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    Home » न्यूट्रॉन तारों के टकराने से जब सोने का बादल बन जाता है!
    भारत

    न्यूट्रॉन तारों के टकराने से जब सोने का बादल बन जाता है!

    By March 12, 2025No Comments8 Mins Read
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    ब्रह्मांड की सबसे रोचक घटना किसी न्यूट्रॉन सितारे के दूसरे न्यूट्रॉन सितारे से जा टकराने की है। इसे सीधे देखने के लिए दुनिया भर के खगोलशास्त्री तरसते हैं और ज्ञात इतिहास में अभी तक इसको सिर्फ़ एक बार, सन 2017 में देखा जा सका है। ऐसी दूसरी घटना अभी पिछले महीने, यानी फरवरी 2025 की शुरुआत में दर्ज की गई हो सकती है, लेकिन वैज्ञानिक ऐसी घोषणा करने से पहले जांच-परख के लिए थोड़ा और वक़्त लेना चाहते हैं। ऐसी घटनाओं के बारे में, और अभी इस पर बात करने की प्रासंगिकता को लेकर भी हम आगे चर्चा करेंगे। लेकिन उससे पहले यह जान लें कि न्यूट्रॉन सितारे आखिर हैं क्या बला। इसके लिए हमें तारों की मौत से जुड़ा एक सबक़ दोहराना पड़ेगा।

    तारों को चमकने की ऊर्जा सबसे बुनियादी स्तर के फ्यूजन, यानी हाइड्रोजन को हीलियम में बदलने की प्रक्रिया से मिलती है। सबसे बुनियादी स्तर के तारे ब्राउन ड्वार्फ होते हैं। इनकी भट्ठी धीमी सुलगती है। हमारा बृहस्पति अगर ग्यारह गुना और बड़ा होता तो ऐसा ही होता। ऐसे तारे बहुत दिन तक जीते रहते हैं। फिर धीरे-धीरे बुझकर राख का ढेर बन जाते हैं। उससे ऊपर का तारा हमारा सूरज है। नारंगी से पीले के बीच के रंग वाला तारा। अभी की दोगुनी उम्र होने पर इसकी सारी हाइड्रोजन फुंक जाएगी। तब यह फूलकर बहुत बड़ा हो जाएगा, और फिर फटकर इसकी चिंदियां उड़ जाएंगी। इससे ज्यादा बड़े तारों की मौत भी कमोबेश ऐसी होती है, लेकिन उनके दो हिस्से हो जाते हैं।

    बाहर का खोल उसी तरह फटकर बिखर जाता है लेकिन भीतर की धुरी बहुत गर्म होकर एक छोटे सफेद सितारे की तरह टिमटिमाने लगती है। सूरज के दो से नौ गुने वजन वाले तारे ऐसी मौत पाते हैं। दूसरे जन्म वाले ये तारे मुश्किल से खोजे गए और इन्हें ‘वाइट ड्वॉर्फ’ (सफेद बौना) नाम दिया गया। सिरियस बी तारा (व्याध नक्षत्र के तीन तारों में एक) इसी श्रेणी में आता है। इनकी त्रिज्या सूरज की लगभग एक फीसदी होती है, यानी हमारी धरती जितने या इसके दो-तीन गुना बड़े होते हैं। इनके स्पेक्ट्रम में कार्बन, ऑक्सीजन और मैग्नीशियम की झलक देखी गई है और इनका घनत्व इतना ज़्यादा होता है कि इनका एक टन वजन लूडो की गोट जितनी जगह में समा सकता है। ऐसे तारे एक कोने में पड़े जीते रहते हैं। ब्रह्मांड में सबसे देर तक चमकती रहने वाली चीज का सेहरा इन्हीं के सिर बंधा हुआ है।

    चंद्रशेखर लिमिट

    न्यूट्रॉन सितारे, जहां से हमारी बात शुरू हुई थी, तारों की मौत की चौथी श्रेणी की उपज हैं और इनका क़िस्सा हमारे सूरज के 10 गुने से 25 गुना वजनी तारों का जीवन ख़त्म होने के क्रम में शुरू होता है। याद रहे, तारों की मौत का ज़्यादातर हिसाब-किताब 1930 के आसपास भारतीय वैज्ञानिक (नोबेल पुरस्कार प्राप्त) सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर द्वारा लगाया गया था, जो बाद के अंतरिक्षीय प्रेक्षणों में सही साबित हुआ। 

    बहरहाल, इन बहुत भारी तारों की मौत भी बाक़ी सारे मामलों में सफेद बौनों जैसी नियति को ही दोहराती है, लेकिन सूरज के वजन की 1.4 गुना या इससे ज़्यादा वजनी धुरी के साथ एक अलग समस्या खड़ी होती है। इसे पहली चंद्रशेखर लिमिट बोलते हैं। इतने ज़्यादा वजन के दबाव में परमाणुओं का ढांचा नष्ट हो जाता है, इलेक्ट्रॉन-प्रोटॉन का क़िस्सा भी ख़त्म हो जाता है और सिर्फ़ न्यूट्रॉन बचे रह जाते हैं। पिंड का आकार सिकुड़कर सिर्फ़ दस किलोमीटर रह जाता है। मिनट भर में 43 हजार बार नाच जाने वाली, धक-धक धड़कने वाली एक जादुई चीज!

    जैसा हम पहले ही कह चुके हैं, न्यूट्रॉन तारे ब्रह्मांड की कुछ सबसे विचित्र वस्तुओं में से एक हैं और इनका कमाल यह है कि अपना अजीब होना ये छिपाते भी नहीं हैं। इनकी सतह का तापमान इनके निर्माण के समय एक करोड़ डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया गया है।

    ध्यान रहे, हमारे सूरज की सतह का तापमान 5500 डिग्री सेल्सियस है। एक ही गनीमत है कि न्यूट्रॉन तारे लगातार ठंडे होते जाते हैं, क्योंकि जैसे बाकी तारों के पास जलाने के लिए हाइड्रोजन होती है, इनके पास उस तरह अपनी चमक बनाए रखने के लिए कुछ भी नहीं होता। फिर भी, जो सबसे ठंडा न्यूट्रॉन स्टार अभी तक दर्ज किया गया है, उसका तापमान भी 4 लाख 40 हजार डिग्री सेल्सियस पाया गया है। 

    अभी तक का सबसे कम वजनी न्यूट्रॉन स्टार सूरज का सवा गुना और सबसे ज़्यादा वजनी हमारे सूरज का ढाई गुना पाया गया है। रही बात न्यूट्रॉन तारों के घनत्व की, तो एक माचिस की डिबिया भर इनका पदार्थ 3 अरब टन वजनी हो सकता है! ऐसी एक मिसाल क्रैब नेबुला की है, जहां कई प्रकाशवर्ष में फैले मलबे में बिंदु जैसा एक न्यूट्रॉन तारा दिखता है। तारों की मौत की एक पांचवीं श्रेणी भी होती है, जो बहुत ही ज्यादा, यूं कहें कि हमारे सूरज के 25 गुने से ज्यादा वजन वाले तारों के हिस्से आती है, लेकिन उसके बारे में हम ज्यादा कुछ जान नहीं सकते। 

    यहां सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की दूसरी लिमिट काम करती है, जहां तारे की धुरी का गुरुत्व इतना ज्यादा हो जाता है कि न्यूट्रॉन भी अपना ढांचा नहीं बचा पाते और तारा अनंत घनत्व तक सिकुड़ता ही जाता है। इसे ब्लैक होल नाम दिया गया। इसलिए कि कुछ दिखता नहीं कि इतना पदार्थ आखिर गया कहां। ब्लैक होल रहस्यमय चीज हैं। हम केवल उनके वजन के बारे में जान सकते हैं। इसके अलावा जो कुछ भी उनके बारे में पता है, उनके इर्दगिर्द घटित होने वाली घटनाओं से ही हम जान पाए हैं। उनसे सूचनाएं बाहर नहीं आतीं। वे समय और स्थान का व्यवहार बदल देते हैं। तारों की मौत इनके बनने का एक तरीका है। इसके बाकी तरीकों का अभी कयास भी नहीं लगाया जा सका है।

    इस ब्यौरे से एक बात समझी जा सकती है कि पदार्थ के व्यवहार का चरम रूप तो ब्लैक होल है, लेकिन जिस आत्यंतिक रूप के बारे में हम थोड़ा-बहुत जान सकते हैं, वह न्यूट्रॉन सितारा ही है। और यह चीज अगर एक अंतरिक्ष के एक कोने में पड़ी, बहुत धीरे-धीरे टिमटिमाती रहे तो इसके बारे में हम कितना जान पाएंगे हां, किसी तरह अगर इसमें टूट-फूट हो तो इसके बारे में हम काफी कुछ जान सकते हैं। 

    हाल तक ऐसा कभी होने की कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब से आठ साल पहले, 2017 में वैज्ञानिकों को ऐसी एक घटना को देखने का मौका मिल गया।

    ग्रैविटेशनल वेव ऐस्ट्रॉनमी 

    साइंस-टेक्नॉलजी में एक नए युग की शुरुआत का साक्षी बनने का सौभाग्य हर पीढ़ी को प्राप्त नहीं होता। इस दृष्टि से हमारी पीढ़ी एक खास मामले में सौभाग्यशाली है। हम ग्रैविटेशनल वेव ऐस्ट्रॉनमी (गुरुत्वीय तरंग खगोलशास्त्र) के प्रारंभ के साक्षी बन चुके हैं। फरवरी 2016 में अमेरिका के लुईजियाना और वॉशिंगटन प्रांतों में बनी दो ‘लीगो’ वेधशालाओं ने पहली बार गुरुत्वीय तरंग की शिनाख्त की थी। वह सिलसिला सितंबर 2017 की घोषणा के ज़रिये इस तरह की चौथी शिनाख्त के साथ आगे बढ़ा लेकिन इस चौथी शिनाख्त की खासियत यह रही कि इसमें अमेरिका से बाहर, इटली की एक गुरुत्व तरंग वेधशाला ‘वर्गो’ के प्रेक्षण भी शामिल थे। 

    जैसे दो आंखों से देखकर हम किसी चीज की दूरी का सही अंदाजा लगाते हैं, उसी तरह पृथ्वी के तीन दूरस्थ बिंदुओं से लिए गए गुरुत्वीय तरंगों के प्रेक्षण लगभग सटीक ढंग से बहुत अधिक ऊर्जा प्रक्षेपण वाली किसी अंतरिक्षीय घटना के स्रोत का अंदाजा दे सकते हैं। लीगो और वर्गो का असली साझा कमाल अक्टूबर 2017 में देखने को मिला, जब दोनों संस्थाओं की एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहली बार दो न्यूट्रॉन सितारों के विलय से एक ब्लैक होल बनने की घटना टेलिस्कोप्स द्वारा बाकायदा देख लिए जाने की घोषणा की गई। 

    ब्लैक होल देखे नहीं जा सकते लेकिन न्यूट्रान स्टार बहुत छोटे और असाधारण घनत्व वाले होने के बावजूद देखे जा सकते हैं।

    गुरुत्वीय तरंग में जाहिर हुए इस विलय की सूचना मात्र 1.7 सेकंड के अंदर जमीन और आसमान से काम करने वाले 70 टेलिस्कोपों तक भेज दी गई और इसकी जगह भी पहले 28 वर्ग डिग्री तक सीमित की गई, फिर इसको एक वर्ग डिग्री के दस हजारवें हिस्से तक की निश्चिततता तक ला दिया गया। नतीजा यह रहा कि पूरी घटना दर्ज कर ली गई और अगले तीन साल तक इससे जुड़े प्रेक्षण लिए जाते रहे। 

    अभी तक यह बात सिर्फ थिअरी में कही जाती थी कि तारों के फटने या उनके विलय से होने वाले विस्फोट में भारी तत्वों का सृजन होता है। यहां बाकायदा स्पेक्ट्रम एनालिसिस के आधार पर दर्ज किया गया कि सूरज के सवा से डेढ़ गुना वजनी दो न्यूट्रॉन तारों के टकराने से न सिर्फ एक अदृश्य ब्लैक होल बना, बल्कि भारी तत्वों के 16,000 पृथ्वियों के वजन जितने वजनी बादल भी बने, जिनकी चमक काफी समय तक वहां के आकाश में मौजूद रही। इसका दस फीसदी हिस्सा, यानी 1600 पृथ्वियों के बराबर वजन तो केवल दो बहुमूल्य धातुओं, सोने और प्लैटिनम का था! 

    काफी संभावना है कि ऐसी ही कोई घटना बीती 6 फरवरी को भी घटित हुई है, बस घोषणा से पहले उसकी पुख्तगी का इंतजार किया जा रहा है। दूसरी बात इस सिलसिले में कृत्रिम मेधा, एआई से जुड़ी है। हाल की एक सूचना के मुताबिक गुरुत्व तरंगों का पता एआई इनके गुरुत्व वेधशालाओं में दर्ज किए जाने से थोड़ा पहले लगा सकती है और इस आशय के संदेश एक सेकंड के अंदर ही तमाम टेलिस्कोपों के पास भेजे जा सकते हैं। ऐसा हुआ तो ऐसी दो घटनाओं के बीच आठ साल का फासला शायद आगे न दिखे और सृष्टि के रहस्य हमारे सामने जल्दी अयां होने लगें। 

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