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    Home » स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?
    ग्रामीण भारत

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    Janta YojanaBy Janta YojanaJuly 20, 2024Updated:August 11, 2024No Comments7 Mins Read
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    देश को स्वच्छ बनाने के लिए पिछले कुछ वर्षों से केंद्र के स्तर पर लगातार प्रयास किये जाते रहे हैं. एक ओर जहां स्वच्छ भारत अभियान चलाया जाता है वहीं दूसरी ओर राज्य के साथ साथ शहरी स्तर पर भी स्वच्छता सर्वेक्षण कराये जा रहे हैं. जिसमें देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया जाता है. इसमें देश के सबसे साफ़ शहर को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया जाता है. स्वच्छता सर्वेक्षण 2023 की अखिल भारतीय रैंकिंग में बिहार को 27 राज्यों में 15वां स्थान मिला है. वहीं इस सर्वेक्षण में बिहार के 142 शहर शामिल हुए थे. इस बार के सर्वेक्षण में राजधानी पटना ने अपनी स्थिति को सुधारा अवश्य है लेकिन अब भी वह टॉप 10 की सूची से बहुत दूर है. एक लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहरों में पटना की ऑल इंडिया रैंकिंग 77 रही. यह सर्वेक्षण बताता है कि एक राजधानी के तौर पर पटना को स्वच्छता की दिशा में अभी और कई महत्वपूर्ण कदम उठाने बाकी हैं.

    Garbage collection vehicle in Adalatganj slum area

     
    दरअसल पटना के कुछ इलाके अभी भी ऐसे हैं जहां आज भी साफ़-सफाई बहुत अधिक नज़र नहीं आती है. इन्हीं में एक अदालतगंज स्थित स्लम बस्ती भी है. जहां स्वच्छता का विशेष प्रभाव नज़र नहीं आता है. पटना सचिवालय से कुछ ही दूरी पर स्थित इस स्लम बस्ती की आबादी लगभग एक हजार के आसपास है. जहां करीब 60 प्रतिशत ओबीसी और 20 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय निवास करते हैं. तीन मोहल्ले अदालतगंज, ईख कॉलोनी और ड्राइवर कॉलोनी में विभाजित इस स्लम एरिया में साफ़ सफाई की बहुत कमी नज़र आती है. हालांकि स्वच्छ भारत के तहत कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां भी यहां आती हैं, लेकिन यहां के लोगों का कहना है कि यह गाड़ियां नियमित रूप से नहीं आती हैं, जिसके कारण गंदगी और कूड़े का ढ़ेर जमा हो जाता है. जिससे आसपास की हवा प्रदूषित होती है और इसका प्रभाव यहां रहने वाले बच्चों की सेहत पर देखने को मिलता है. इस संबंध में बस्ती की 18 वर्षीय नंदिनी कहती है कि “हमारे बस्ती की स्थिति बहुत दयनीय है. जहां तहां कूड़ा फैला रहता है. जो सड़क और नाली में बहता है. जिससे निकलने वाली दुर्गंध से लोग परेशान रहते हैं.”
     
    वहीं 70 वर्षीय रामकली देवी कहती हैं कि “कूड़े कचरे से निकलने वाली दुर्गंध से सांस लेना मुश्किल हो जाता है. प्रतिदिन कचरा गाड़ी के नहीं आने के कारण अक्सर लोग अपने घर का कूड़ा बाहर फेंक देते हैं. जिससे कॉलोनी की हवा प्रदूषित होती रहती है.” वह कहती हैं कि “यदि इन कूड़े को कॉलोनी से बाहर फेंकने के लिए कोई एक स्थान नियमित कर दिया जाए तो समस्या का हल निकल सकता है. लेकिन नगर निगम के कर्मचारियों द्वारा ऐसा नहीं करने दिया जाता है. वहीं कूड़े वाली गाड़ी जब नियमित रूप से नहीं आएगी तो लोग अपने घर का कूड़ा इधर उधर ही फेकेंगे.” वहीं 32 वर्षीय पिंकी देवी कहती हैं कि “जब कचरा उठाने वाली गाड़ी कॉलोनी में नहीं आती है तो हम अपने घर का कचरा बाहर रख देते हैं. जिसे आवारा कुत्ते खाने की लालच में फाड़ कर इधर उधर बिखरा देते हैं. अक्सर वह कचरे या तो कॉलोनी की रोड पर पड़े होते हैं या उड़ कर नालियों में चले जाते हैं.” पिंकी देवी कहती हैं कि अक्सर कॉलोनी के बच्चे चिप्स और कुड़कुड़े खाकर उसके पैकेट नालियों में फेंक देते है. जिससे वह जाम हो जाता है और उसका गंदा पानी सड़क और आसपास के घर तक पहुंच जाता है. जिससे न केवल लोगों को परेशानी होती है बल्कि इससे बीमारियों के फैलने का भी खतरा बना रहता है. अब बारिश का मौसम आ गया है. ऐसे में इन कचड़ों की वजह से जाम होती नालियां और भी अधिक उफनने लगेंगी. इसका पानी आसपास के घरों के अंदर तक चला जाता है. यदि कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां प्रतिदिन आएंगी तो इस प्रकार की समस्या का काफी हद तक हल संभव है.”

    Dirt spread in Adalatganj slum area.

     
    वहीं 12वीं में पढ़ने वाली 17 वर्षीय निकिता कहती है कि “अक्सर कॉलोनी की लड़कियां माहवारी के दौरान इस्तेमाल किये पैड्स को सही जगह डंप करने की बजाए इधर उधर फेंक देती हैं. जिन पर मक्खियां बैठती हैं और वही मक्खियां फिर लोगों के खाने पर बैठ कर उन्हें दूषित कर बीमार कर देती हैं. अधिकतर किशोरियां इससे फैलने वाली बिमारियों से अनजान होती हैं.” वह कहती है कि इसके बारे में कई बार स्कूल में भी बताया जाता है और लड़कियां इसका ख्याल भी रखती हैं, लेकिन घर पर इसके उचित निस्तारण की व्यवस्था नहीं होने के कारण वह इसे खुले में फेंकने पर मजबूर हो जाती हैं. कॉलोनी की बुज़ुर्ग सुष्मा देवी कहती हैं कि पटना में कई स्थानों पर विकास कार्य चल रहे हैं. इसके तहत पुल और ओवरब्रिज का निर्माण किया जा रहा है. अदालतगंज के करीब भी आवागमन को सुलभ बनाने के लिए एक पुल का निर्माण किया जा रहा है. इसके लिए इस स्लम बस्ती के पास से गुजरने वाले बड़े नाले को ब्लॉक कर दिया गया है. जिससे उसका सारा गंदा पानी अदालतगंज और ड्राइवर कॉलोनी में फैल रहा है. इससे जहां लोगों को आने जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर यह बिमारियों का भी कारण बनता जा रहा है. अब जबकि मानसून ने बिहार में दस्तक दे दी है तो बारिश में इसका पानी और भी तेज़ी से फैलने का खतरा बन जाएगा.
     
    इस स्लम बस्ती में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका लक्ष्मी देवी और सहायिका मेतर देवी बताती हैं कि इस बस्ती में कोई भी आशा वर्कर की नियुक्ति नहीं है. ऐसे में यदि कोई गर्भवती महिला या बच्चे बीमार होते हैं तो वही उन्हें अस्पताल में एडमिट कराने का काम करती हैं. अधिकतर बच्चे गंदगी से फैलने वाली बीमारी के शिकार होते हैं. यदि इस स्लम बस्ती में साफ़ सफाई का समुचित ध्यान रखा जाए तो बहुत से बच्चों को बीमारी से बचाया जा सकता है. वह कहती हैं कि अक्सर लोग जागरूकता के अभाव में स्वच्छता के महत्व से अनजान रहते हैं. जिसकी वजह से वह घर के कूड़े को इधर उधर फेंक देते हैं. वहीं समाज सेविका फलक कहती हैं कि ‘इस स्लम एरिया के लोगों का कहना सही है कि कई बार दो तीन दिनों तक कूड़ा उठाने वाली गाड़ी यहां आती ही नहीं है. लेकिन यदि लोग स्वच्छता के प्रति जागरूक हो जाएं तो इसका समाधान निकाला जा सकता है. इसके लिए बस्ती वालों को सामाजिक स्तर पर योजनाबद्ध रूप से काम करने की ज़रूरत है. सूखे और गीले कचरे को अलग कर उसके डंप करने की व्यवस्था करने की ज़रूरत है.’ वह कहती हैं कि हर बात के लिए सरकार और प्रशासन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. यदि कॉलोनी के लोग सामाजिक रूप से इसका हल तलाशें तो प्रतिदिन कचरे का स्थाई निस्तारण संभव हो सकता है.
     
    स्वच्छता सर्वेक्षण 2023 में जिन मापदंडों के आधार पर स्वच्छ शहर का चयन किया गया था उसमें कूड़ा इकट्ठा करना, ट्रांसपोर्ट करना, कूड़े को प्रोसेस और नष्ट करना, सस्टेनेबल सैनिटेशन, इलाके का सौंदर्यीकरण, अतिक्रमण और नाली के पानी का ट्रीटमेंट प्रमुख रूप से शामिल था. इस आधार पर यदि हम अदालतगंज के इस स्लम बस्ती का जायज़ा लें तो इसमें काफी कमियां नज़र आएंगी, हालांकि इस कमी को दूर किया जा सकता है. लेकिन केवल प्रशासन और नगर निगम के ऊपर ज़िम्मेदारी डाल कर हम इससे मुक्त नहीं हो सकते हैं बल्कि इसके लिए सामाजिक स्तर पर जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है. यह बताने की ज़रूरत है कि यदि कचड़ा उठाने वाली गाड़ी किसी कारणवश नहीं आती है तो इसका अस्थाई प्रबंधन किस प्रकार किया जाए कि वह इधर उधर न फैले. शायद इस प्रकार के छोटे छोटे कदम ही अदालतगंज जैसे स्लम बस्तियों को स्वच्छ भारत के नक़्शे पर प्रमुखता से उभार सकते हैं.

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