Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Trending
    • ईरान ने किया इज़राइल पर जवाबी हमला
    • ईरान इसराइल ख़तरनाक मोड पर?
    • Satya Hindi News Bulletin। 14 जून, दिनभर की ख़बरें
    • Satya Hindi News Bulletin। 14 जून, शाम तक की ख़बरें
    • ईरान होर्मुज बंद करने पर कर रहा विचार, अगर ऐसा हुआ तो क्या करेंगे बाकी देश
    • भारत-ईरान-इज़राइल-फिलिस्तीनः कहां खड़ी है मोदी सरकार और उसकी कूटनीति
    • क्या है गोल गुंबज का रहस्य! कैसे यह प्राचीन तकनीक बिना बिजली के देता है स्पीकर जैसा अनुभव
    • Zero Mile Stone History: एक ऐसा ऐतिहासिक पत्थर जो बना था भारत की दूरी का केंद्र बिंदु
    • About Us
    • Get In Touch
    Facebook X (Twitter) LinkedIn VKontakte
    Janta YojanaJanta Yojana
    Banner
    • HOME
    • ताज़ा खबरें
    • दुनिया
    • ग्राउंड रिपोर्ट
    • अंतराष्ट्रीय
    • मनोरंजन
    • बॉलीवुड
    • क्रिकेट
    • पेरिस ओलंपिक 2024
    Home » सांप्रदायिक जज देश की एकता के लिए ख़तरा!
    भारत

    सांप्रदायिक जज देश की एकता के लिए ख़तरा!

    Janta YojanaBy Janta YojanaJune 13, 2025No Comments11 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    न्यायपालिका की विश्वसनीयता को लेकर इन दिनों दो मामलों पर राष्ट्रीय चर्चा हो रही है। पहला मामला जस्टिस यशवंत वर्मा का है। दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने को लेकर सत्ता और विपक्ष साथ आकर खड़े हो गए हैं। बीते मार्च, 2025 में जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर आग लगने के बाद फ़ायर विभाग को जले हुए नोटों के बंडल मिले थे। सुप्रीम कोर्ट ने इससे संबंधित वीडियो और तस्वीरें सार्वजनिक कर दी थीं। जल्द ही यह मामला राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया। लोगों के मन में सवाल था कि अगर एक जज के घर में ऐसे नोटों की गड्डियाँ मिलेंगी तो न्यायपालिका पर लोग भरोसा कैसे करेंगे? लेकिन जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि ये नोट उनके नहीं हैं, उनके ख़िलाफ़ साजिश की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय समिति बनाकर मामले की एक आंतरिक जांच शुरू कर दी। जांच में जस्टिस वर्मा को दोषी पाया गया है। अब कानून मंत्री किरण रिजिजू विपक्ष के साथ मिलकर जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ उन्हें उनके पद से हटाने की प्रक्रिया पर काम कर रहे हैं। मंत्री जी का दावा है कि पूरा विपक्ष उनके साथ है, आख़िर यह न्यायपालिका की शुचिता का सवाल है। मुझे लगता है कि यह एक भ्रष्टाचार का मामला है जिसे न्यायाधीश (जांच) अधिनियम-1968 के आधार पर सम्भालना चाहिए। यह अधिनियम न्यायाधीशों की जांच और उन्हें हटाने की प्रक्रिया से संबंधित है।
    दूसरा मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर यादव का है। 8 दिसंबर 2024 को जस्टिस यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए एक व्याख्यान दिया। संविधान को शर्मसार कर देने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए जस्टिस यादव ने कहा कि मुझे “यह कहने में कोई हिचक नहीं कि यह देश बहुसंख्यकों की इच्छाओं के अनुसार चलेगा।” बड़े आश्चर्य की बात है कि संवैधानिक न्यायालय का न्यायाधीश यह जानकारी भी नहीं रखता कि देश न संसद से चलता है, न न्यायपालिका से! देश न बहुसंख्यक चलाते हैं और न ही अल्पसंख्यक! देश चलता है संविधान से। क्या जज साहब को यह जानकारी नहीं थी कि भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहाँ संविधान की सर्वोच्चता स्वीकारी गई है? संविधान को बने 75 साल हो रहे हैं और एक जज इस देश में अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक करना चाहता है। संविधान की ‘मनमानी व्याख्या’ का अधिकार किसी को नहीं है।
    जस्टिस यादव के संज्ञान में मैं संविधान सभा में प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा संविधान सभा में सुनाया गया एक क़िस्सा लाना चाहता हूँ। आयरलैंड का उदाहरण देते हुए डॉ. आंबेडकर ने कहा कि “आयरलैंड के विभाजन को रोकने के लिए हुई बातचीत के इतिहास में रेडमंड ने कार्सन से कहा, ‘प्रोटेस्टेंट अल्पसंख्यकों के लिए कोई भी सुरक्षा चाहते हो तो मांग लो, लेकिन हमें एक संयुक्त आयरलैंड दे दो।’
    इस पर कार्सन का उत्तर था — ‘तुम्हारी सुरक्षा की गारंटी जाए भाड़ में, हम तुमसे शासित नहीं होना चाहते।’
    भारत में किसी भी अल्पसंख्यक ने ऐसा रुख नहीं अपनाया है। उन्होंने बहुसंख्यक के शासन को निष्ठापूर्वक स्वीकार किया है, जो मूल रूप से राजनीतिक बहुमत नहीं बल्कि सांप्रदायिक बहुमत है। अब यह बहुसंख्यक समुदाय का कर्तव्य है कि वह अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव न करे”।
    समस्या यह है कि यह बात किसी आम नागरिक ने नहीं एक संवैधानिक न्यायालय के न्यायाधीश ने कही है। एक ऐसा पद जिसकी आलोचना करते समय मुझे बहुत धीरज से काम लेना होगा क्योंकि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा प्रभावित होती है। लेकिन जो जज दो समुदायों के बीच नफ़रत फैलाकर भारत की एकता और अखंडता पर चोट कर रहा हो, दायरे में रहकर उसकी आलोचना की जा सकती है और की भी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अरुंधति राय (2002) मामले में कह भी चुका है कि निष्पक्ष आलोचना, जो तथ्यों पर आधारित हो और सार्वजनिक हित में हो, अवमानना नहीं मानी जाएगी।
    जज के रूप में कोर्ट परिसर में इस तरह की भाषा जस्टिस यादव उनके पद से हटाए जाने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए। लेकिन अगर अभी भी संदेह है तो उनका आगे का भाषण भी सुनना चाहिए। 8 दिसंबर को जस्टिस यादव ने मुसलमानों को संबोधित करते हुए आगे कहा था कि “आपका(मुस्लिमों का) बच्चा सहनशीलता और दयालुता कैसे सीखेगा जब आप उनके सामने पशुओं का वध करते हैं?” इसके अलावा जस्टिस यादव ने “कठमुल्ला” शब्द का उपयोग किया और कहा कि मुस्लिम बच्चों से “सहनशील” और “उदार” होने की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि वे छोटी उम्र से ही हिंसा – “पशुओं के वध” – के संपर्क में आते हैं। यह भाषा एक धर्म के प्रति उनके भीतर भरे ज़हर को उजागर करता है। 
    लेकिन शायद उन्होंने जज होने से पहले हिंदू होना बेहतर समझा है। उनकी यही समझ उन्हें घोर अवैज्ञानिकता की ओर ले जाती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक मामले में टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था कि गाय ही एकमात्र ऐसा जानवर है जो हमेशा ऑक्सीजन छोड़ता है। यह सर्वविदित है कि यह एक अफ़वाह के अतिरिक्त और कुछ नहीं। अपनी अवैज्ञानिकता को संवैधानिक मंच पर ले जाने के लिए भी जस्टिस यादव पर कार्यवाही होनी चाहिए थी लेकिन नहीं हुई। यही कारण है कि अब उनके मुँह से देश को तोड़ने वाली, विभाजन करने वाली, शांति ख़त्म करने वाली भाषा निकल रही है।
    जस्टिस यादव की इस सांप्रदायिक टिप्पणी पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया और उनसे जवाब माँगा गया। 17 दिसंबर 2024 को जस्टिस यादव कॉलेजियम के सामने पेश हुए, अपना पक्ष रखा और कॉलेजियम के सामने माफ़ी मांगने को तैयार हो गए लेकिन तत्कालीन CJI संजीव खन्ना चाहते थे कि जस्टिस यादव सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगे!  लेकिन जस्टिस यादव तैयार नहीं हुए।
    शायद उन्हें अपने व्याख्यान पर गर्व हो रहा हो। लेकिन यह व्याख्यान कोई बौद्धिक संभाषण नहीं था बल्कि एक सांप्रदायिक प्रलाप था जिसने जस्टिस यादव के भीतर के कट्टर हिंदू को बाहर ला खड़ा किया था। जस्टिस यादव के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में आंतरिक जांच शुरू हो गई। इसके अलावा 55 विपक्षी सांसदों ने जस्टिस यादव के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग नोटिस दाखिल किया, जिसमें उनके बयानों को “नफरत फैलाने वाला” और “सांप्रदायिक सद्भाव को खराब करने वाला” बताया गया।
    लेकिन सरकार शायद कुछ और सोच रही थी। राज्यसभा के सचिवालय से सुप्रीम कोर्ट पत्र भेजा गया जिसमें जस्टिस यादव के ख़िलाफ़ चल रही आंतरिक जांच को लेकर आपत्ति की गई। राज्यसभा के सभापति को इस बात से आपत्ति थी कि आख़िर जस्टिस यादव के ख़िलाफ़ आंतरिक जांच क्यों चल रही है? उनका तर्क था कि जब उन्हें हटाने की प्रक्रिया संसद में लंबित है तो यह जांच क्यों? यह प्रश्न वाजिब लग सकता है लेकिन असल में प्रश्न की नीयत ठीक नहीं है। असल सवाल यह है कि जस्टिस यादव के ख़िलाफ़ महीनों से दिए गए नोटिस पर राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कोई कार्यवाही क्यों नहीं की? सवाल यह भी है कि नियमों, क़ानूनों की इतनी फ़िक्र सिर्फ़ जस्टिस यादव के पक्ष में ही क्यों? इस चिंता को जस्टिस यशवंत वर्मा की तरफ़ क्यों नहीं ले जाया गया? उनकी आंतरिक जांच पर रोक क्यों नहीं लगवाई गई? धनखड़ तो यहाँ तक चाहते थे कि जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ FIR हो! लेकिन यह सब उन्हें जस्टिस शेखर यादव के मामले में नहीं दिखा।
    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को केवल संविधान के अनुसार अनुच्छेद 124(4) और 217 के अंतर्गत ही हटाया जा सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ऐसे कई मामले हो सकते हैं, जहां न्यायाधीश का आचरण महाभियोग की श्रेणी में नहीं आता, पर न्यायिक गरिमा को ठेस पहुंचाता है। और ऐसे मामले में आंतरिक जांच करवायी जा सकती है। 
    शायद CJI जस्टिस खन्ना सरकार के साथ इस मामले में टकराव नहीं चाहते रहे होंगे इसलिए जस्टिस यादव के ख़िलाफ़ आंतरिक जांच बंद कर दी गई। यह भी सच है कि आंतरिक जांच में जस्टिस यादव के दोषी पाये जाने की संभावना ज़्यादा होती! संसद द्वारा पद से हटाए जाने के लिए सरकार का समर्थन जरूरी है और जस्टिस यादव के अल्पसंख्यक विरोधी रूख को लेकर सरकार शायद ही उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही में भाग लेती!  
    अब इस मामले को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने ले लिया है, जिनके ख़ुद के ऊपर पद से हटाए जाने का 55 सांसदों का नोटिस पिछले 6 महीने से धूल खा रहा है। वही धनखड़ जिन्हें अब तक के सबसे महान फैसले-केशवानंद भारती- से घोर असहमति है, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद-142 इस्तेमाल करने पर असहमति है। एक वृहद नजरिये से देखें तो पता चलेगा कि यह न्याय के प्रशासन और संविधान का नहीं बल्कि एक विचार विशेष को पूरे  देश में थोपने का है। भाजपा और आरएसएस ऐसे नेताओं से पटी पड़ी है जिन्हें लगता है कि मुसलमानों को मूल अधिकारों में अलग से संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। सरकार के चहेते और झूठी सामग्री फैलाने में माहिर गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे को ही ले लीजिए उन्हें लगता है कि मुसलमानों को संविधान में अलग से यह अधिकार नहीं मिलना चाहिए। लेकिन जिन्होंने संविधान बनाया, डॉ. अंबेडकर, उनका कहना है कि  “जहां तक मेरी अपनी बात है, मुझे कोई संदेह नहीं कि संविधान सभा ने अल्पसंख्यकों के लिए जो संरक्षण प्रदान किए हैं, वे बिलकुल समझदारी और दूरदर्शिता से किए गए हैं।”
    एक तरफ़ एक ऐसे जज हैं जिन पर आर्थिक भ्रष्टाचार का मामला है तो दूसरी तरफ़ एक ऐसे जज हैं जिन पर देश में सांप्रदायिक तनाव फैलाने, सौहार्द्र बिगाड़ने और राष्ट्रीय एकता के प्रवाह को बाधित करने का आरोप है। दोनों ही सजा योग्य हैं लेकिन दोनों में से कौन ज़्यादा घातक है? यह ऐसा समय है जब भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर चोट लगी हुई है, पड़ोसी देश पाकिस्तान और उसके पाले हुए आतंकी यह जानते हैं कि भारत में चल रहे अल्पसंख्यक विरोधी अभियान से वो फ़ायदा उठा सकते हैं, भारत को अपना पक्ष रखने के लिए, यह दिखाने के लिए कि सभी धर्म एक साथ हैं, सभी धर्मों के लोगों के दल को ऑपरेशन सिंदूर के तहत दुनिया भर में भेजा गया है, इसके बावजूद देश के भीतर चल रहे अल्पसंख्यक विरोधी अभियानों पर रोक नहीं लगाई जा रही है। यह देश को भीतर से तोड़ने का काम कर रहा है। अगर जस्टिस यादव जैसों को छोड़ दिया जाता है तो यह संदेश स्पष्ट हो जाएगा कि भारत बहुसंख्यकवादी शासन की घोषणा कर चुका है! यह ठीक नहीं होगा। 
    डॉ. आंबेडकर को लगता था कि “यह सच है कि हमारे कानून में एक नियम है कि सभी प्रश्न बहुसंख्यकों द्वारा तय किए जाएंगे। लेकिन मैं आपसे इस सिद्धांत के प्रति बहुत सावधान रहने के लिए कहूंगा। यह हमारे पास सबसे खतरनाक सिद्धांतों में से एक है। बहुसंख्यक शासन को केवल सुविधा के लिए स्वीकार किया गया है… लेकिन भगवान के लिए, इस सिद्धांत का बहुत अधिक उपयोग न करें। इससे बहुत सारी कठिनाइयाँ पैदा होंगी।”
    ऐसी कठनाइयाँ न आयें इसलिए जस्टिस यादव को उनके पद से हटाए जाने की प्रक्रिया जरूरी है ताकि भारत पूरी दुनिया में यह संदेश भेज सके कि भारत में अल्पसंख्यक पूरी तरह सुरक्षित हैं। यह संदेश कि भारत अपनी न्यायपालिका में ऐसे जजों को बर्दाश्त नहीं करेगा जो किसी धर्म विशेष का प्रतिनिधि बनकर बैठे हैं। 
    इसे ख़त्म करने का एक मात्र तरीका है-जज साहब को उनके पद से हटाया जाना। न्यायपालिका किसी भी हालात में सांप्रदायिक ताकतों को मंच प्रदान नहीं कर सकती क्योंकि यह अंतिम संस्थान है जहाँ से भारत की अखंडता अक्षुण्ण राखी जा सकती है।
    जस्टिस यादव ने सिर्फ न्यायपालिका का मान नहीं गिराया है बल्कि उनकी भाषा ने दशकों से चली आ रही भारतीय एकता के प्रवाह को रोकने की कोशिश की है। जस्टिस यादव की धार्मिक आस्था न्याय प्रशासन में बाधा बन रही है। जस्टिस यादव, केशवानंद भारती(1973) में तय की गई सार्वभौमिक संवैधानिक सिद्धांतों के ख़िलाफ़ जाकर खड़े हैं। उनके दिए गए व्याख्यान के बाद कायदे से हर उस आदेश की समीक्षा होनी चाहिए जिसमें कोई एक मुस्लिम पक्ष शामिल रहा हो। उनका व्याख्यान उनकी सोच दर्शाता है। यह भी माना जाना चाहिए कि वो देश के करोड़ों अल्पसंख्यकों के लिए न्याय करने में अक्षम हैं। इसे संविधान और न्याय को संरक्षित करने के रूप में देखा जाना चाहिए और किसी भी हालत में इसे न्यायपालिका बनाम संसद की लड़ाई नहीं बनने देना चाहिए।
    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleबिहार के मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव… कांग्रेस आए चाहे जाए, चुनाव के पहले रणनीति तय
    Next Article नागा साधुओं की रहस्यमयी धरोहर! जहां से कोई लौटकर नहीं आया, क्या है पगारा की बावड़ी?
    Janta Yojana

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    Related Posts

    ईरान ने किया इज़राइल पर जवाबी हमला

    June 15, 2025

    ईरान इसराइल ख़तरनाक मोड पर?

    June 14, 2025

    Satya Hindi News Bulletin। 14 जून, दिनभर की ख़बरें

    June 14, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    ग्रामीण भारत

    गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

    December 26, 2024

    बिहार में “हर घर शौचालय’ का लक्ष्य अभी नहीं हुआ है पूरा

    November 19, 2024

    क्यों किसानों के लिए पशुपालन बोझ बनता जा रहा है?

    August 2, 2024

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    July 20, 2024

    शहर भी तरस रहा है पानी के लिए

    June 25, 2024
    • Facebook
    • Twitter
    • Instagram
    • Pinterest
    ग्राउंड रिपोर्ट

    केरल की जमींदार बेटी से छिंदवाड़ा की मदर टेरेसा तक: दयाबाई की कहानी

    June 12, 2025

    जाल में उलझा जीवन: बदहाली, बेरोज़गारी और पहचान के संकट से जूझता फाका

    June 2, 2025

    धूल में दबी जिंदगियां: पन्ना की सिलिकोसिस त्रासदी और जूझते मज़दूर

    May 31, 2025

    मध्य प्रदेश में वनग्रामों को कब मिलेगी कागज़ों की कै़द से आज़ादी?

    May 25, 2025

    किसान मित्र और जनसेवा मित्रों का बहाली के लिए 5 सालों से संघर्ष जारी

    May 14, 2025
    About
    About

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    We're social, connect with us:

    Facebook X (Twitter) Pinterest LinkedIn VKontakte
    अंतराष्ट्रीय

    पाकिस्तान में भीख मांगना बना व्यवसाय, भिखारियों के पास हवेली, स्वीमिंग पुल और SUV, जानें कैसे चलता है ये कारोबार

    May 20, 2025

    गाजा में इजरायल का सबसे बड़ा ऑपरेशन, 1 दिन में 151 की मौत, अस्पतालों में फंसे कई

    May 19, 2025

    गाजा पट्टी में तत्काल और स्थायी युद्धविराम का किया आग्रह, फिलिस्तीन और मिस्र की इजरायल से अपील

    May 18, 2025
    एजुकेशन

    ISRO में इन पदों पर निकली वैकेंसी, जानें कैसे करें आवेदन ?

    May 28, 2025

    पंजाब बोर्ड ने जारी किया 12वीं का रिजल्ट, ऐसे करें चेक

    May 14, 2025

    बैंक ऑफ बड़ौदा में ऑफिस असिस्टेंट के 500 पदों पर निकली भर्ती, 3 मई से शुरू होंगे आवेदन

    May 3, 2025
    Copyright © 2017. Janta Yojana
    • Home
    • Privacy Policy
    • About Us
    • Disclaimer
    • Feedback & Complaint
    • Terms & Conditions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.