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St. Mary’s Island UNESCO tentative list: भारत एक ऐसा देश है जहाँ इतिहास, संस्कृति और प्रकृति की झलक हर जगह दिखाई देती है। हाल ही में भारत के 7 नए स्थलों को यूनेस्को विश्व धरोहर की संभावित सूची में जगह मिली है। इनमें कर्नाटक का सेंट मैरी आइलैंड क्लस्टर खास ध्यान आकर्षित कर रहा है। अरब सागर में मालपे (उडुपी) के पास बसे ये छोटे-छोटे द्वीप अपनी अनोखी चट्टानों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाने जाते हैं। यहाँ की चट्टानें स्तंभ जैसी दिखाई देती हैं, जो लगभग पूरी तरह से षट्कोणीय (hexagonal) आकार की होती हैं। यह नजारा ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने पत्थरों को कलाकृति में बदल दिया हो। यही वजह है कि ये द्वीप वैज्ञानिकों और पर्यटकों दोनों के लिए खास महत्व रखते हैं। ऐसे मैं हम आपको इस लेख के जरिये इसका इतिहास, भूगर्भीय महत्व पर्यावरणीय मूल्य, पर्यटन आकर्षण और यूनेस्को सूची में शामिल होने के बाद इसका भविष्य किस प्रकार बदल सकता है इस पर जानकारी देंगे ।
सेंट मैरी आइलैंड क्लस्टर का परिचय

सेंट मैरी आइलैंड्स (St. Mary’s Islands) जिन्हें लोग ‘कोकोनट आइलैंड्स’ भी कहते हैं, कर्नाटक के उडुपी जिले के मालपे बंदरगाह से लगभग 6 – 7 किलोमीटर दूर अरब सागर में बसे हुए हैं। यह छोटे-छोटे द्वीपों का एक समूह है। यहाँ चार मुख्य द्वीप माने जाते हैं – सेंट मैरी आइलैंड, दरिया बहदुरगढ़ आइलैंड, कोकोनट आइलैंड और उत्तर आइलैंड। इनमें से कोकोनट आइलैंड सबसे बड़ा है और यहाँ पर नारियल के पेड़ बहुत अधिक पाए जाते हैं इसी वजह से इसका यह नाम पड़ा। यह द्वीप अपने खास प्राकृतिक रूप और सुंदर नज़ारों के कारण लोगों को आकर्षित करते हैं।
सेंट मैरी आइलैंड क्लस्टर का भूगर्भीय महत्त्व
सेंट मैरी आइलैंड्स की खासियत यहाँ की बेसाल्टिक चट्टानें हैं, जो करोड़ों साल पहले ज्वालामुखी की गतिविधियों से बनी थीं। जब डेक्कन ट्रैप्स में लावा बहकर ठंडा हुआ और सिकुड़ा, तब पत्थर स्तंभों (columns) के रूप में जम गया। ये स्तंभ पाँच, छह या सात कोनों वाले होते हैं और देखने में मानो किसी ने पत्थर को बराबर-बराबर टुकड़ों में काट दिया हो। इनकी बनावट दुनिया के मशहूर स्थलों जैसे जायंट्स कॉज़वे (नॉर्दर्न आयरलैंड) और फिंगल्स केव (स्कॉटलैंड) से मिलती है। भारत में यह अद्भुत संरचना केवल सेंट मैरी आइलैंड्स में ही पाई जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार ये चट्टानें लगभग 8.8 करोड़ साल पहले बनी थीं, जब भारत और मेडागास्कर अलग हो रहे थे। यही वजह है कि इन द्वीपों का भूवैज्ञानिक महत्व बहुत खास है। Geological Survey of India ने इन्हें राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक घोषित किया है और अब इन्हें यूनेस्को विश्व धरोहर की संभावित सूची में भी शामिल किया गया है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलू

सेंट मैरी आइलैंड्स का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलू भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि वर्ष 1498 में वास्को-दा-गामा ने समुद्री यात्रा के दौरान इन द्वीपों पर पहली बार कदम रखा और एक क्रॉस स्थापित किया था, इसके साथ ही इन द्वीपों का नाम Blessed Mother Mary के नाम पर ‘St. Mary’s Islands’ रखा गया । हालाँकि इतिहास में इसका पूरा प्रमाण नहीं मिलता और इसे ज़्यादातर स्थानीय लोककथा माना जाता है, फिर भी यह कहानी इन द्वीपों को एक खास पहचान देती है। पर्यटन और स्थानीय संस्कृति के लिहाज़ से मालपे-उडुपी क्षेत्र में इन द्वीपों का महत्व और भी बढ़ जाता है।
जैवविविधता और पारिस्थितिकीय स्थिति
सेंट मैरी आइलैंड्स की जैवविविधता और पर्यावरण भी बहुत खास है। यहाँ घने जंगल तो नहीं मिलते लेकिन किनारों पर समुद्री घास, शैवाल और कई तरह के छोटे समुद्री जीव पाए जाते हैं। तट पर चलते हुए शंख और समुद्री जीवों के अवशेष आसानी से देखे जा सकते हैं, जो प्राकृतिक अध्ययन और शोध के लिए उपयोगी हैं। चूँकि यह छोटे-छोटे द्वीप हैं और समुद्री वातावरण कठिन है इसलिए इनकी पारिस्थितिकी बहुत संवेदनशील है। हाल के समय में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण भी यहाँ के समुद्री जीवन के लिए खतरा बन रहा है। इन्हें सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने इन्हें Coastal Regulation Zone (CRZ) के तहत संरक्षित किया है और Geological Survey of India ने इन्हें राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक घोषित किया है। यही कारण है कि नियंत्रित पर्यटन और संरक्षण प्रयास यहाँ बेहद ज़रूरी हैं।
पर्यटन आकर्षण
सेंट मैरी आइलैंड्स कर्नाटक का एक मशहूर पर्यटन स्थल है, जहाँ लोग ज़्यादातर मालपे बंदरगाह से नाव लेकर पहुँचते हैं। यहाँ की सफेद रेत, नीला साफ पानी और षट्कोणीय आकार की चट्टानें पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती हैं। यह जगह प्राकृतिक सुंदरता और भूवैज्ञानिक चमत्कार का सुंदर मेल दिखाती है। यहाँ आने वाले लोग ट्रेकिंग, पिकनिक, फोटोग्राफी, बोटिंग और सी-वॉक जैसी मज़ेदार गतिविधियों का आनंद लेते हैं। समुद्र और तटीय अनुभव के लिए यह द्वीप एक खास जगह है। कर्नाटक पर्यटन विभाग भी इस स्थल को और विकसित करने और दुनिया भर के पर्यटकों तक पहुँचाने के लिए काम कर रहा है।
यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में महत्व
सेंट मैरी आइलैंड क्लस्टर को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची (Tentative List) में शामिल किया जाना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल होने से सेंट मैरी आइलैंड्स को कई फायदे मिलेंगे। सबसे पहले, इसकी अनोखी चट्टानों और भूवैज्ञानिक संरचनाओं को वैज्ञानिक मान्यता मिलेगी और यह दुनिया भर में मशहूर होगा। दूसरा यहाँ आने वाले देशी और विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी, जिससे पर्यटन उद्योग को फायदा होगा। तीसरा इस टैग से सरकार और प्रशासन को इन द्वीपों की प्राकृतिक सुंदरता और पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाएगी। अंत में पर्यटन बढ़ने से स्थानीय लोगों को रोज़गार और कमाई के नए साधन मिलेंगे, जिससे यहाँ की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी।
चुनौतियाँ और संरक्षण

सेंट मैरी आइलैंड्स के सामने कई चुनौतियाँ हैं, जिन पर ध्यान देना जरूरी है। सबसे बड़ी चुनौती है बढ़ता हुआ पर्यटन दबाव, जिससे चट्टानों और पर्यावरण को नुकसान पहुँच सकता है। पर्यटकों के कारण यहाँ कूड़ा-कचरा भी बढ़ता है। दूसरी समस्या है समुद्री प्रदूषण, खासकर प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक जो समुद्री जीवों और पारिस्थितिकी के लिए खतरनाक है। तीसरी चुनौती है जलवायु परिवर्तन, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ सकता है और द्वीप का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इन समस्याओं से बचने के लिए पर्यावरण अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देना होगा, प्लास्टिक पर सख्ती से रोक लगानी होगी और द्वीप की जैवविविधता और चट्टानों की सुरक्षा के लिए खास निगरानी तंत्र बनाना जरूरी है।
सेंट मैरी आइलैंड क्लस्टर तक कैसे पहुंचे
सेंट मैरी आइलैंड पहुँचने के लिए सबसे नज़दीकी बड़ा शहर उडुपी है, जहाँ से पर्यटक आसानी से मालपे बंदरगाह पहुँच सकते हैं। सड़क मार्ग से यहाँ टैक्सी, ऑटो या लोकल बस मिल जाती है। रेल से आने वालों के लिए उडुपी रेलवे स्टेशन सबसे नज़दीकी है, जो मालपे से करीब 4 – 10 किमी दूर है और मुंबई, गोवा, मैंगलुरु व बेंगलुरु जैसे शहरों से जुड़ा है। हवाई यात्रा के लिए निकटतम हवाई अड्डा मैंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो लगभग 60 किमी दूर है। वहाँ से टैक्सी या बस द्वारा मालपे पहुँचा जा सकता है। इसके बाद मालपे बंदरगाह से बोट या फ़ेरी लेकर द्वीप तक जाया जाता है, जिसमें 15 – 30 मिनट लगते हैं। ध्यान रहे कि मानसून के समय (जून से सितंबर) नाव सेवाएँ सुरक्षा कारणों से बंद रहती हैं।