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    Home » उत्तराखंड में ‘अवैध’ मदरसों की पहचान क्यों की जा रही है?
    भारत

    उत्तराखंड में ‘अवैध’ मदरसों की पहचान क्यों की जा रही है?

    By January 15, 2025No Comments5 Mins Read
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    हाल में ग़ैर-हिंदुओं को चेतावनी देने वाले बोर्ड और मुस्लिम व्यापारियों और दुकानदारों के बहिष्कार झेलने वाले उत्तराखंड में अब मदरसा का मुद्दा उठ रहा है। बीजेपी के नेतृत्व वाली पुष्कर सिंह धामी सरकार ने मदरसों की पहचान करने का आदेश दिया है और राज्य में बिना पंजीकरण के चल रहे 200 से ज़्यादा मदरसों की पहचान की गई है। यही नहीं, अभी इनकी आगे की जाँच भी की जा रही है। कहाँ से इनको फंड मिलता है, दूसरे राज्यों से आए छात्रों की पूरी जानकारी क्या है। तो सवाल है कि आख़िर मदरसों की इतनी गहन जाँच क्यों की जा रही है 

    धामी सरकार ने यह आदेश किसलिए दिया है और मदरसा बोर्ड से जुड़े लोगों का क्या कहना है, यह जानने से पहले यह जान लें कि हाल के महीनों में उत्तराखंड मुस्लिमों से जुड़ी ख़बरों को लेकर चर्चा में क्यों रहा है। पिछले साल ही उत्तराखंड मुस्लिमों के ख़िलाफ़ फैलाई जा रही नफ़रत को लेकर सुर्खियों में रहा था। 

    क़रीब चार महीने पहले सितंबर महीने में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में ‘गैर हिंदुओं’ को चेतावनी देने वाले बोर्ड लगे थे। इसमें ‘रोहिंग्या मुसलमानों’ और ‘फेरीवालों’ को चेतावनी दी गई थी। उनके गाँवों में घुसने या घूमने को प्रतिबंधित किया गया था। प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों को दंड देने की बात कही गई थी। वैसे, तो इन बोर्डों पर ‘समस्त ग्रामवासी की आज्ञा से’ लिखा था, लेकिन कई ग्रामीण इससे समहत भी नहीं थे। 

    केदारनाथ यात्रा के दौरान बीच में एक प्रमुख पड़ाव रुद्रप्रयाग है। यह इलाक़ा शांतिपूर्ण और शौहार्दपूर्ण माहौल के लिए जाना जाता रहा है। वहाँ के गांवों में समुदाय शांतिपूर्वक एक साथ काम करते देखे जाते रहे हैं, उनकी आजीविका उत्तराखंड में तीर्थयात्रा के मौसम से जुड़ी हुई है। लेकिन पिछले साल हालात एकदम से बदल गए। ऐसा माहौल तब बना जब उससे कुछ हफ्ते पहले ही चमोली में हुई यौन शोषण की एक घटना के बाद स्थानीय लोगों ने समुदाय विशेष के लोगों पर कार्रवाई करने के लिए विरोध-प्रदर्शन किया था। 

    उससे पहले जुलाई महीने में भी राज्य में कथित नफ़रत वाला आदेश आया था। उत्तराखंड में भी कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने का सामान बेचने वाले होटलों, ढाबों, रेहड़ी-पटरी वालों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दिया गया था। 

    हरिद्वार में पुलिस ने यात्रा के दौरान अक्सर होने वाले विवादों से बचने की दलील देते हुए कांवड़ यात्रा के मार्ग पर सड़क किनारे ठेले समेत खाने-पीने की दुकानों को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के लिए कहा था।

    इस आदेश को मुस्लिमों को निशाना बनाने वाला क़रार दिया गया और आरोप लगाया गया कि बीजेपी सरकार मुस्लिम दुकानदारों का ‘आर्थिक बहिष्कार’ करना चाहती है। बीजेपी की सहयोगी पार्टियों जेडीयू और आरएलडी ने भी इस पर आपत्ति जताई थी। जब यह मामला अदालत में गया था तो यूपी और उत्तराखंड सरकारों को मुस्लिमों को निशाना बनाने वाले आदेशों पर चेतावनी दी गई थी। 

    पिछले साल ही मार्च महीने में राज्य के धारचूला में मुस्लिम व्यापारियों को दुकानें बंद कर शहर छोड़कर जाने के लिए कह दिया गया था। धारचूला में दो नाबालिग लड़कियों को बहला-फुसलाकर ले जाने के बाद स्थानीय व्यापारी संगठन ने मुस्लिम दुकानदारों को दुकानें बंद करने और शहर छोड़ने के लिए कहा था। हालाँकि, फरवरी में हुई इस घटना में लड़कियों को बचा लिया गया और आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन व्यापार संघ ने मामले को अब तूल दिया है। धारचूला व्यापार संघ ने 91 व्यापारियों, जिनमें अधिकतर मुस्लिम हैं, की सदस्यता रद्द कर दी थी। व्यापार संघ ने उन्हें अपनी दुकानें खोलने से रोक दिया। व्यापार संघ ने मकान मालिकों से ऐसे “बाहरी लोगों” को धाकचूला से बाहर करने को भी कहा था। हालाँकि जिला पिथौरागढ़ प्रशासन का दावा था कि किसी भी मकान मालिक या दुकान मालिक ने व्यापारी संगठन के आह्वान का समर्थन नहीं किया।

     - Satya Hindi

    मदरसा का मामला क्या

    बहरहाल, अब मदरसा का मामला सामने आया है। अवैध मदरसा संचालन से निपटने के लिए सीएम पुष्कर सिंह धामी के निर्देश के बाद शुरू की गई जांच में मदरसों के पंजीकरण की स्थिति, फंडिंग के स्रोत और दूसरे राज्यों से आए छात्रों के बारे में जानकारी जुटाई गई है।

    टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार अकेले उधम सिंह नगर में 129 अपंजीकृत मदरसों की पहचान की गई है, इसके बाद देहरादून में 57 और नैनीताल में 26 मदरसे हैं। जांच की निगरानी के लिए ज़िला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में एक ज़िला स्तरीय समिति बनाई गई है, जिसमें एसएसपी और एसपी जैसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल हैं। एक महीने के भीतर निष्कर्षों पर एक रिपोर्ट राज्य अधिकारियों को सौंपे जाने की संभावना है।

    रिपोर्ट है कि सबसे ज्यादा अपंजीकृत मदरसे उधम सिंह नगर, देहरादून, हरिद्वार और नैनीताल में हैं, लेकिन अन्य जिलों में भी जांच चल रही है। धामी ने पहले कहा था, ‘हम राज्य में किसी भी तरह की अवैध गतिविधि की इजाजत नहीं देंगे। अवैध मदरसों और उन्हें चलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। जिला और पुलिस टीमें गहन जांच करेंगी।’ टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के प्रमुख मुफ्ती शमून कासमी ने कहा, ‘हम लंबे समय से अपंजीकृत मदरसों से खुद को पंजीकृत कराने का आग्रह कर रहे हैं। इन संस्थानों में छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा इस अनुपालन पर निर्भर करती है।’ उन्होंने कहा कि सरकार पारदर्शी तरीके से काम कर रही है और मदरसा संचालकों से नियमों का पालन करने का आग्रह किया है। 

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