बांग्लादेश में एक बार फिर सियासी उथल-पुथल तेज हो रही है। अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस ने गुरुवार को सलाहकार परिषद की बैठक में इस्तीफे की इच्छा जताई, जिससे देश में राजनीतिक अनिश्चितता और गहरा गई है। यूनुस ने मौजूदा परिस्थितियों में काम करने में असमर्थता जताई और कहा कि सभी राजनीतिक दलों का पूर्ण समर्थन न मिलने पर वह पद छोड़ सकते हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और सेना ने दिसंबर 2025 तक आम चुनाव कराने की मांग को तेज कर दिया है।
यूनुस पर सेना और बीएनपी का दबाव
बांग्लादेश की सेना के प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमां ने बुधवार को अंतरिम सरकार को चेतावनी दी थी कि दिसंबर 2025 तक चुनाव कराए जाएं, अन्यथा परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। सेना का कहना है कि यूनुस सरकार ने राखाइन कॉरिडोर जैसे एकतरफा फैसलों और सैन्य मामलों में हस्तक्षेप से देश की संप्रभुता को खतरे में डाला है। दूसरी ओर, बीएनपी ने गुरुवार को ढाका के नया पल्टन क्षेत्र में एक विशाल रैली का आयोजन किया, जिसमें हजारों समर्थकों ने हिस्सा लिया।
बीएनपी ने स्पष्ट रोडमैप के साथ जल्द चुनाव कराने और यूनुस सरकार के दो सलाहकारों, जो नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) से जुड़े हैं, के इस्तीफे की मांग की। बीएनपी के वरिष्ठ नेता खंदाकर मोशर्रफ हुसैन ने कहा, “चुनाव के लिए तत्काल रोडमैप की घोषणा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।”
छात्र आंदोलन और कट्टरवादी ताकतों का उभार
यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद सत्ता में लाया गया था, जब छात्रों के नेतृत्व में हुए जन-आंदोलन ने हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर किया था। हालांकि, अब वही छात्र समूह, विशेष रूप से नाहिद इस्लाम के नेतृत्व वाली नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) और इस्लामवादी संगठन जैसे जमात-ए-इस्लामी, यूनुस के समर्थन में सड़कों पर उतर रहे हैं। शुक्रवार की नमाज के बाद ढाका कैंट और बांग्लादेश सचिवालय की ओर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन की योजना है, जिससे हिंसा की आशंका बढ़ गई है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में गुरुवार रात ढाका में मशाल जुलूस देखे गए, जो इस अशांति का संकेत दे रहे हैं।
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी और टका के अवमूल्यन ने जनता की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हसीना के शासनकाल में दबाए गए कट्टरवादी संगठनों का प्रभाव अब बढ़ रहा है, जिससे सामाजिक तनाव भी गहरा रहा है। हाल ही में, कट्टरपंथी समूहों ने किशोर लड़कियों के फुटबॉल मैच को रोकने और ढाका में इस्लामी खिलाफत की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। यूनुस पर इन समूहों को नियंत्रित करने में नाकामी का आरोप लग रहा है।
शेख हसीना और भारत
शेख हसीना, जो भारत में निर्वासित हैं, ने यूनुस सरकार पर तीखा हमला बोला है, उन्हें “मॉबस्टर” करार देते हुए देश में “आतंकवादियों” को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। यूनुस ने भारत से हसीना की प्रत्यर्पण की मांग की थी, लेकिन भारत ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया। बीएनपी ने भारत से अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है, क्योंकि हसीना के पतन के बाद अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं।
यूनुस ने पहले कहा था कि व्यापक सुधारों, जैसे सटीक मतदाता सूची तैयार करने और संवैधानिक सुधारों के बाद ही चुनाव संभव हैं, जो 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत तक हो सकते हैं। हालांकि, बीएनपी और सेना की मांगों ने इस समयसीमा को चुनौती दी है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यूनुस का इस्तीफे का बयान एक रणनीति हो सकती है, ताकि छात्रों और इस्लामवादियों को सेना और बीएनपी के खिलाफ उकसाया जाए। ढाका में शुक्रवार को प्रस्तावित प्रदर्शनों से स्थिति और तनावपूर्ण हो सकती है।
बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता के मुहाने पर खड़ा है। यूनुस के संभावित इस्तीफे, सेना के कड़े रुख और बीएनपी की रैली ने देश में तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है। आने वाले दिन बांग्लादेश की दिशा तय करेंगे, जिसमें सुधारों, चुनावों और सामाजिक स्थिरता का सवाल अहम होगा।