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    Home » बांग्लादेश ने यूएस खुफिया प्रमुख तुलसी गबार्ड के बयान को क्यों खारिज किया?
    भारत

    बांग्लादेश ने यूएस खुफिया प्रमुख तुलसी गबार्ड के बयान को क्यों खारिज किया?

    By March 18, 2025No Comments5 Mins Read
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    प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड के उन बयानों का खंडन किया है, जिनमें बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों के कथित उत्पीड़न का जिक्र किया गया था। बांग्लादेश सरकार ने कहा कि उनके बयान “किसी भी सबूत या विशिष्ट आरोपों पर आधारित नहीं हैं”। गबार्ड ने सोमवार को दिल्ली में रायसीना डायलॉग में हिस्सा लिया। उसके बाद भारत के एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय के उत्पीड़न का मामला उठाया। हालांकि वो भारत में मुस्लिमों और ईसाइयों के उत्पीड़न पर चुप रहीं।

    बांग्लादेश ने तुलसी गबार्ड के बयान पर बहुत तेजी से प्रतिक्रिया दी। गबार्ड का बयान सोमवार को दिल्ली में सामने आया था। लेकिन ढाका में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार जागी हुई थी। उसने सोमवार आधी रात को ही अपनी अधिकृत प्रतिक्रिया जारी कर दी। बांग्लादेश में मुख्य सलाहकार के कार्यालय ने सोमवार रात लगभग आधी रात को एक सत्यापित फेसबुक पोस्ट में कहा, “उनका (गबार्ड का) बयान पूरे बांग्लादेश को एक व्यापक और अनुचित तरीके से पेश कर रहा है।”

    यूनुस के कार्यालय ने कहा कि गबार्ड का एक भारतीय टीवी चैनल पर दिया गया बयान “गुमराह करने वाला और बांग्लादेश की छवि और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाला है। बांग्लादेश एक ऐसा राष्ट्र है, जहां इस्लाम की परंपरा सदैव सभी को साथ लेकर चलने और शांतिपूर्ण रही है। बांग्लादेश ने कट्टरता और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उल्लेखनीय प्रगति की है।”

    अमेरिकी खुफिया प्रमुख, जो इस समय भारत में हैं, ने सोमवार को कहा था कि “हिंदू, बौद्ध, ईसाई और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ लंबे समय से चल रहे दुर्भाग्यपूर्ण उत्पीड़न, हत्याएं और दुर्व्यवहार अमेरिकी सरकार और राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके प्रशासन के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय रहा है।”

    टीवी चैनल को दिए एक इंटरव्यू में, गबार्ड ने बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के “उत्पीड़न और हत्याओं” का आरोप लगाया और कहा कि बांग्लादेश में “इस्लामी आतंकवादियों का खतरा” “इस्लामी खिलाफत के साथ शासन और शासन करने के विचारधारा और उद्देश्य” में निहित है।

    उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस मुद्दे पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ नई बातचीत शुरू की है। तुलसी ने कहा- “राष्ट्रपति ट्रम्प के नए कैबिनेट और बांग्लादेश सरकार के बीच बातचीत अभी शुरू हुई है, लेकिन यह चिंता का एक केंद्रीय क्षेत्र बना हुआ है।”

    लेकिन मुख्य सलाहकार के कार्यालय ने कहा कि बांग्लादेश को “इस्लामी खिलाफत” के विचार से बिना किसी आधार के जोड़ना, उन अनगिनत बांग्लादेशियों और दुनिया भर में उनके मित्रों और साझेदारों के कड़ी मेहनत को कमजोर करता है, जो शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए प्रतिबद्ध हैं। यूनुस के कार्यालय ने कहा कि बांग्लादेश “किसी भी प्रकार की ‘इस्लामी खिलाफत’ से देश को जोड़ने के किसी भी प्रयास की कड़ी निंदा करता है।”

    यूनुस के कार्यालय ने कहा, “राजनीतिक नेताओं और सार्वजनिक हस्तियों को अपने बयान, विशेष रूप से सबसे संवेदनशील मुद्दों पर, वास्तविक ज्ञान पर आधारित होने चाहिए। हानिकारक रूढ़िवादिता को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, डर फैलाने और संभावित रूप से सांप्रदायिक तनाव को भड़काने से बचना चाहिए।”

    हालांकि, मुख्य सलाहकार के दफ्तर ने कहा कि बांग्लादेश, दुनिया के कई देशों की तरह, अतिवाद की चुनौतियों का सामना कर रहा है, “लेकिन यह लगातार अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ साझेदारी में कानून प्रवर्तन, सामाजिक सुधार और अन्य आतंकवाद विरोधी प्रयासों के माध्यम से इन मुद्दों को हल करने के लिए काम कर रहा है।”

    बयान में कहा गया, “अतिवाद और आतंकवाद से निपटने के लिए हमारे साझा ग्लोबल प्रयासों के समर्थन में, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार तथ्यों और सभी देशों की संप्रभुता और सुरक्षा के सम्मान पर आधारित रचनात्मक संवाद में शामिल होने के लिए प्रतिबद्ध है।”

    भारत में पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा की घटनाएँ सामने आई हैं। मॉब लिंचिंग और धार्मिक आधार पर भेदभाव की शिकायतें आती रही हैं। अमेरिकी विदेश विभाग की वार्षिक धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में इन मुद्दों का ज़िक्र होता रहा है, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इसे लेकर भारत पर खुलकर नहीं बोला। गबार्ड के बयान में भारत का ज़िक्र नहीं था, जो संकेत देता है कि अमेरिका की चिंता क्षेत्रीय और रणनीतिक हितों से प्रभावित हो सकती है।

    गबार्ड का ‘इस्लामी आतंकवाद’ शब्द का प्रयोग ट्रंप की पुरानी नीति को दोहराता है, जिसकी आलोचना पहले भी हो चुकी है। यह शब्द आतंकवाद को एक धर्म से जोड़ता है, जो मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह को बढ़ा सकता है।

    आलोचकों का कहना है कि आतंकवाद की विचारधारा को धार्मिक पहचान से अलग करके देखना चाहिए, क्योंकि यह सभी धर्मों में कट्टरपंथ को नज़रअंदाज़ करता है। मिसाल के तौर पर भारत में हिंदू कट्टरपंथ या अमेरिका में ईसाई चरमपंथ पर भी चर्चा हो सकती थी, लेकिन गबार्ड का फोकस ‘इस्लामी’ पर रहा।  यह सवाल है कि क्या यह शब्द ग्लोबल स्तर पर सहयोग को कमजोर करता है या आतंकवाद से लड़ने में मदद करता है इज़राइल भी इसी शब्दावली का प्रयोग करता है।

    रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी

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