भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में ग़ज़ा में तत्काल, बिना शर्त और स्थायी युद्धविराम की मांग वाले एक मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से दूरी बना ली है। यह निर्णय तब आया है, जब अभी छह महीने पहले, दिसंबर 2024 में, भारत ने ग़ज़ा में युद्धविराम की मांग वाले एक समान प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया था। यह कदम भारत की विदेश नीति में इजरायल के प्रति बदलते रुख को बता रहा है।
भारत के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत परवथानेनी हरीश ने मतदान के बाद अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, “भारत गाजा में बिगड़ती मानवीय स्थिति से गहराई से चिंतित है और नागरिकों की मौत की निंदा करता है। हालांकि, हमारा मानना है कि संघर्ष का समाधान केवल संवाद और कूटनीति के माध्यम से ही संभव है। हमारी सामूहिक कोशिश दोनों पक्षों को करीब लाने की होनी चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि बंधकों की रिहाई और युद्धविराम गाजा में मानवीय स्थिति को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारत के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत पी. हरीश ने मतदान के बाद अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, “भारत ग़ज़ा में बिगड़ती मानवीय स्थिति से गहराई से चिंतित है और नागरिकों की मौत की निंदा करता है। हालांकि, हमारा मानना है कि संघर्ष का समाधान केवल संवाद और कूटनीति के माध्यम से ही संभव है। हमारी सामूहिक कोशिश दोनों पक्षों को करीब लाने की होनी चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि बंधकों की रिहाई और युद्धविराम ग़ज़ा में मानवीय स्थिति को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
दिसंबर 2024 में, भारत ने यूएनजीए में ग़ज़ा में युद्धविराम की मांग वाले एक प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया था, जिसमें 158 देशों ने समर्थन किया था। उस समय भारत ने ग़ज़ा में मानवीय सहायता की तत्काल आवश्यकता और नागरिकों की सुरक्षा पर जोर दिया था। हालांकि, पिछले तीन वर्षों में भारत ने इज़राइल की आलोचना करने वाले चार प्रस्तावों पर मतदान से दूरी बनाई है, जिसमें अक्टूबर 2023 में युद्धविराम और 2023-24 में मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच से संबंधित प्रस्ताव शामिल हैं।
भारत का यह निर्णय दक्षिण एशियाई, ब्रिक्स, और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सभी देशों के रुख से अलग है, जिन्होंने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया। जी7 देशों में से केवल अमेरिका ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया, जबकि ब्रिटेन, कनाडा, और जापान जैसे देशों ने इसका समर्थन किया। भारत के इस कदम की विपक्षी दलों और कुछ विश्लेषकों ने आलोचना की है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह कदम भारत की ऐतिहासिक नीति से दूर हटना बताया है। एक यूजर ने एक्स पर लिखा, “55,000 से अधिक मौतों के बावजूद भारत ने इज़राइल की आक्रामकता के खिलाफ रुख नहीं अपनाया। यह नरसंहार विरोधी सिद्धांतों को छोड़ने जैसा है।”
भारत का यह निर्णय ऐसे समय में आया है, जब वह अगले सप्ताह फ्रांस और सऊदी अरब द्वारा आयोजित फिलिस्तीन पर एक सम्मेलन में भागीदारी पर विचार कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इजराइल के साथ रक्षा सहयोग, विशेष रूप से हाल के पाकिस्तान के साथ संघर्ष में इजराइली ड्रोनों और रक्षा प्रणालियों के उपयोग, और पश्चिम एशिया में स्थिरता के लिए कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
ग़ज़ा में 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के हमले और इसके बाद इज़राइल की सैन्य कार्रवाई से शुरू हुए युद्ध में अब तक 55,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि ग़ज़ा की 23 लाख आबादी गंभीर भूख संकट का सामना कर रही है। हाल के महीनों में, जनवरी 2025 में एक अस्थायी युद्धविराम लागू हुआ था, लेकिन मार्च 2025 में इजरायल ने फिर से हवाई हमले शुरू कर दिए, जिससे युद्धविराम टूट गया।
भारत का यूएनजीए में युद्धविराम प्रस्ताव पर मतदान से दूरी बनाना उसकी जटिल कूटनीतिक स्थिति को बता रहा है। एक तरफ तो वो मानवीय संकट पर चिंता जताता रहता है, लेकिन इज़राइल के साथ रणनीतिक साझेदारी और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देता है। यह कदम भारत की ग्लोबल मंच पर भूमिका और क्षेत्रीय शांति के लिए उसकी प्रतिबद्धता पर बहस को जन्म दे सकता है।