैं, जिससे वहां के निर्माण और ऑटोमोबाइल सेक्टर में लागत भारी बढ़ेगी।
दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय व्यापार विश्लेषक डॉ. संदीप मेहरा ने कहा, “भारत जैसे देशों के लिए अमेरिकी बाजार अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि अमेरिका में मांग कम होती है या टैरिफ के कारण प्रतिस्पर्धा घटती है, तो भारत को अपने उत्पादों के लिए नए बाजार ढूंढने होंगे।”
वाणिज्य मंत्रालय ने इस मुद्दे पर अब तक आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सूत्रों के अनुसार भारत इस निर्णय के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अपनी आपत्ति दर्ज करा सकता है।
ट्रम्प इससे पहले भी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत विदेशी आयात पर भारी शुल्क लगाकर घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने की कोशिश कर चुके हैं। उनके अनुसार यह फैसला अमेरिकी मजदूरों और कंपनियों के हित में है। हालांकि वैश्विक स्तर पर इस कदम को संरक्षणवाद (protectionism) के रूप में देखा जा रहा है।
अमेरिका का यह कदम वैश्विक व्यापार संतुलन को प्रभावित कर सकता है। भारत के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण दौर हो सकता है, जब उसे न केवल अपने मौजूदा व्यापारिक साझेदारों से फिर से बातचीत करनी होगी, बल्कि नए बाज़ारों की तलाश भी करनी पड़ेगी।