अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक बड़ा ट्रेड वॉर शुरू कर दिया है जिससे सारी दुनिया की इकोनॉमी में झटके लग रहे हैं। विश्वव्यापी मंदी की आहट सुनाई दे रही है और कारखानों के पहिये धीमे होते जा रहे हैं। लेकिन साथ ही एक और घटना घट रही है और वह यह कि कभी 100 डॉलर प्रति बैरल पर बिकने वाले कच्चे तेल की कीमतें गिरने लगी हैं। आर्थिक उठापटक के इस दौर में कच्चे तेल की मांग घटती जा रही है जबकि उत्पादन है कि बढ़ता जा रहा है या यूं कहें कि बढ़ाया जा रहा है। तेल उत्पादन करने वाले प्रमुख देशों के संगठन ओपेक ने पहले तेल के उत्पादन पर एक कैप लगा रखा था। लेकिन कुछ देशों ने इसे तोड़कर ज्यादा उत्पादन करना शुरू कर दिया। इसकी एक झलक पिछले साल यानी 2024 में दिखी जब तेल का सरप्लस स्टॉक उन देशों में जमा हो गया।
हालत यह है कि इस समय दुनिया भर के
तेल उत्पादक देश कुल मिलाकर हर रोज 10 करोड़ बैरल तेल का उत्पादन कर रहे हैं। इसके
अलावा उनके पास 50 लाख बैरल तेल और उत्पादित करने की क्षमता है। यह अतिरिक्त
क्षमता ओपेक के देशों के लिए चिंता का विषय है क्योंकि तेल की अंतर्राष्ट्रीय मांग
इस समय लगातार घटती जा रही है। इसके बावजूद ओपेक के शीर्ष तेल उत्पादक देश अपना
उत्पादन बढ़ा ही रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों से दुनिया भर के देशों में
कारखानों के पहिये धीमें पड़ गये हैं और उनसे ज्यादा तेल खरीदने की उम्मीद नहीं की
जा सकती है। इसका नतीजा है कि तेल के दाम लगातार गिरते जा रहे हैं और वे कोविड
महामारी काल के करीब जा पहुंचे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय तेल बजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों में पिछले हफ्ते शुक्रवार को 7 फीसदी की गिरावट हुई और आने वाले दिनों में इसमें गिरावट होने की संभावना है क्योंकि मांग और आपूर्ति में कोई मेल नहीं है। चीन और भारत तेल के सबसे बड़े खरीदार या यूं कहें कि आयातक हैं और दोनों ने अपनी खरीदारी कम कर दी है। चीन इस समय इलेक्ट्रिक वाहनों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और वह बड़े पैमाने पर निर्यात भी कर रहा है। इसलिए वहां पेट्रोल-डीजल की मांग में भारी कमी आई है।
इसके अलावा चीन ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा पर भी काफी काम कर रहा है। उसका अंतिम उद्देश्य है कि कच्चे तेल जिसे फ़ॉसिल ऑयल कहा जाता है, उस पर से अपनी निर्भरता कम करे। यही हाल भारत का भी है जिसने इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर लगा दिया और सौर ऊर्जा को भी प्रोत्साहित कर रहा है। नतीजतन हमारी तेल की मांग घटेगी। उधर ओपेक देश हैं कि अपना उत्पादन बढ़ाते जा रहे हैं। इससे डिमांड-सप्लाई मिसमैच हो रहा है जिस कारण से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में दाम गिरते जा रहे हैं और आगे भी गिरेंगे।
लेकिन भारत सरकार ने बजाय दाम
घटाने के सोमवार की शाम को पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी दो रुपये प्रति लीटर बढ़ा
दी। हांलाकि कहा गया कि इसका असर जनता पर नहीं पड़ेगा और इसे समायोजित कर लिया
जायेगा। लेकिन यहां पर सवाल है कि इस समय जबकि जनता को राहत देनी चाहिए थी, सरकार
ने इसे अपनी जेब में डाल लिया। अब जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजारो में कच्चे तेल की
कीमतें ढलान पर हैं, भारत का यह कदम पीछे ले जाने वाला है। हमारे यहां डीजल के दाम
ज्यादा हैं जिसका असर माल ढुलाई पर पड़ता है। भारत में चीन की तुलना में माल ढुलाई
काफी महंगी है जिसका.असर एंड प्रॉडक्ट पर पड़ता है। ऐसे में हमारा निर्यात उतना
नहीं बढ़ रहा है क्योंकि हमारे उत्पाद किफायती नहीं है।
वैसे तो भारत ने बड़े पैमाने पर रूस से कम दामों में तेल खरीदा है लेकिन अगर सभी तेल उत्पादक देशों में दाम गिर जाये तो बात ही क्या है। इसका फायदा देश में ग्राहकों को मिल सकता है। कुछ ही दिनों पहले भारत के पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आशा जताई थी कि अगर कच्चे तेल की कीमतें इसी तरह दबी रहीं तो पेट्रोल, डीजल की कीमतों में कटौती होगी।
उन्होंने जिस विश्वास से यह कहा है तो लगता है
कि थोड़े समय में पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाई जायेंगी। गौरतलब है कि लोक सभा
चुनाव के कुछ पहले पेट्रोल की कीमतें घटाई गई थीं। उसके पहले मई 2022 में भी
पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाई गई थीं। भारत सरकार ने उस समय तेल पर एक्साइज ड्यूटी
घटा दी थी। यूक्रेन वार के समय कच्चे तेल कीमतें 100 डॉलर पर थीं जो कि गिरकर 61
डॉलर प्रति बैरल पर जा चुकी हैं। यह चार सालों के न्यूनतम पर है। और इसमें आगे भी
गिरावट दिख रही है।
दरअसल ट्प के ट्रेड वार का भी सीधा असर कच्चे तेल के उत्पादकों पर पड़ रहा है। तेल का बहुत बड़ा स्टॉक हो गया है जबकि मांग काफी कम है। ट्रप ने खुद ही तेल की कीमतें 50 डॉलर पर रखने का मन बनाया है। ओपेक देश जो तेल की आपूर्ति नियंत्रित करने के लिए उत्पादन में कटौती करते रहे हैं, इस समय उत्पादन बढ़ा रहे हैं। इसका असर साफ दिख रहा है लेकिन वे पीछे हटने वाले नहीं है जिससे भविष्य में कच्चे तेल की कीमतें और गिर सकती हैं।
ऐसे में देखना यह है कि भारत में तेल कंपनियां कब पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाती हैं और जनता को लाभ मिलता है। फिलहाल तो इस पर विराम लग गया दिखता है क्योंकि सरकार ने ड्यूटी बढ़ा दी है। वह अपना खजाना भरती जा रही है और कीमतों में कमी का हिस्सा जनता को देना नहीं चाहती है।