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    Home » संभलः नफरती मीडिया और प्रशासन ने मंदिर पर कब्जे की झूठी कहानी फैलाई
    भारत

    संभलः नफरती मीडिया और प्रशासन ने मंदिर पर कब्जे की झूठी कहानी फैलाई

    By December 16, 2024No Comments7 Mins Read
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    मीडिया में एक कहानी शुक्रवार को आग की तरह फैली। संभल प्रशासन ने दावा किया कि शहर में सांप्रदायिक दंगों के बाद 1978 से बंद एक मंदिर को शुक्रवार को फिर से खोल दिया। अधिकारियों ने दावा किया कि शाही जामा मस्जिद से कुछ ही दूरी पर स्थित मंदिर को अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान अधिकारियों की नजर पड़ने के बाद खोला गया।
    भस्म शंकर मंदिर में हनुमान मूर्ति और एक शिवलिंग है।

    यहां की एसडीएम वंदना मिश्रा ने दावा किया कि “इलाके का निरीक्षण करते समय, हमारी नजर इस मंदिर पर पड़ी। इस पर ध्यान देने पर, मैंने तुरंत जिला अधिकारियों को सूचित किया।”

    वंदना ने कहा, “हम सभी एक साथ यहां आए और मंदिर को फिर से खोलने का फैसला किया।” एसडीएम के इस बयान को कुछ टीवी चैनलों, एएनआई न्यूज एजेंसी और हिन्दू मीडिया में बदल चुके हिन्दी मीडिया ने इसे फौरन हिन्दू-मुसलमानों के बीच विवाद के रूप में पेश कर दिया। 

    एबीपी चैनल के एक रिपोर्टर ने मौके पर जाकर जब पड़ताल की तो सारी कहानी सामने आई गई। एबीपी रिपोर्टर ने एक काम यह अच्छा किया कि उसने इस मंदिर को बननवाने वाले रस्तोगी परिवार के हर आयु वर्ग के लोगों से बात की और सभी ने एक ही जैसे तथ्य बताये। जिन चैनलों और न्यूज एजेंसी ने योगी सरकार के प्रशासन के साथ मिलकर संभल के इस मंदिर को लेकर जो फर्जी तथ्य फैलाये, क्या वो अब माफी मांगेंगे। बहरहाल, आपको यह पूरी कहानी जाननी चाहिए। सत्य हिन्दी पर जानिएः 

    इस मंदिर को बनवाने वाले रस्तोगी परिवार के धर्मेंद्र रस्तोगी ने सभी झूठे दावों से साफ इनकार करते हुए कहा कि मंदिर 2006 तक खुला था। वहां मुसलमानों या किसी का कोई डर नहीं था। मंदिर की चाबी रस्तोगी परिवार के पास थी, मंदिर के आसपास कोई अतिक्रमण नहीं था। मंदिर के बगल वाला कमरा भी उन्हीं के द्वारा बनवाया गया था।

    Very Important thread related to Sambhal.🧵
    For the past 2 days several News channels and RW websites/influencers are running non stop propaganda about Sambhal Temple encroachment.
    Fact : Temple keys were with Rastogi family. Listen to what Dharmendr Rastogi & his son have to say pic.twitter.com/azXpXgLbTg

    — Mohammed Zubair (@zoo_bear) December 15, 2024

    धर्मेंद्र रस्तोगी और उनके बेटे ने कहा कि स्थानीय मुसलमानों से कभी डर नहीं था। उन्होंने मंदिर के बगल में ‘अतिक्रमण’ के बारे में एक और फर्जी खबर का भी खंडन किया, कहा कि मंदिर वैसा ही है, कोई अतिक्रमण नहीं है। मंदिर के बगल वाला कमरा उन्होंने 2006 में उनके जाने से पहले बनवाया था।

    एक अन्य स्थानीय, प्रदीप वर्मा ने कहा कि वो 1993 तक उसी गली में रहे। जब वे कभी-कभार इलाके में आते थे, तो वे नियमित रूप से पूजा करते थे और मंदिर की चाबियाँ रस्तोगी परिवार के पास रहती थीं। वह आगे कहते हैं वो पूजा करके चले जाते थे, यहां रुकते नहीं थे।

    One more local, Pradeep Verma says, They stayed in the same lane till 1993. When they came to the area occasionally, They would regularly do Pooja and the keys to the temple were with the Rastogi family. He further says, There was never staying in the area. pic.twitter.com/hSUeQpNSVK

    — Mohammed Zubair (@zoo_bear) December 16, 2024

    रस्तोगी परिवार की इन बुजुर्ग को भी सुनिए। उनकी बात से मीडिया की फर्जी कहानी का जबरदस्त खंडन हो रहा है। 

    “मंदिर हमारे कब्जे में है और ताला भी हमने ही लगाया है।”

    उत्तर प्रदेश के संभल में पुलिस ने कथित तौर पर एक मंदिर तलाश किया। नफ़रती कीड़ों ने कहना शुरू किया कि मुसलमानो के डर से इस मंदिर को 1978 में बंद कर दिया गया था।

    लेकिन पोल खुल गई। यह मंदिर निजी है और इन चाचा के मुताबिक… pic.twitter.com/QV02OQhNgi

    — Krishna Kant (@kkjourno) December 15, 2024

    एबीपी न्यूज के मुताबिक मोहम्मद सलमान उसी गली के रहने वाले हैं, उनका कहना है कि मंदिर की चाबियां उनके पड़ोसी मोहन रस्तोगी के पास थीं। यह भी दावा है कि इलाके के मुसलमान मंदिर के बाहरी हिस्से की पेंटिंग करके मंदिर की देखभाल करते थे, मंदिर के बगल में कमरा (गोदाम) रस्तोगी परिवार द्वारा बनाया गया था।

    Mohammed Salman is from the same lane, He says the keys to the Temple were with Mohan Rastogi, his neighbour. Also claims, Muslims in the locality used to take care of the Temple by painting the exteriors of the Temple, The room (Godown) next to temple was built by Rastogi family pic.twitter.com/3T8RpfmTNi

    — Mohammed Zubair (@zoo_bear) December 16, 2024

    उसी गली के एक अन्य स्थानीय शारिक कहते हैं, समाचार चैनल डर के कारण अतिक्रमण और हिंदू पलायन के बारे में फर्जी खबरें चला रहे हैं। कहते हैं, मोहल्ले में हर किसी को खबर थी कि यह मंदिर है। सभी हिंदुओं से अपील है कि वे प्रतिदिन नियमित रूप से मंदिर आएं।

    One more Local, Mohammed Shuaib says, News Channels are creating a Fake Narrative. People started leaving the locality from 1998-2006 due to personal reasons. Not after riots in 1976 as claimed. Pandit Ji’s son Bhola Kishan, Udit Rastogi were all there friends who played together pic.twitter.com/svX0Oyhn1Z

    — Mohammed Zubair (@zoo_bear) December 16, 2024

    एक और स्थानीय, मोहम्मद शुएब ने कहा कि तमाम न्यूज़ चैनल एक फेक नैरेटिव बना रहे हैं। 1998-2006 के बीच निजी कारणों से लोगों ने इलाका छोड़ना शुरू कर दिया। 1976 के दंगों के बाद नहीं, जैसा दावा किया गया था। पंडित जी के बेटे भोला किशन, उदित रस्तोगी सभी दोस्त थे जो साथ खेलते थे।  शुएब आगे कहते हैं, जब प्रशासन ने मंदिर की चाबियां मांगी तो रस्तोगी परिवार ने ही चाबियां दीं। जब पत्रकारों ने पूछा कि आपने अतिक्रमण क्यों नहीं रोका, तो उन्होंने जवाब दिया, यह कमरा रस्तोगी परिवार द्वारा पूजा के लिए बनाया गया था जिसे बाद में उनके अपने परिवार द्वारा गौदान के रूप में इस्तेमाल किया गया था।  

    धर्मेंद्र रस्तोगी ने दोहराया किमंदिर पर कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है. मंदिर के बगल की चहारदीवारी और कमरा उनके परिवार द्वारा बनवाया गया था। चाबियाँ हमेशा रस्तोगी समाज के पास रहती थीं जो उन्होंने पुलिस को दे दी थीं। जगह को सुरक्षित करने के लिए रस्तोगी ने चहारदीवारी बनवाई थी। 

    आल्ट न्यूज के संस्थापक सह संपादक जुबैर अहमद जो पेशेवर फैक्ट चेकर हैं, ने बताया कि झूठी कहानी को आगे बढ़ाने में एएनआई की बहुत बड़ी भूमिका है। ट्वीट्स की संख्या देखें- उन्होंने ‘मंदिर खोजा गया’, ‘मंदिर 4 दशकों से बंद था’, ‘अतिक्रमण किया गया था’, ‘1978 के बाद फिर से खोला गया’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है। यह सब केयर टेकर (रस्तोगी परिवार) और स्थानीय मुसलमानों ने खारिज कर दिया है। बता दें कि संभल में 24 नवंबर को जबरदस्त हिंसा हुई थी। जिसमें 4 मुस्लिम युवक मारे गये थे। पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई की थी। पुलिस का कहना है कि मुस्लिमों की दो गुटों में आपसी लड़ाई में गोलियां चली थीं। जबकि पूरी दुनिया ने देखा कि शाही मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा और उत्तेजना किसने फैलाई और कैसे पुलिस ने दखल दिया।

    ANI has a huge role in amplifying the false narrative. Look at the number of tweets. They’ve used words like ‘Temple Discovered’, ‘Temple closed for 4 decades’, ‘Was Encroached’, ‘Re-opened after 1978’. All this was debunked by the care taker (Rastogi family) and local Muslims pic.twitter.com/ih4Ul4bj8f

    — Mohammed Zubair (@zoo_bear) December 16, 2024

    एएनआई पर ऐसा आरोप पहली बार नहीं लगा है। देश में एएनआई मोदी सरकार की तरफ झुकाव के लिए बदनाम हो चुकी है। लेकिन अपराध की खबर देते समय भी उसका पूर्वाग्रह बरकरार रहता है। आरोपी अगर समुदाय विशेष का होगा तो एएनआई उसका नाम तलाश कर जरूर देती है। लेकिन आरोपी अगर बहुसंख्यक समुदाय से है, और उनमें भी तथाकथित उच्च वर्ग से है तो वो आरोपी का नाम छिपा लेती है। उसके ऊपर आरोप है कि वो अक्सर नेता विपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं के बयान तोड़ मरोड़ कर पेश करती है। अभी हाल ही में उसने कांग्रेस और आप के बीच सीट बंटवारे की कहानी चलाई तो आप प्रमुख केजरीवाल ने उसका फौरन ही खंडन कर दिया। 

    (इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)

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