इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिर से एक विवादास्पद फैसला दिया है। इस फैसले में कोर्ट ने रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए जमानत दे दी कि पीड़िता ने “खुद मुसीबत को न्योता दिया।” कोर्ट ने पीड़िता के बार में शराब पीने, देर रात आरोपी के साथ जाने और घटना की परिस्थितियों को उसके “व्यक्तिगत निर्णय” का हिस्सा माना, लेकिन यह न्याय से ज़्यादा नैतिकता का मूल्यांकन साबित हो रहा है।
मेडिकल रिपोर्ट में यौन संबंध के संकेत मिले, लेकिन कोर्ट ने इसे स्पष्ट रूप से रेप मानने से इनकार कर दिया जबकि आईपीसी का सेक्शन 375 साफ तौर पर किसी भी महिला के साथ नशे में बनाये गये यौन संबंध को रेप मानता है। इस फैसले ने सहमति,महिला की स्वतंत्रता और विक्टिम ब्लेमिंग जैसे मुद्दों को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है। क्या अब न्याय प्रणाली महिलाओं के फैसलों को उनके खिलाफ इस्तेमाल कर रही है
‘लड़की के साथ रेप हुआ क्योंकि गलती उसकी थी। उसने अपने सिर पर मुसीबत खुद बुलाया था। इसकी ज़िम्मेदार वो ही है।‘ ये किसी मुहल्ले की चौपाल पर पंचायत करने बैठे दो-चार लोगों की गप्पबाज़ी नहीं है। यह इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक ताजा फैसला है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस ‘संजय कुमार सिंह’ ने 10 अप्रैल को रेप के आरोपी एक युवक को जमानत देते हुए, अपने फैसले के बचाव में ये अजीबोगरीब बात कही। मामला दिसंबर 2024 में हुई रेप की एक घटना से जुड़ा हुआ है। शिकार लड़की का आरोप है कि लड़के ने उससे नशे की हालत में अपने रिश्तेदार के फ्लैट पर ले जाकर दो बार रेप किया।
पीड़ित लड़की ने कोर्ट में अपने बयान में बताया था कि वह अपनी तीन महिला दोस्तों के साथ दिल्ली के एक बार में गई थी। वहीं ये आरोपी लड़का भी उससे मिला था। बार में तीनों लड़कियों ने देर रात तक शराब पिया था। नशा अधिक हो जाने की वजह से लड़की खुद को संभाल नहीं पा रही थी। उसकी हालत देखकर लड़के ने बार-बार उसे अपने घर चलने के लिए कहा। उस हाल में लड़की ने उसकी बात मान ली क्योंकि उसे भी मदद की जरूरत थी और वो घर जाकर आराम करना चाहती थी। जैसा कि आरोपी लड़के ने बताया था, लड़की को लगा कि वो उसे अपने नोएडा स्थित घर लेकर जाएगा, लेकिन लड़का उसे ठीक दूसरी दिशा में अपने किसी रिश्तेदार के घर गुड़गांव लेकर चला गया, जहां उसने लड़की के साथ रेप किया।
लड़की ने ये भी आरोप लगाया है कि पूरे रास्ते आरोपी लड़की को गलत ढंग से छूता रहा। जब ये मामला कोर्ट में पहुँचा तो आरोपी के वकील ने यह तर्क दिया कि अगर पीड़िता के आरोपों को सही भी माना जाए तो मामला रेप का नहीं है। उसकी जगह यह सहमति से बना हुआ संबंध हो सकता है।
आरोपी के वकील ने यह भी दलील दी कि आरोपी दिसंबर 2024 से जेल में बंद है। उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। अगर उसे जमानत दी जाती है तो वह इसका दुरुपयोग नहीं करेगा। हालांकि सरकारी वकील ने जमानत याचिका का विरोध किया था पर वे कई मुद्दों पर उस काबिलियत से विरोध दर्ज नहीं करवा पाए।
बचाव पक्ष की दलीलों को सुनकर जस्टिस संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने जमानत देते हुए जो कहा, उसे सुनिए! कोर्ट का कहना था कि “अगर पीड़िता की बात को सच भी माना जाए,तो यह स्पष्ट होता है कि उसने खुद ही इस स्थिति को आमंत्रित किया और इसके लिए वह जिम्मेदार भी है। मेडिकल जाँच में पीड़िता का हाइमेन (योनि के द्वार पतली झिल्ली) फटा हुआ पाया गया, लेकिन डॉक्टर ने यौन शोषण के संबंध में कोई स्पष्ट राय नहीं दी।“
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विक्टिम ब्लेमिंग करते हुए यानि पीड़ित को दोषी ठहराते हुए न केवल ये कहा कि उसने मुसीबत खुद बुलाया बल्कि इस बात पर भी ज़ोर दिया कि लड़की ने खुद अपने एफ आई आर में स्वीकार किया है कि वो जानती थी कि वो क्या कर रही है। इसे करना कितना नैतिक या अनैतिक हो सकता है। पूरे सबूतों, तथ्यों, आरोपी की भूमिका और दोनों पक्षों की दलील को सुनने के बाद कोर्ट ने लड़की को अपने साथ हुए रेप का दोषी ठहराते हुए, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला आरोपी के पक्ष में सुना दिया। उसकी जमानत याचिका मंजूर हो गई।
इस फैसले के आने के साथ ही विवाद शुरू हो गया है। गौर करने वाली बात यह है कि इंडियन पीनल कोड (आईपीएस) के सेक्शन 375 के मुताबिक जब औरत नशे में हो, ठीक तरह से सहमति देने की हालत में न हो तो उसके साथ किया गया सेक्स रेप है। अब सवाल उठता है, क्या इलाहाबाद हाई कोर्ट के आला कानूनगो इस मामूली जानकारी से भी वंचित थे या फिर कानून का धड़ल्ले से मज़ाक उड़ाया गया है।
यह पहली बार नहीं है जब इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से ऐसा कोई फ़ैसला आया है। इससे पहले भी नाबालिग से बलात्कार की कोशिश के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मोहन मिश्रा ने विवादास्पद फैसला सुनाया था। उस मामले में कहा गया था कि नाड़ा तोड़ना, स्तन दबाना रेप नहीं। और अब नशे में किए गये रेप का दोष पीड़ित लड़की के ही सिर मढ़ दिया गया है आखिर क्यों इलाहाबाद हाईकोर्ट इतने अजीबोगरीब फैसले सुना रहा है क्यों इस हाईकोर्ट की न्यायिक चेतना सकते में आ गई है