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    Home » जॉर्ज सोरोस से जुड़ी संस्था पर बेंगलुरु में ईडी की छापेमारी क्यों?
    भारत

    जॉर्ज सोरोस से जुड़ी संस्था पर बेंगलुरु में ईडी की छापेमारी क्यों?

    By March 18, 2025No Comments6 Mins Read
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    ईडी ने मंगलवार को बेंगलुरु में आठ स्थानों पर छापेमारी की। इसमें अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस द्वारा समर्थित ओपन सोसाइटी फाउंडेशन यानी ओएसएफ के परिसर भी शामिल हैं। यह कार्रवाई विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम यानी फेमा के कथित उल्लंघन की जांच के तहत की जा रही है। यह घटना न केवल वित्तीय अनियमितताओं की ओर इशारा करती है, बल्कि भारत में विदेशी फंडिंग और राजनीतिक विवाद के मुद्दों को भी उजागर करती है। यह राजनीतिक विवाद का मुद्दा इसलिए भी है क्योंकि सोरोस मोदी सरकार की कई बार तीखी आलोचना कर चुके हैं और बीजेपी लगातार जॉर्ज सोरोस को राहुल गांधी और कांग्रेस से जोड़कर हमला करती रही है। 

    राजनीतिक विवाद की वजहों को जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर ईडी के छापे की यह कार्रवाई क्यों की गई है। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि गृह मंत्रालय ने 2016 में ओएसएफ़ को ‘प्रायर रेफरेंस कैटेगरी’ में डाल दिया था, जिससे इसे भारत में बिना सरकारी अनुमति के फंड देने से रोक दिया गया था। लेकिन आरोप है कि ओएसएफ़ ने भारत में अपनी सहायक संस्थाओं के ज़रिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और कंसल्टेंसी फीस के रूप में फंड लाकर कई एनजीओ को दिया, जो ईडी के अनुसार फेमा क़ानून का उल्लंघन है।

    यह ओएसएफ़ उस जॉर्ज सोरोस द्वारा समर्थित संगठन है जो कई मौक़ों पर मोदी सरकार की आलोचना कर चुके हैं। फरवरी 2023 में जॉर्ज सोरोस ने म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था। उन्होंने गौतम अडानी और हिंडनबर्ग रिपोर्ट का ज़िक्र करते हुए कहा था कि ‘मोदी लोकतांत्रिक नेता नहीं हैं और अडानी का मामला भारत में लोकतंत्र की वापसी का दरवाजा खोल सकता है।’

    इसके बाद केंद्र सरकार के कई मंत्रियों ने सोरोस को भारत विरोधी एजेंडा रखने वाला और विदेशी ताक़तों का समर्थन करने वाला व्यक्ति बताया था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ईडी की यह कार्रवाई केवल विदेशी फंडिंग के नियमों के उल्लंघन की जांच है, या फिर यह राजनीतिक बयानबाजी से जुड़ी कार्रवाई भी है

    दरअसल, ओपन सोसाइटी फाउंडेशन दुनियाभर में लोकतंत्र, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता देता है। लेकिन भारत में कई बार विदेशी फंडिंग को लेकर सरकार की सख्ती देखने को मिली है। पिछले कुछ वर्षों में एमनेस्टी इंटरनेशनल, ग्रीनपीस और अन्य कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर भी सरकार ने शिकंजा कसा है।

    मोदी सरकार कहती रही है कि भारत में किसी भी विदेशी संस्था को अनियमित रूप से पैसा भेजने की अनुमति नहीं दी जा सकती, खासकर अगर वह पैसे सामाजिक और राजनीतिक बदलाव लाने के लिए इस्तेमाल किए जाएं। सरकार के अनुसार, ओएसएफ़ के फंडिंग पैटर्न की जांच ज़रूरी थी क्योंकि यह भारत में नीति और विचारधारा को प्रभावित करने की कोशिश कर सकता था।

    विपक्षी दल ऐसी कार्रवाइयों को राजनीतिक बदले की कार्रवाई के रूप में देखते रहे हैं। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल लगातार कहते रहे हैं कि सरकार उन संस्थाओं को निशाना बना रही है जो सत्ताधारी दल के विचारों से अलग सोच रखती हैं।

    बता दें कि राहुल गांधी पीएम मोदी और अडानी पर हमला कर रहे हैं तो बीजेपी आरोप लगाती रही है कि राहुल गांधी अरबपति जॉर्ज सोरोस और समाचार पोर्टल संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग परियोजना यानी ओसीसीआरपी के साथ एक त्रिकोण का हिस्सा हैं। उसका यह भी आरोप है कि इसका उद्देश्य भारत को अस्थिर करना है। तो सवाल है कि आख़िर जॉर्ज सोरोस कौन हैं और ऐसी प्रतिक्रियाएँ क्यों आ रही हैं 

    कौन हैं जॉर्ज सोरोस

    जॉर्ज सोरोस दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक हैं। वह मूल रूप से हंगरी के हैं, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के समय उन्हें अपना देश हंगरी छोड़ना पड़ा था। 1947 में वह लंदन पहुंचे थे और उन्होंने यहीं से लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में फिलोसोफी की पढ़ाई की। बाद में वह अमेरिका चले गए। वह बहुत बड़े निवेशक हैं। लेकिन अरबपति बनने से पहले सोरोस ने काफ़ी ज़्यादा असहिष्णुता को झेला है। 1930 में हंगरी में जन्मे सोरोस ने 1944-1945 के नाजी कब्जे के दौरान किसी तरह खुद को ज़िंदा बचाए रखा। नाजी कब्जे के कारण 500,000 से अधिक हंगरी के यहूदियों की हत्या हुई। जॉर्ज सोरोस की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि उनका अपना यहूदी परिवार झूठे पहचान पत्रों को हासिल करके, अपना इतिहास छुपाकर और दूसरों को भी ऐसा करने में मदद करके बचा रहा।

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    दूसरे विश्व युद्ध के बाद कम्युनिस्टों ने हंगरी में सत्ता को मज़बूत किया, लेकिन सोरोस ने लंदन के लिए 1947 में बुडापेस्ट को छोड़ दिया। उन्होंने वहाँ पर रेलवे कुली के रूप में अंशकालिक रूप से काम किया और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए नाइट-क्लब वेटर के रूप में काम किया। 1956 में वह वित्त और निवेश की दुनिया में प्रवेश करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। वहीं उन्होंने अपनी किस्मत बनाई।

    1973 में उन्होंने अपना हेज फंड, सोरोस फंड मैनेजमेंट लॉन्च किया और संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास में सबसे सफल निवेशकों में से एक बन गए।

    सोरोस ने 1979 में रंगभेद के मद्देनज़र काले दक्षिण अफ़्रीकी लोगों को छात्रवृत्ति देकर अपनी चैरिटी शुरू की। 1980 के दशक में उन्होंने कम्युनिस्ट हंगरी में पश्चिम की अकादमिक यात्राओं को फंड देकर और स्वतंत्र सांस्कृतिक समूहों और अन्य पहलों का समर्थन करके विचारों के खुले आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में मदद की।

    बर्लिन की दीवार के गिरने के बाद उन्होंने केंद्रीय यूरोपीय विश्वविद्यालय को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख स्थान के रूप में बनाया। वह समलैंगिक विवाह प्रयासों के मुखर समर्थक बन गए।

    वह बुडापेस्ट में सेंट्रल यूरोपियन यूनिवर्सिटी के संस्थापक और प्रमुख फंड देने वाले हैं। यह सामाजिक विज्ञान के अध्ययन के लिए एक प्रमुख क्षेत्रीय केंद्र है। जॉर्ज सोरोस की वेबसाइट के अनुसार उनके नेतृत्व में ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जवाबदेह सरकार और न्याय व समानता को बढ़ावा देने वाले समाजों के लिए लड़ने वाले दुनिया भर के लोगों और संगठनों का समर्थन किया है। 

    2017 में ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन ने घोषणा की कि सोरोस ने अपनी संपत्ति का 18 बिलियन डॉलर फ़ाउंडेशन के भविष्य के काम की फंडिंग के लिए स्थानांतरित कर दिया है, जिससे 1984 से फ़ाउंडेशन को दिया गया उनका कुल दान 32 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है।

    हालाँकि, सोरोस विवादों में भी रहे हैं। फोर्ब्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 16 सितंबर 1992 में ब्रिटेन की करेंसी पाउंड में भारी गिरावट दर्ज की गई थी। इसके पीछे जॉर्ज सोरोस का हाथ माना गया था। इसके चलते उन्हें ब्रिटिश पाउंड को तोड़ने वाला इंसान भी कहा जाता है।

    सोरोस कश्मीर को लेकर भी विवादित बयान दे चुके हैं। दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में सोरोस ने कहा था कि दुनिया में राष्ट्रवाद तेजी से बढ़ रहा है और इसका सबसे खतरनाक नतीजा भारत में देखने को मिला है जहां लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए नेता नरेंद्र मोदी एक हिंदू राष्ट्रवादी देश बना रहे हैं। उन्होंने कहा था कि वो कश्मीर पर कड़ी पाबंदियां लगा रहे हैं। उन्होंने पीएम मोदी पर यह भी आरोप लगाया था कि वो लाखों मुस्लिमों से उनकी नागरिकता छीन रहे हैं। उनके इस बयान के बाद सोरोस भारत में लगातार सुर्खियों में रहे हैं और बीजेपी राहुल गांधी पर सोरोस के साथ नाम जोड़कर तरह तरह के आरोप लगाती रही है।

    (इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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