सावरकर-गोडसे परिवार के संबंधों को अदालत की कार्यवाही में रिकॉर्ड में लाने के मामले में राहुल गांधी को झटका लगा है। पुणे की विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि विनायक दामोदर सावरकर का नाथूराम गोडसे के साथ पारिवारिक संबंध था। राहुल गांधी ने अपनी याचिका में मांग की थी कि मानहानि मामले में शिकायतकर्ता सत्यकी सावरकर की मातृपक्षीय वंशावली को रिकॉर्ड में लाया जाए। सत्यकी सावरकर, विनायक सावरकर के भाई अशोक और हिमानी सावरकर के पुत्र हैं। हिमानी नाथूराम गोडसे की भतीजी हैं।
राहुल गांधी ने अपनी याचिका में कहा था कि सत्यकी ने जानबूझकर अपनी मातृपक्षीय वंशावली को छिपाया, ताकि सावरकर और गोडसे परिवारों के बीच संबंध रिकॉर्ड में न आएँ। हालाँकि, विशेष न्यायाधीश अमोल शिंदे ने 28 मई को अपने आदेश में कहा कि मातृपक्षीय वंशावली को रिकॉर्ड में लाना इस मानहानि मामले के लिए ज़रूरी नहीं है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार न्यायाधीश शिंदे ने अपने आदेश में कहा, ‘यह मामला केवल लंदन में राहुल गांधी द्वारा विनायक दामोदर सावरकर के ख़िलाफ़ कथित तौर पर की गई मानहानि वाली टिप्पणी से संबंधित है। शिकायतकर्ता सत्यकी सावरकर, विनायक सावरकर के भाई के पोते हैं। सीआरपीसी की धारा 199(1) के अनुसार, भारतीय दंड संहिता के अध्याय XXI के तहत अपराध के लिए केवल पीड़ित व्यक्ति ही शिकायत दर्ज कर सकता है। शिकायतकर्ता इस मामले में पीड़ित व्यक्ति लगता है।’
न्यायाधीश ने आगे कहा कि यह साबित करने की ज़िम्मेदारी शिकायतकर्ता सत्यकी पर है कि राहुल गांधी ने लंदन में दिए अपने भाषण में सावरकर की मानहानि की। अगर सत्यकी यह साबित करने में विफल रहते हैं, तो राहुल गांधी को बरी कर दिया जाएगा। कोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि हिमानी अशोक सावरकर की वंशावली इस मामले से संबंधित नहीं है, और न ही इसकी कोई विवादित स्थिति है।
राहुल गांधी की याचिका में क्या था?
राहुल गांधी ने अपने वकील मिलिंद पवार के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया था कि सत्यकी की मां हिमानी मूल रूप से गोडसे परिवार से हैं, जो नाथूराम गोडसे की भतीजी हैं। इसके बावजूद सत्यकी ने ‘जानबूझकर, व्यवस्थित और चतुराई से’ अपनी मातृपक्षीय वंशावली को छिपाया। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि सत्यकी ने यह तथ्य छिपाया कि विनायक सावरकर महात्मा गांधी की हत्या के मामले में सह-आरोपी थे, हालाँकि उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था।
राहुल गांधी ने अपनी याचिका में ‘ऐतिहासिक तथ्यों’ का हवाला देते हुए कहा कि सावरकर और गोडसे दोनों ‘हिंदू राष्ट्र’ के कट्टर समर्थक थे और वे मुसलमानों और ईसाइयों को भारत में ‘असंगत’ मानते थे। उन्होंने दावा किया कि दोनों ने मिलकर महात्मा गांधी की हत्या की साज़िश रची, क्योंकि वे गांधी को विभाजन के दौरान मुसलमानों के प्रति ‘नरम’ मानते थे।
याचिका में कहा गया कि सावरकर दो-राष्ट्र सिद्धांत के प्रमुख समर्थक थे, जिसके तहत हिंदुओं और मुसलमानों को अलग-अलग राष्ट्र माना गया। यह विचार 1937 में सावरकर ने व्यक्त किया और 1943 में इसे और मजबूत किया। इसी ने बाद में भारत के विभाजन की आधारशिला रखी।
अंग्रेज़ी वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार राहुल गांधी ने सावरकर की 1963 में प्रकाशित पुस्तक ‘सिक्स ग्लोरियस ईपोक्स ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री’ का हवाला देते हुए दावा किया कि सावरकर ने मुसलमानों और ईसाइयों को हिंदू धर्म को नष्ट करने वाला बताया। याचिका में यह भी कहा गया कि सावरकर ने बलात्कार को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की वकालत की। उन्होंने यह भी लिखा था कि युवा और सुंदर मुस्लिम लड़कियों को पकड़ा जाना चाहिए, धर्मांतरित किया जाना चाहिए और मराठा योद्धाओं को इनाम के रूप में दिया जाना चाहिए, जैसे मुस्लिम शासक टीपू सुल्तान ने हिंदू महिलाओं को अपने योद्धाओं के बीच बांटा था।
सत्यकी सावरकर ने अपनी शिकायत में दावा किया था कि राहुल गांधी ने लंदन में अपने भाषण में कहा था कि सावरकर ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि कैसे उन्होंने और उनके दोस्तों ने एक मुस्लिम युवक पर हमला किया और इसका ‘आनंद’ लिया। सत्यकी ने इसे सावरकर की मानहानि बताया।
पुणे की विशेष कोर्ट ने राहुल गांधी की याचिका को खारिज करते हुए साफ़ किया कि इस मामले में केवल कथित मानहानिकारक बयान की जाँच होगी और सावरकर-गोडसे परिवार के संबंध इसकी प्रासंगिकता नहीं रखते। यह मामला अब सत्यकी सावरकर पर निर्भर करता है कि वे राहुल गांधी के ख़िलाफ़ अपने दावों को साबित करें।