पंजाब में मंगलवार को किसान आंदोलन ने फिर से उग्र रूप ले लिया। भारी पुलिस बल और सील की गई सीमाओं के बावजूद, सम्युक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के नेतृत्व में किसानों ने शंभू बॉर्डर पर धरना देने की अपनी योजना पर अडिग रहने का ऐलान किया। जगरांव में बड़ी संख्या में किसान इकट्ठा हुए, जो प्रशासन द्वारा प्रदर्शन की अनुमति न दिए जाने के बावजूद मार्च की तैयारी में जुटे हैं। यह आंदोलन 19 मार्च को शंभू और खनौरी बॉर्डर पर पुलिस कार्रवाई के खिलाफ है, जिसमें कई किसान नेताओं को हिरासत में लिया गया था। किसान शंभू बॉर्डर की तरफ बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
पंजाब से मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 19 मार्च को चंडीगढ़ में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ बैठक के बाद किसान नेताओं को हिरासत में लिया गया था। इस कार्रवाई के विरोध में किसानों ने शंभू और खनौरी बॉर्डर पर अपना प्रदर्शन तेज कर दिया। 20 मार्च को पंजाब पुलिस ने इन दोनों बॉर्डर को खाली कराने के लिए बल प्रयोग किया, जिसमें जेसीबी मशीनों से किसानों के अस्थायी ढांचों को तोड़ा गया और सैकड़ों किसानों को हिरासत में लिया गया। इस घटना के बाद शंभू-अंबाला हाइवे (NH-19) पर यातायात बहाल हो गया, लेकिन किसानों का गुस्सा कम नहीं हुआ।
किसान नेताओं ने आरोप लगाया कि पंजाब की आप सरकार ने केंद्र के इशारे पर यह कार्रवाई की। संयुक्त किसान मोर्चा ने 20 मार्च को देशभर में उपायुक्त कार्यालयों के बाहर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था, जिसमें पंजाब के मोगा, तरनतारन, मुक्तसर और फरीदकोट जैसे शहरों में किसानों ने सड़कों पर उतरकर अपनी नाराजगी जताई।
मंगलवार को शंभू बॉर्डर पर स्थिति फिर से तनावपूर्ण हो गई। किसानों ने भारी पुलिस बैरिकेडिंग को तोड़ने की कोशिश की और शंभू पहुंचने का संकल्प लिया। प्रशासन ने इस प्रदर्शन को रोकने के लिए अंबाला और पटियाला में भारी सुरक्षा बल तैनात किया। अंबाला जिला प्रशासन ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 163 के तहत पांच या अधिक लोगों के अवैध जमावड़े पर प्रतिबंध लगा दिया और सभी तरह के जुलूसों पर रोक लगा दी। इसके अलावा, अंबाला में सभी सरकारी और निजी स्कूलों को बंद करने का आदेश दिया गया।
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा, “हमारा आंदोलन शांतिपूर्ण है। हम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी और अन्य मांगों के लिए दिल्ली तक मार्च करना चाहते हैं। सरकार हमें रोकने के लिए आंसू गैस और बैरिकेडिंग का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे।”
किसानों की प्रमुख मांगों में फसलों के लिए MSP की कानूनी गारंटी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों का कार्यान्वयन, और किसान कर्ज माफी शामिल हैं। सम्युक्त किसान मोर्चा ने पंजाब सरकार से विधानसभा में केंद्र की निजीकरण-प्रधान कृषि नीतियों को खारिज करने और किसानों की मांगों का समर्थन करने के लिए प्रस्ताव पारित करने की मांग की है।
पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने कार्रवाई का बचाव करते हुए कहा, “हम किसानों के साथ हैं, लेकिन हाइवे बंद होने से पंजाब की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है। उद्योग और व्यापार प्रभावित हुए हैं। किसानों की मांगें केंद्र से संबंधित हैं, इसलिए उन्हें पंजाब की अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।”
नए सिरे से आंदोलन ने सियासी हलकों में भी हलचल मचा दी है। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने पुलिस कार्रवाई की निंदा की और सवाल उठाया कि जब केंद्र के साथ बातचीत चल रही थी, तो किसान नेताओं को हिरासत में लेने की क्या जरूरत थी। शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल और पहलवान बजरंग पुनिया ने हिरासत में लिए गए किसानों की रिहाई की मांग की। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी सरकार पर किसानों की उपेक्षा का आरोप लगाया। वहीं, केंद्रीय मंत्री भगीरथ चौधरी ने केंद्र की किसान समर्थक योजनाओं जैसे किसान सम्मान निधि और MSP में वृद्धि का हवाला देकर सरकार का बचाव किया।
शंभू और खनौरी बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन 13 फरवरी 2024 से जारी है, जब उनकी दिल्ली चलो मार्च को पुलिस ने रोक दिया था। इस दौरान 22 किसानों की मौत हो चुकी है, जिसमें खनौरी बॉर्डर पर 21 फरवरी को गोली लगने से 22 वर्षीय शुभकरण सिंह की मौत शामिल है। किसान नेताओं ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे दिल्ली मार्च की योजना फिर से बनाएंगे।
केंद्र और पंजाब सरकार पर अब दबाव बढ़ रहा है कि वे किसानों के साथ सार्थक बातचीत करें। यह आंदोलन न केवल पंजाब, बल्कि पूरे देश के किसानों की आवाज बन चुका है। किसान नेताओं का कहना है कि हमारे आंदोलन बीच-बीच में सक्रिय होते रहेंगे, क्योंकि किसान खेतों में भी व्यस्त है।