सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा, जिन्हें पहले मिलिटेंट उपनाम अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नाम से भी जाना जाता है, ने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से रियाद में मुलाकात की। यह मुलाकात उस अभियान के छह महीने बाद हुई, जिसमें उन्होंने पांच दशक पुराने असद शासन को उखाड़ फेंका, और खुद को देश का नेता घोषित किया। हालांकि उनके इस काम में इज़रायल, अमेरिका और अन्य नाटो देशों की मदद रही। बशर को रूस और ईरान का समर्थन था।
2013 में, अल-शरा को अमेरिका की विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी सूची में शामिल किया गया था, क्योंकि वह सीरिया में अल-कायदा से जुड़े अल-नुसरा फ्रंट का नेतृत्व कर रहे थे और उन पर सीरिया भर में आत्मघाती हमलों की योजना बनाने का आरोप था। सऊदी अरब में जन्मे इस पूर्व जिहादी ने इराक में अमेरिकी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, फिर सीरिया में एक सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया।
ट्रंप का सीरिया और इसके पूर्व जिहादी से राष्ट्रपति बने नेता के प्रति समर्थन मध्य पूर्व में उथल-पुथल मचा सकता है। इसके महत्वपूर्ण जियो पॉलिटिक्स निहितार्थ हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की सऊदी अरब की राजधानी रियाद में सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा उर्फ अबू मोहम्मद अल-जोलानी से मुलाकात कई मायनों में चौंकाने वाली रही। क्योंकि अल-शरा पहले अल-कायदा से जुड़े थे और अमेरिका व संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा आतंकवादी घोषित किए गए थे, जिन पर $10 मिलियन का इनाम रखा गया था। ट्रंप ने इस मुलाकात के दौरान सीरिया पर लगे सभी प्रतिबंधों को हटाने की घोषणा की, जिसे सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने समर्थन दिया। यह घटना मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक समीकरणों में बड़े बदलाव का संकेत देती है, विशेष रूप से तब जब इज़रायल और सऊदी अरब, जो पहले सीरिया के खिलाफ थे, अब अल-शरा के समर्थन में दिखाई दे रहे हैं। हालांकि, अल-शरा के नेतृत्व में सीरिया में अल्पसंख्यक अलवाइट समुदाय के खिलाफ व्यापक हिंसा की खबरें भी सामने आई हैं, जिस पर यूएन ने कड़ी आपत्ति जताई है।
अमेरिका ने दशकों से वैश्विक आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का प्रमुख लक्ष्य बनाया है। 9/11 हमलों के बाद, अमेरिका ने अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे संगठनों के खिलाफ वैश्विक युद्ध की घोषणा की। अमेरिका ने आतंकवादी संगठनों और उनके नेताओं पर प्रतिबंध लगाए, इनाम घोषित किए, और सैन्य कार्रवाइयों को अंजाम दिया। अहमद अल-शरा को 2013 में अमेरिका ने विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी (Specially Designated Global Terrorist) घोषित किया था, क्योंकि वे अल-कायदा की सीरियाई शाखा अल-नुसरा फ्रंट के नेता थे और आत्मघाती बम हमलों में शामिल थे। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका ने इराक में सद्दाम हुसैन की सरकार तक गिरा दी थी।
ट्रंप का अल-शरा के साथ मुलाकात करना और सीरिया पर प्रतिबंध हटाने की घोषणा करना अमेरिका की आतंकवाद विरोधी नीति में एक स्पष्ट विरोधाभास को दर्शाता है। अल-शरा ने 2003 में इराक में अमेरिकी सेनाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और 2006-2011 तक अमेरिकी जेल में रहे थे। उनकी अगुआई में अल-नुसरा फ्रंट ने सीरिया में हिंसक हमले किए, जिनमें नागरिकों की मौतें भी शामिल थीं। फिर भी, ट्रंप ने अल-शरा को “युवा, आकर्षक और सख्त” व्यक्ति जैसे शब्दों से नवाज़ा और कहा कि उनके पास सीरिया को स्थिर करने का “वास्तविक अवसर” है। यह बदलाव अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं में व्यावहारिकता को नैतिकता और सिद्धांतों से ऊपर रखने का संकेत देता है।
ट्रंप ने सीरिया पर प्रतिबंध हटाने की घोषणा सऊदी अरब में एक निवेश सम्मेलन के दौरान की, जहां सऊदी अरब ने अमेरिका में $600 बिलियन के निवेश और $142 बिलियन के हथियार सौदों की प्रतिबद्धता जताई। सऊदी अरब और तुर्की ने ट्रंप को प्रतिबंध हटाने और अल-शरा से मुलाकात करने के लिए प्रेरित किया, ताकि सीरिया में ईरान और रूस के प्रभाव को कम किया जा सके। इस घटनाक्रम के बाद सीरियाई लीरा की कीमत में 27% की वृद्धि और दमिश्क में उत्सव का माहौल इस निर्णय के तात्कालिक प्रभाव को बताता है।
अल-शरा के नेतृत्व में सीरिया में अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से अलवाइट्स, के खिलाफ हिंसा की खबरें सामने आई हैं। यूके स्थित सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स (SOHR) ने बताया कि मार्च 2025 में सीरिया के तटीय क्षेत्रों में 1500 से अधिक अलवाइट नागरिकों की हत्या की गई। यूएन ने इन नरसंहारों पर कड़ी आपत्ति जताई, जिससे अल-शरा की समावेशी शासन की प्रतिबद्धता पर सवाल उठे। फिर भी, अमेरिका ने प्रतिबंध हटाने का फैसला किया, जबकि उसने पहले अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा को प्रतिबंध हटाने की शर्त के रूप में रखा था। यह निर्णय अमेरिका की मानवाधिकारों और आतंकवाद विरोधी सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता पर सवाल उठाता है।
सऊदी अरब ने अल-शरा के नेतृत्व को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने ट्रंप और अल-शरा की मुलाकात की मेजबानी की और प्रतिबंध हटाने के फैसले की सराहना की। सऊदी अरब का यह रुख ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव को कम करने और सीरिया में अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है। सऊदी अरब ने पहले सीरिया के असद शासन का विरोध किया था, लेकिन अब वह अल-शरा के नेतृत्व को वैधता प्रदान करने में सक्रिय है, जो मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन को पुनर्जनन का संकेत देता है।
अमेरिका का अल-शरा के साथ सहयोग और प्रतिबंध हटाने का निर्णय मुख्य रूप से सीरिया में ईरान और रूस के प्रभाव को कम करने की रणनीति से प्रेरित है। अल-शरा ने असद शासन को उखाड़ फेंका, जो ईरान और रूस का समर्थक था। ट्रंप ने अल-शरा से आईएसआईएस की पुनरुत्थान को रोकने, विदेशी आतंकवादियों को निष्कासित करने और अब्राहम समझौते में शामिल होने जैसे कदम उठाने का आग्रह किया, जो अमेरिका के क्षेत्रीय हितों के अनुरूप हैं।
सऊदी अरब और कतर जैसे खाड़ी देशों ने सीरिया में निवेश की इच्छा जताई है, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए अवसर पैदा कर सकता है। अल-शरा ने अमेरिकी कंपनियों को सीरिया के तेल और गैस संसाधनों के दोहन और पुनर्निर्माण परियोजनाओं में भाग लेने का प्रस्ताव दिया है, जिसमें एक “ट्रंप टावर” दमिश्क में बनाने का विचार भी शामिल है। यह ट्रंप की व्यापार-उन्मुख मानसिकता के अनुरूप है और अमेरिका के आर्थिक हितों को बढ़ावा देता है।
ट्रंप ने कहा कि प्रतिबंध हटाने से सीरिया को “महानता का अवसर” मिलेगा, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि, अल-शरा की सरकार के तहत सांप्रदायिक हिंसा और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले इस उम्मीद को कमजोर करते हैं।
अमेरिका का एक पूर्व आतंकवादी नेता के साथ सहयोग करना और प्रतिबंध हटाना उसकी आतंकवाद विरोधी नीति की विश्वसनीयता को कमजोर करता है। X पर कई पोस्टों में इस निर्णय को अमेरिका की अवसरवादी नीति के रूप में देखा जा रहा है, जहां एक समय आतंकवादी घोषित व्यक्ति को अब वैध शासक के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
ट्रंप की नीति ने मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन को बदल दिया है। सऊदी अरब और तुर्की का समर्थन, इज़रायल की अनिच्छुक स्वीकृति, और ईरान-रूस के प्रभाव में कमी मध्य पूर्व में नए गठबंधनों को जन्म दे रही है। हालांकि, यह गठबंधन अल-शारा की सरकार की स्थिरता और समावेशिता पर निर्भर करता है, जो अभी अनिश्चित है। बहरहाल, अमेरिका की यह दोहरी नीति वैश्विक मंच पर उसकी नैतिक विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए नए चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है।