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    Home » बांग्लादेश के संविधान से अब धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद शब्द हटेगा?
    भारत

    बांग्लादेश के संविधान से अब धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद शब्द हटेगा?

    By January 16, 2025No Comments4 Mins Read
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    शेख हसीना के तख्तापलट के बाद क्या अब बांग्लादेश के इतिहास के साथ-साथ संविधान में भी बड़ा फेरबदल होगा कम से कम अंतरिम सरकार द्वारा गठित संविधान सुधार आयोग ने तो अपनी रिपोर्ट में यह साफ़ कर ही दिया है। आयोग ने अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस को अपनी रिपोर्ट सौंपी है जिसमें धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रवाद के राज्य सिद्धांतों को हटाने का प्रस्ताव दिया गया है। 

    बांग्लादेश के संविधान में 4 प्रमुख सिद्धांतों में से इन तीन सिद्धांतों को हटाने की सिफ़ारिश की गई है। अब सिर्फ़ एक सिद्धांत रह जाएगा, वह है लोकतंत्र। तो सवाल है कि ये बदलाव क्यों किए जा रहे हैं क्या बांग्लादेश में इन बदलावों के माध्यम से पूर्ववर्ती सरकार की सभी निशानियों को मिटाने की तैयारी है

    इसे समझने के लिए अंतरिम सरकार द्वारा लाए गए बदलाओं को जानना होगा। धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रवाद- ये तीन सिद्धांत देश के संविधान में राज्य नीति के मूलभूत सिद्धांतों के रूप में स्थापित चार सिद्धांतों में से हैं। 

    समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, आयोग के अध्यक्ष अली रियाज ने एक वीडियो बयान में कहा, ‘हम 1971 के मुक्ति संग्राम के महान आदर्शों और 2024 के जनांदोलन के दौरान लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने के लिए पाँच राज्य सिद्धांतों – समानता, मानवीय गरिमा, सामाजिक न्याय, बहुलवाद और लोकतंत्र – का प्रस्ताव कर रहे हैं।’

    आयोग ने अपने प्रस्ताव में संविधान की प्रस्तावना में चार नए सिद्धांतों के साथ-साथ पहले से मौजूद लोकतंत्र को बरकरार रखा है। मुख्य सलाहकार के प्रेस कार्यालय ने रियाज के हवाले से एक बयान जारी किया है, जिन्होंने कहा कि आयोग ने देश के लिए द्विसदनीय संसद शुरू करने और प्रधानमंत्री के कार्यकाल को दो कार्यकाल तक सीमित करने का भी सुझाव दिया है। आयोग ने एक द्विसदनीय संसद बनाने की सिफारिश की थी, जिसमें निचले सदन को नेशनल असेंबली और ऊपरी सदन को सीनेट नाम दिया गया है, जिसमें क्रमशः 105 और 400 सीटें हों।

    रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया कि दोनों सदनों को संसद के वर्तमान पाँच साल के कार्यकाल के बजाय चार साल करना चाहिए। इसने सुझाव दिया कि निचले सदन को बहुमत के प्रतिनिधित्व और ऊपरी सदन को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर बनाया जाना चाहिए।

    जुलाई-अगस्त में शेख हसीना की लगभग 16 साल की अवामी लीग सरकार को उखाड़ फेंकने वाले विद्रोह का नेतृत्व करने वाले भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के नेताओं ने संविधान को ‘मुजीबिस्ट’ चार्टर क़रार दिया है। उन्होंने यह बांग्लादेश के संस्थापक नेता और शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान के लिए इस्तेमाल किया। उन्होंने ‘मुजीबिस्ट 1972 संविधान’ को खत्म करने की मांग की है।

    इतिहास बदलने की भी कोशिश

    अंतरिम सरकार बनने के बाद बांग्लादेश में इतिहास में भी बड़े बदलाव किए जा रहे हैं। बांग्लादेश की पाठ्यपुस्तकों में अब यह लिखा होगा कि 1971 में देश की स्वतंत्रता की घोषणा ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान ने नहीं, बल्कि जियाउर रहमान ने की थी। नई पाठ्यपुस्तकों में मुजीब की ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि भी हटा दी गई है। पाठ्यपुस्तकों में इस बदलाव की यह ख़बर द डेली स्टार ने इसी महीने दी है। 

    पाठ्यपुस्तकों में ये बदलाव तब हो रहे हैं जब मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को पिछले साल अगस्त महीने में तख्तापलट कर हटा दिया गया है। अब वहाँ अंतरिम सरकार है।

    नेशनल करिकुलम एंड टेक्स्टबुक बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर ए के एम रेजुल हसन ने द डेली स्टार को बताया, “2025 के शैक्षणिक वर्ष की नई पाठ्यपुस्तकों में लिखा होगा कि ‘26 मार्च, 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की और 27 मार्च को उन्होंने बंगबंधु की ओर से स्वतंत्रता की एक और घोषणा की’।” 

    अब ये नये बदलाव तब किए जा रहे हैं जब पिछले साल अगस्त में आंदोलन के बाद हसीना को हटा दिया गया था। 5 अगस्त को हसीना दिल्ली भाग गईं। उसी दिन ढाका में मुजीब की एक प्रतिमा को ढहा दिया। प्रदर्शनकारियों ने मुजीब के निवास को भी आग लगा दी और तोड़फोड़ की। इस निवास को 2001 में हसीना ने स्मारक में बदल दिया था। इसी घर में 1975 के तख्तापलट में उन्हें और उनके परिवार के अधिकांश लोगों को मार दिया गया था।

    स्वतंत्र बांग्लादेश में पहले तख्तापलट में 1975 में उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों के साथ उनकी हत्या कर दी गई। उनकी हत्या के बाद जियाउर रहमान बड़े नेता के रूप में सामने आए। वह आगे बांग्लादेश के सैन्य प्रमुख से राष्ट्रपति बन गए। 1981 में एक और तख्तापलट के दौरान जियाउर की भी हत्या कर दी गई, लेकिन सत्ता में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने इस्लामी तत्वों पर शिकंजा कसना बंद कर दिया था और सबसे खास बात यह है कि 1978 में बांग्लादेश के संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’ को हटा दिया। हालाँकि बाद में जब मुजीब की पार्टी सत्ता में आई तो फिर से धर्मनिरपेक्षता शब्द को जोड़ दिया था।

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