लोकतंत्र तरह-तरह के ज़िम्मेदार किरदारों का एक समूह है जिन्हें एक साथ हमेशा अस्तित्व में रहना होता है। मीडिया भी एक किरदार है। हर किरदार की तरह इसकी भी अपनी जिम्मेदारी है, चरित्र है जिन्हें, जब तक लोकतंत्र जिंदा है, बदला नहीं जा सकता। इसी तरह कार्यपालिका मतलब सरकार, विधायिका और न्यायपालिका भी हैं। इनमें से किसी के भी मूल चरित्र में बदलाव लोकतंत्र से दूर जाने की प्रवृत्ति बताता है। 2014 के बाद से लगातार मीडिया के किरदार में लोकतंत्र विरोधी बदलाव देखने को मिलता रहा है और सरकार, धनतंत्र, शक्तितंत्र और कानून के दुरुपयोग से संविधान में सुरक्षित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करती रही है। तमाम वैश्विक सूचकांक और रिपोर्टें हैं जो भारत में मीडिया की इस खस्ताहाल स्थिति को बयान करती हैं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सरकार भी एक किरदार है और यह तब बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है जब इसे अपने देश की सीमाओं और नागरिकों की सुरक्षा करनी होती है, जब इसे देश के भीतर चल रहे आंतरिक संघर्ष से निपटना होता है और साथ ही जब इसे देश में ‘बंधुत्त्व’ और ‘अखंडता’ को सुनिश्चित करना होता है। पहलगाम आतंकी हमले में 26 लोगों के मारे जाने के बाद पाकिस्तान को उसकी उद्दंडता के लिए सबक सिखाना ज़रूरी था, इसलिए ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से भारतीय सेना ने सधा हुआ हमला किया जिससे आतंकियों की कमर तोड़ी जा सके और पाकिस्तान के आम नागरिकों को कोई नुक़सान ना हो। पाकिस्तान ने भी पलटवार किया लेकिन भारतीय सेना की तकनीकी दक्षता और आधुनिक युद्ध कौशल की वजह से नाकाम रहा।
10 मई, शाम 5 बजे भारत सरकार ने इस बात की पुष्टि कर दी कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम हो गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ट्रुथ सोशल पर लिखा कि “संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में एक लंबी रात की बातचीत के बाद, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं। दोनों देशों को सामान्य बुद्धि और महान बुद्धिमत्ता का उपयोग करने के लिए बधाई”। लेकिन यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि भारत सरकार इस बीच अपने ही देश के मीडिया को प्रतिबंधित कर रही थी।
‘वॉर ऑन टेरर’ और ‘वॉर अगेंस्ट पाकिस्तान’ भारत में वॉर अगेंस्ट मीडिया हो गया था। खासकर ऐसे मीडिया प्लेटफॉर्म जो युद्ध की सही तस्वीर पेश कर रहे थे। सरकार चाहती थी कि तमाम टेलीविजन चैनलों की तरह नए और उभर रहे डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म भी अपना किरदार बदल लें। लेकिन जब उन्होंने बदलने से इनकार कर दिया, सेना के साथ खड़े होते हुए भी सरकार से सवाल पूछना जारी रखा, आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारतीय सेना के साथ खड़े रहते हुए भी पहलगाम पर जरूरी सवाल पूछना बंद नहीं किया, पूंछ, उरी और कुपवाड़ा के हालात पर सवाल उठाना और रिपोर्टिंग करना जारी रखा तो उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स और वेबसाइट्स को बंद करना शुरू कर दिया गया। 8 मई को सरकार ने लगभग 8000 एक्स अकाउंट को बंद करने का निर्देश दिया। आधिकारिक रूप से एक्स कंपनी के सहमत न होने के बावजूद उन्हें सरकारी आदेश को मानना पड़ा। इसमें तमाम पाकिस्तानी, भारतीय व अन्य वैश्विक अकाउंट शामिल हैं।
मोदी सरकार की नीतियों को लेकर क्रिटिकल रहने वाले लखनऊ आधारित यूट्यूब चैनल 4PM को बंद कर दिया गया, राजनैतिक मुद्दों पर टिप्पणी करने वाले अर्पित शर्मा का एक्स अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया, समाज सेवी और RTI एक्टिविस्ट, कुणाल गोपाल शुक्ला, जो पीएम मोदी की डिग्री संबंधित आरटीआई पर काम कर चुके थे, का 2009 से चल रहा एक्स अकाउंट बंद कर दिया गया। इसके अलावा दिल्ली आधारित मक़तूब मीडिया, द कश्मीरियत और फ्री प्रेस कश्मीर जैसे न्यूज़ प्लेटफॉर्म के एक्स अकाउंट बंद कर दिए गए। इसके अलावा इंडियन एक्सप्रेस में सीनियर एडिटर मुज़मिल जलील और कश्मीर की जानी मानी एक्टिविस्ट अनुराधा भसीन का अकाउंट भी बंद कर दिया गया। सरकार यहीं नहीं रुकी, मक़तूब मीडिया में नियमित लिखने वाले रिजाज़ एम को, भारत के ख़िलाफ़ युद्ध भड़काने के आरोप में नागपुर से गिरफ्तार कर लिया गया।
यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि सरकार ने यह सब क्यों किया होगा, लेकिन सरकार ने इन सभी अकाउंट का कंटेंट या तो भारत विरोधी समझा या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि सरकार के पास इससे संबंधित कोई प्रमाण उपलब्ध थे या हैं। सरकार ने ब्लॉक किए गए किसी भी यूट्यूब चैनल या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म अकाउंट के किसी खास वीडियो या पोस्ट का ज़िक्र नहीं किया, जिसमें भारत विरोधी बातें कही या लिखी गईं हो।
किसी भी अकाउंट को ब्लॉक या सस्पेंड करवाने के लिए तीन मंत्रालय प्रमुख भूमिका निभाते हैं- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, गृह मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय। संभवतया इन मंत्रालयों के प्रमुखों ने किसी और को यह कार्यभार दे दिया कि जिसको चाहें ब्लॉक करवा दें। वरना क्या कारण हो सकता है कि जिस 4PM चैनल को ताल ठोककर सरकार ने ब्लॉक करवाया था जब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर जवाब माँगा तो सरकार बैरंग वापस लौट गई। जवाब मांगा था एक हफ़्ते में और सरकार ने तीन दिन बाद ही चैनल को फिर से अनब्लॉक कर दिया। मतलब साफ़ है कि जब देश की सबसे बड़ी अदालत ने पूछा कि संविधान द्वारा गारंटी प्राप्त मूल अधिकारों के हनन के लिए सरकार के पास कौन सा ठोस प्रमाण है तो सरकार के पास कोई जवाब नहीं था। एक एक करके सरकार को हर एक अकाउंट खोलना पड़ेगा क्योंकि संभवतया सरकार ने बिना किसी कारण इन्हें बंद किया था।
अपने देश का मीडिया, ख़ासकर वो जो सरकार की नीतियों को लेकर हमेशा आलोचना करती है, को टारगेट करने की नहीं बल्कि सुने जाने की जरूरत है। आलोचना आईने की तरह होती है और मजबूत नेतृत्व आलोचना का दमन नहीं करता बल्कि उसके साथ साथ चलने की कोशिश करता है जिससे आवश्यकता पड़ने पर आईना देखा जा सके।
भारत की सेना जानती है कब, कहाँ और किस स्तर का हमला किया जाना चाहिए। भारतीय सेना की लोकतांत्रिक परवरिश है जहाँ फौज को नागरिक मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया गया है। भारतीय सेना के लिए युद्ध होली-दीवाली जैसा कोई उत्सव नहीं है क्योंकि इस दौरान उसके परिवार के लोगों की जानें जाती हैं जो असल में सेना में शोक की तरह है। भारतीय फौज के लिए जबतक युद्ध आवश्यकता नहीं बन जाता इसे लेकर प्रतिरोध ही किया जाता है। यही भारत है और यही भारत की फौज है। सड़कछाप रक्षा विशेषज्ञों को टीवी में बुलाकर युद्ध की होली जलाना और बेशर्मों की तरह दहाड़ना कोई हुनर नहीं बल्कि अभिशाप है। इस किस्म के मीडिया को रोका जाना चाहिए था, सवाल पूछे जाने चाहिए थे, हर एक हेडिंग पर जवाब तलब होना चाहिए था। मीडिया का काम सूचनाएं देना है युद्ध की आग को सुलगाना नहीं।
भारत सैंडविच पैराडॉक्स से गुज़र रहा है जहाँ एक तरफ़ हिंसा, उन्माद और झूठी सूचनाएं फैलने वाले इस टीवी मीडिया तंत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो दूसरी तरफ़ युद्ध क्षेत्र से रिपोर्ट करने वालों, सही सवाल उठाने वालों और फेक प्रोपैगेंडा को फैलाने से इनकार करने वालों के ख़िलाफ़ सरकार द्वारा ऐक्शन लिया गया। यह बहुत ही खतरनाक संयोजन है। शायद यही कारण है कि भारत प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक-2025 में 151वें स्थान पर है। यह संयोजन आसानी से लोकतंत्र को क्षति पहुँचा सकता है और पहुँचा भी रहा है। कोई भारत को ‘दोषपूर्ण लोकतंत्र’ (EIU लोकतंत्र सूचकांक) कह रहा है तो कोई ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ देश (फ्रीडम हाउस रिपोर्ट) तो कहीं पर भारत की छवि ‘चुनावी निरंकुशता’ (वी-डेम सूचकांक) वाले देश के रूप में बनती जा रही है।
देश की सत्ता पर बैठे राजनैतिक दल को बहुमत की आड़ में विचारधारा को थोपने से बचना चाहिए। साथ ही उस लोकतांत्रिक विचार से किसी भी हालत में समझौता नहीं करना चाहिए जिसकी नींव गांधी, नेहरू और आंबेडकर जैसे नेताओं ने तैयार की है, फिर चाहे उनका मातृ- संगठन कितना ही दबाव क्यों ना डाले। इन सभी आधुनिक भारत के जनक नेताओं ने पत्रकार के रूप में जो जागरूकता फैलायी वह अभूतपूर्व थी। भारतीय लोकतंत्र इनके जैसे नेताओं की विरासत पर ही टिका है। 2014 के बाद से मीडिया के मूल किरदार में जो गिरावट दर्ज हुई है उसे कितने भी ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के विकास के बाद भी पाटा नहीं जा सकेगा।