कैश कांड में फँसे दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज और वर्तमान में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा पर बड़ी कार्रवाई के संकेत मिले हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ गंभीर क़दम उठाते हुए उनको पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से सिफारिश की है। यह सिफारिश 14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास पर आग लगने की घटना के बाद आधे जले नोटों के कई बोरे मिलने की जांच के बाद आई है।
इस साल 14 मार्च को नई दिल्ली के लुटियंस क्षेत्र में जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास के स्टोररूम में आग लगने की घटना हुई थी। इस दौरान, दमकल कर्मियों और पुलिस ने कथित तौर पर आधा जले नोटों के बोरे बरामद किए। जस्टिस वर्मा उस समय भोपाल में थे और उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे ‘उनके ख़िलाफ़ साज़िश’ क़रार दिया। इस घटना ने विवाद खड़ा कर दिया और दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने 21 मार्च को अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में ‘गहन जाँच’ की सिफ़ारिश की।
सीजेआई संजीव खन्ना ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए 22 मार्च को तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया। इसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधवालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थीं। इस समिति ने अपनी जांच पूरी कर 7 मई को अपनी रिपोर्ट सीजेआई को सौंपी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इसमें जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ लगे आरोपों की पुष्टि की गई।
जाँच समिति ने जस्टिस वर्मा, उनके स्टाफ़, दमकल अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों के बयान दर्ज किए। इसके अलावा, समिति ने आग की घटना के दौरान ली गई तस्वीरों, वीडियो, और फोरेंसिक विश्लेषण को आधार बनाया। मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के अनुसार, समिति ने पाया कि जस्टिस वर्मा के आवास पर बरामद नकदी का कोई लेखा-जोखा उनके पास नहीं था। रिपोर्ट के आधार पर सीजेआई खन्ना ने जस्टिस वर्मा को दो दिन के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया। सूत्रों का कहना है कि जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का विकल्प दिया गया था। हालांकि, उनके जवाब के बाद सीजेआई ने 8 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समिति की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा का जवाब भेजकर उनके ख़िलाफ़ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की।
इस प्रक्रिया में कई चरण शामिल हैं। प्रस्ताव शुरू करना होता है। लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों या राज्यसभा में 50 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित नोटिस स्पीकर या सभापति को दी जाती है। यदि प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है तो एक तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है। समिति की रिपोर्ट के आधार पर दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना चाहिए। अंत में राष्ट्रपति जज को हटाने का आदेश जारी करते हैं।
जस्टिस वर्मा के मामले में सीजेआई की सिफारिश महाभियोग प्रक्रिया का पहला औपचारिक कदम है। यदि संसद इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाती है तो यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक दुर्लभ घटना होगी, क्योंकि अब तक किसी भी उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के जज को महाभियोग के माध्यम से हटाया नहीं गया है।
इस मामले ने भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही के सवालों को केंद्र में ला दिया है। सीजेआई खन्ना ने इस मामले में अभूतपूर्व पारदर्शिता दिखाई, जब उन्होंने 22 मार्च को दिल्ली हाई कोर्ट की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट, तस्वीरें, और वीडियो को उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया। यह कदम न्यायपालिका के प्रति जनता के विश्वास को मजबूत करने की दिशा में एक अहम प्रयास था।
इसके अलावा इस विवाद के बाद उच्चतम न्यायालय ने 1 अप्रैल को एक पूर्ण अदालत बैठक में सभी 31 जजों के लिए अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने का निर्णय लिया। यह निर्णय जस्टिस वर्मा के मामले से उठी पारदर्शिता की मांग का नताजा था।
जस्टिस वर्मा ने दावा किया कि यह उनके खिलाफ साजिश थी, लेकिन समिति ने उनके दावों को खारिज कर दिया। इसके अलावा, इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा के स्थानांतरण का विरोध करते हुए इसे ‘कचरे का डिब्बा’ बनने से इनकार किया था, जिसने इस मामले को और जटिल बना दिया।
वरिष्ठ अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुमपारा ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस मामले में एफ़आईआर दर्ज करने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे ‘समय से पहले’ बताकर खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि आंतरिक जांच पूरी होने के बाद सभी विकल्प खुले हैं।
सीजेआई खन्ना अगले सप्ताह सेवानिवृत्त होने वाले हैं और उन्होंने इस मामले में अंतिम निर्णय लेने की इच्छा जताई है। यदि जस्टिस वर्मा इस्तीफ़ा नहीं देते तो यह मामला संसद में जाएगा, जहां महाभियोग प्रक्रिया शुरू हो सकती है। यह प्रक्रिया न केवल समय लेने वाली होगी, बल्कि यह न्यायपालिका और विधायिका के बीच संबंधों को भी प्रभावित कर सकती है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला भारतीय न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह न केवल जजों की जवाबदेही को मजबूत करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि गंभीर आरोपों पर त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई कितनी अहम है।
जस्टिस यशवंत वर्मा के कैश कांड ने भारतीय न्यायपालिका के सामने एक अभूतपूर्व चुनौती पेश की है। सीजेआई संजीव खन्ना की सिफारिश और जाँच समिति की रिपोर्ट ने इस मामले में कठोर कार्रवाई की नींव रखी है। यह मामला न केवल जस्टिस वर्मा के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि यह भविष्य में न्यायिक कदाचार के मामलों को संभालने के लिए एक मिसाल भी कायम करेगा।