पंजाब में 19 जून को होने वाले लुधियाना पश्चिम विधान सभा सीट के उप चुनाव आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के लिए एक बड़ा संग्राम होगा। इसमें हार-जीत पंजाब में आनेवाले फरवरी 2027 के विधान सभा चुनावों के लिए एक संदेश देने की दिशा भी तय करेगा। 2025 के लोकसभा चुनाव में जीत से आश्वस्त कांग्रेस इस खास सीट के लिए अपनी रणनीति आजमाने में लगी है। लुधियाना की लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में गई थी जहाँ से प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने बीजेपी के रवनीत सिंह बिटू को शिकस्त दी थी। आम आदमी पार्टी के विधायक गुरप्रीत सिंह बस्सी ‘गोगी’ की संदिग्ध परिस्थितियों में गोली लगने से हुई मौत के बाद यह सीट खाली हुई थी।
इस विधानसभा में 1 लाख 82 हजार 545 मतदाता हैं। 2022 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के गोगी को 40423 (34.46%) मत मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी भारत भूषण आशु को 32931 (28.06%) मत मिले थे। भाजपा के प्रत्याशी एडवोकेट विक्रम सिंह सिद्धू को 28107 (23 95%) अकाली दल के महेश इन्दर ग्रेवल को 10072 (8.58%) वोट और निर्दलीय तरुण जैन बावा को 3821 वोट मिले थे।
यह विधानसभा क्षेत्र 1977 में अस्तित्व में आया और अब तक यहाँ 9 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। कांग्रेस ने यहां 6 बार जीत हासिल की जबकि अकाली दल-भाजपा गठजोड़ ने 2 बार तथा एक बार जेएनपी ने यहाँ से चुनाव जीता। इस सीट पर वर्ष 1977 में जेएनपी पार्टी के नेता ए विश्वनाथन जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद कांग्रेस के जोगिंदर पाल पांडे ने वर्ष 1980 में जीत दर्ज की। वर्ष 1985, 1992, 2002 में कांग्रेस के हरनाम दास जौहर ने यह सीट पार्टी की झोली में डाली। वर्ष 1997 में शिरोमणि अकाली दल-भाजपा के संयुक्त उम्मीदवार महेश इंद्र सिंह ग्रेवाल ने जीत दर्ज की। वर्ष 2007 में शिअद-भाजपा के हरीश राय ढांडा लुधियाना पश्चिमी से विधायक बने थे। इसके बाद वर्ष 2012 एवं वर्ष 2017 में कांग्रेस के भारत भूषण आशु ने लगातार दो बार इस सीट पर जीत दर्ज की। वहीं वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अलविदा कह आम आदमी पार्टी का दामन थामने वाले गुरप्रीत गोगी यह सीट जीतकर विधायक बने थे।
दिल्ली में हार के बाद आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब की वर्तमान परिस्थितियों में यह चुनाव अहम हो गया है। आम आदमी पार्टी ने यहाँ से पार्टी के राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को प्रत्याशी बनाया जाना घोषित कर दिया था। ऐसा माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी हर हाल में यह चुनाव जीतना चाहती है ताकि संजीव अरोड़ा विधान सभा चले जाएँ और उन्हें राज्य सरकार में किसी बड़े मंत्रालय में एडजस्ट कर दिया जाये। ताकि राज्यसभा की खाली सीट से अरविंद केजरीवाल राज्य सभा पहुँच जाएँ। संजीव अरोड़ा लुधियाना के बड़े बिजनेसमैन हैं। माना जाता है कि इसीलिए पंजाब में शम्भू और खनौरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को आनन फानन में कुचला गया ताकि पंजाब के व्यापारी वर्ग को साधा जा सके। इसके अलावा व्यापारियों के लिए वन टाइम सेटलमेंट योजना पंजाब सरकार द्वारा लाई गई थी।
बीजेपी के रवनीत बिटू के लिए पंजाब की सियसत की बिसात पर बाजी अपने हाथ में लेने की चुनौती भी है। लुधियाना लोकसभा चुनाव हरने के बाद बिटू लगातार आम आदमी पार्टी को कटघरे में खड़ा करने से चूकते नहीं और अरविन्द केजरीवाल के मोहरे के रूप में भगवंत मान पर निशाना साधने से गुरेज नहीं करते। लेकिन भाजपा प्रत्याशी के चुनाव में उतरने के बाद रवनीत बिटू का धर्म संकट बढ़ना तय है कि वो अपने मित्र कांग्रेस के प्रत्याशी भारत भूषण आशु की नैया पार लगवाएं या पार्टी का भरोसा कायम रखते हुए भाजपा प्रत्याशी को जितवाएँ। क्योंकि इस सीट पर लोकसभा चुनावों में रवनीत बिटू को चालीस हजार से अधिक वोट मिले थे और लगभग 10 हजार की लीड उनको राजा वडिंग से अधिक मिली थी। भाजपा ने अभी तक अपना प्रत्याशी नहीं घोषित किया है। भाजपा के लिए 2027 के विधानसभा चुनाव अबकी बार बहुत अहम है। भाजपा इस चुनाव से पंजाब को अपने लक्ष्य का एक बड़ा संदेश देना चाहेगी इसलिए यहाँ प्रत्याशी की घोषणा में कई पेच हैं।
भारत भूषण आशु और पंजाब के कांग्रेस अध्यक्ष और वर्तमान में लुधियाना के सांसद अमरिंदर सिंह राजा वडिंग से अदावत जाहिर है। पंजाब विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा से आशु ने स्पष्ट रूप से दूरी बनाई हुई है और वो उनको अपने क्षेत्र में देखना तक नहीं चाहते। कांग्रेस के दूसरे धड़े राणा गुरजीत सिंह, परगट सिंह और पुराने कांग्रेसियों के सहारे आशु भी अपनी एक अलग पहचान दिखाना चाहते हैं। भारत भूषण आशु अमेठी के सांसद किशोरी लाल शर्मा से घनिष्ठता है और सांसद किशोरी लाल भरत भूषण आशू को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
अकाली दल अबकी बार भाजपा से अलग चुनाव में उतरने वाला है। सुखबीर सिंह बादल के अकाली दल के फिर से प्रधान चुन लिए जाने के बाद इस चुनाव में अकाली दल का प्रदर्शन पंजाब में अकाली दल और बादल परिवार की सियासत के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। एडवोकेट परउपकार सिंह सिद्धू ने 2022 के चुनावों में 10 हजार वोट हासिल किये थे लेकिन अकाली दल की अंदरूनी कलह ने एक बड़ा झटका अकाली दल को दिया है। इसके सामनांतर नयी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद अमृतपाल की अगुआई में बने अकाली दल ने बादल को उनके गढ़ में चुनौती दे रखी है। पूर्व में अकाली दल के कुछ बड़े नेता रहे टकसाली अकलियों का सुखबीर बादल अभी फिर से विश्वास हासिल नहीं कर पाए हैं। मनप्रीत अयाली की नाराजगी भी खुल कर सामने आती रही है। बागी धड़े की अपनी राह है। अकाली दल बादल के लिए चुनौती है कि क्या वो खुद को भाजपा के समर्थन की परछाई से अलग कर पायेगा या नहीं।
वोट प्रतिशत इस सीट पर अक्सर 60% से अधिक ही रहता है। पहली बार के युवाओं को मतदान करने के लिए प्रेरित करने में स्थानीय प्रशासन ने चुनाव से पहले ही कोशिशें शुरू कर दी हैं। अलग अलग कॉलेज में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। चुनाव के समीकरण 5 तारीख को नाम वापसी की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद पूरी तरह से धरातल पर साफ़ हो जाएँगे।