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    Home » वक़्फ पैनल ने संशोधन वाली मसौदा रिपोर्ट स्वीकारी; विपक्ष की असहमति क्यों?
    भारत

    वक़्फ पैनल ने संशोधन वाली मसौदा रिपोर्ट स्वीकारी; विपक्ष की असहमति क्यों?

    By January 29, 2025No Comments7 Mins Read
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    वक़्फ विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति ने मसौदा रिपोर्ट और इसमें किए गए संशोधनों को स्वीकार कर लिया है। 30 जनवरी को समिति लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को रिपोर्ट पेश करेगी। दो दिन पहले ही एनडीए सांसदों द्वारा सुझाए गए सभी 14 संशोधनों को मान लिया गया था जबकि विपक्षी सांसदों द्वारा सुझाए गए सभी 44 संशोधनों को खारिज कर दिया गया था। इस अब विपक्षी दलों ने असहमति वाले नोट दिए हैं। असहमति जताने के लिए बुधवार शाम 4 बजे तक का समय दिया गया है। हालाँकि, विपक्षी दलों ने शिकायत की है कि साढ़े छह सौ से ज़्यादा पेज की मसौदा रिपोर्ट को पढ़ने के लिए इतना कम समय दिया गया कि इतने समय में पढ़ना लगभग नामुमकीन है।

    31 सदस्यीय समिति में शामिल विपक्षी सांसदों ने मंगलवार को 655 पन्नों की मसौदा रिपोर्ट को स्वीकार किए जाने से पहले समीक्षा करने के लिए उन्हें दिए गए संक्षिप्त नोटिस की आलोचना की थी। नेताओं ने दावा किया कि उन्हें मंगलवार शाम को मसौदा भेजा गया था और बुधवार सुबह 10 बजे तक अपनी टिप्पणी देने को कहा गया था।

    मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि बुधवार को संयुक्त संसदीय समिति की अंतिम बैठक हुई और इस दौरान मतदान हुआ। इसमें 14 वोट पक्ष में और 11 विपक्ष में पड़े। समिति में संसद के दोनों सदनों से 31 सदस्य हैं- एनडीए से 16 जिसमें से बीजेपी से 12, विपक्षी दलों से 13, वाईएसआरसीपी से एक और एक नामित सदस्य। 

    इस विधेयक को पिछले साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था। इसमें देश में मुस्लिम धर्मार्थ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए 44 विवादास्पद संशोधनों का प्रस्ताव किया गया है। शुरुआत में इसे शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना थी, लेकिन विस्तृत जांच के लिए इसे जेपीसी को भेज दिया गया। हालाँकि जेपीसी की बैठकों में लगातार हंगामा होता रहा है और इस पर विवाद भी हुआ है। पिछले हफ़्ते ही यह समिति फिर विवादों में रही थी। 

    समिति के चेयरमैन जगदंबिका पाल ने 24 जनवरी को तब 10 विपक्षी सांसदों को एक दिन के लिए निलंबित कर दिया था जब बैठक में हंगामा हुआ था। आरोप लगा कि उसने जेपीसी बैठक का दिन बदलकर उसका एजेंडा भी बदल दिया था।

    निलंबित सांसदों ने आरोप लगाया था कि बैठक में अघोषित इमरजेंसी जैसा माहौल रहता है। उन्होंने आरोप लगाया कि कमेटी के चेयरमैन ने किसी सदस्य की बात नहीं सुनी।

    टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा था, ‘जेपीसी बैठक एक अघोषित इमरजेंसी की तरह चलाई जा रही है। अध्यक्ष किसी की नहीं सुनते। कमेटी में सदस्य के तौर पर शामिल भाजपा सांसद सोचते हैं कि वे ही उप प्रधानमंत्री और उप गृहमंत्री हैं।’ हालाँकि बीजेपी सांसदों व समिति के सदस्यों ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था। 

    संयुक्त संसदीय समिति में चली इस कार्यवाही का विपक्षी दलों ने विरोध किया है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि जब बजट सत्र के दौरान संसद में इस विधेयक पर चर्चा होगी तो वे इसका विरोध करेंगे। एएनआई के अनुसार उन्होंने कहा, ‘कल रात हमें 655 पन्नों की मसौदा रिपोर्ट दी गई और किसी के लिए भी इतने कम समय में इतनी लंबी रिपोर्ट पढ़ना और अपनी राय देना मानवीय रूप से असंभव है। फिर भी, हमने प्रयास किया और अपनी असहमति रिपोर्ट दी।’ 

     - Satya Hindi

    ओवैसी ने आगे कहा, ‘यह वक्फ के पक्ष में नहीं है। मैं शुरू से ही कह रहा हूँ कि बीजेपी अपनी विचारधारा के अनुसार मुसलमानों के ख़िलाफ़ यह विधेयक लेकर आई है और इसका उद्देश्य वक्फ बोर्ड को नुक़सान पहुंचाना और उनकी मस्जिदों पर कब्जा करना है। जब यह विधेयक संसद में लाया जाएगा तो हम वहाँ भी इसका विरोध करेंगे। अगर हिंदू, सिख और ईसाई अपने-अपने बोर्ड में अपने धर्म के सदस्य रख सकते हैं तो मुस्लिम वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य कैसे हो सकते हैं’

    रिपोर्ट के अनुसार तृणमूल कांग्रेस सांसद कल्याण बनर्जी ने भी कहा है कि उन्होंने रिपोर्ट पर अपनी असहमति नोट पेश किया है। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में समिति की टिप्पणियां और सिफारिशें पूरी तरह से गलत हैं और पीड़ितों के बयानों पर विचार नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि विचार-विमर्श के दौरान हमने जो कुछ कहा, उस पर विचार नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘सवाल यह उठता है कि हमने जो हितधारकों का विचार व्यक्त किया है, वह अध्यक्ष को क्यों पसंद नहीं आया। मेरे अनुसार, जेपीसी की कार्यवाही मजाक बनकर रह गई है… अन्य सभी विचारों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है।’

    शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत ने कहा कि उन्होंने असहमति पत्र इसलिए जारी किया है, क्योंकि किए गए संशोधन संविधान के खिलाफ हैं। सावंत ने कहा, ‘कल तक लोग वक्फ में चुनाव के जरिए आते थे, लेकिन अब आप चुनाव हटा रहे हैं। वहां लोगों को मनोनीत किया जाएगा और केंद्र सरकार यह काम करेगी। अगर सरकार चुनाव आयोग से जुड़े कानून बदल सकती है, तो वह यहां क्या करेगी आज वक्फ में गैर-मुस्लिमों को लाने का प्रावधान है, तो कल वे हमारे मंदिरों में भी ऐसा ही कर सकते हैं क्योंकि संविधान में समानता का मुद्दा उठेगा।’

    डीएमके सांसद ए राजा ने दावा किया कि मसौदा रिपोर्ट को जल्दबाजी में अपनाया गया है। उन्होंने कहा, ‘कल रात हमें 9.50 बजे मसौदा रिपोर्ट मिली, चेयरमैन कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हम रातो-रात असहमति नोट जमा कर देंगे।’ कांग्रेस सांसद डॉ. सैयद नसीर हुसैन ने कहा, 

    “

    कई आपत्तियां और सुझाव दिए गए थे, जिन्हें इस रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है। सरकार ने अपने अनुसार रिपोर्ट बनाई है। असंवैधानिक संशोधन लाए गए हैं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाया गया है। संशोधन अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिम समुदाय को अलग-थलग करने के लिए लाए गए हैं।


    डॉ. सैयद नसीर हुसैन, कांग्रेस सांसद

    क्या-क्या संशोधन हुए

    वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पर जेपीसी द्वारा मंजूर 14 संशोधनों में से एक वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्यता से जुड़ा है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, यह बदलाव अनिवार्य दो गैर-मुस्लिम सदस्यों और नियुक्त पदेन सदस्य के बीच अंतर करता है। अनिवार्य दो गैर-मुस्लिम सदस्यों के बारे में बिल के शुरुआती मसौदे में बताया गया है। नियुक्त पदेन सदस्य मुस्लिम या गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।

    इसका मतलब यह है कि वक्फ परिषदों में चाहे वे राज्य स्तर पर हों या अखिल भारतीय स्तर पर, कम से कम दो सदस्य ऐसे होंगे जो गैर-मुस्लम होंगे। यदि नियुक्त पदेन सदस्य भी गैर-मुस्लिम हुआ तो ऐसे तीन सदस्य गैर-मुस्लिम हो जाएँगे।

    रिपोर्ट के अनुसार एक अन्य अहम बदलाव में संबंधित राज्य द्वारा चुने गए एक अधिकारी को यह तय करने की जिम्मेदारी दी गई है कि कोई संपत्ति ‘वक्फ’ है या नहीं। पहले, यह निर्णय प्रारंभिक मसौदे के अनुसार जिला कलेक्टर के हाथों में था। 

    तीसरा बदलाव यह है कि यदि विचाराधीन संपत्ति पहले से पंजीकृत हो तो क़ानून लागू होने से पहले से यह प्रभावी नहीं होगा। हालाँकि, कांग्रेस नेता और जेपीसी सदस्य इमरान मसूद ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि लगभग 90 प्रतिशत वक्फ संपत्तियाँ वास्तव में पंजीकृत नहीं हैं। प्रस्तावित बदलावों के साथ-साथ 11 अतिरिक्त बदलावों का सुझाव सत्तारूढ़ बीजेपी के प्रतिनिधियों ने दिया था। 

    अतिरिक्त 11 संशोधनों में से तेजस्वी सूर्या द्वारा प्रस्तावित एक संशोधन में यह प्रावधान है कि भूमि दान करने का इरादा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन करने का प्रमाण देना होगा। इसके अलावा, उन्हें यह पुष्टि करनी होगी कि संपत्ति के समर्पण में कोई छल या हेरफेर शामिल नहीं है।

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