Close Menu
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Trending
    • इस महाभारत का शांतिपर्व कहाँ है?
    • Satya Hindi News Bulletin। 2 जून, दोपहर तक की ख़बरें
    • सावरकर-गोडसे परिवार के संबंधों को रिकॉर्ड में लाने की राहुल की मांग क्यों ठुकराई?
    • रूस का पर्ल हार्बर! यूक्रेन के ऑपरेशन स्पाइडर वेब ने मचाया कहर
    • हेट स्पीच केस: अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता रद्द, राजभर बोले- अपील करेंगे
    • आतंकवाद से जंग का नागरिकों की प्यास से क्या रिश्ता है?
    • Mana and Kamet Peaks: माना और कामेट पर्वत की गोद में एक स्वर्गिक अनुभव की यात्रा, जीवन भर याद रहेगी ये समर हॉलीडे ट्रिप
    • राजा भैया राजनीति से कर रहे किनारा! अब विरासत संभालेंगे नए ‘राजा’; यूपी की सियासत में बड़ा बदलाव
    • About Us
    • Get In Touch
    Facebook X (Twitter) LinkedIn VKontakte
    Janta YojanaJanta Yojana
    Banner
    • HOME
    • ताज़ा खबरें
    • दुनिया
    • ग्राउंड रिपोर्ट
    • अंतराष्ट्रीय
    • मनोरंजन
    • बॉलीवुड
    • क्रिकेट
    • पेरिस ओलंपिक 2024
    Home » मध्यम वर्ग का हौवा कितना वास्तविक?
    भारत

    मध्यम वर्ग का हौवा कितना वास्तविक?

    By February 4, 2025No Comments5 Mins Read
    Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

    अमेरिका के कुख्यात डकैत विली सटन से जेल में जब पूछा गया कि वह बैंकों में डकैती क्यों डालता था तो उसका निर्दोष जवाब था, “क्योंकि धन वहीँ रखा जाता है”. यह जवाब इतना स्वाभाविक था कि कालांतर में चिकित्सा विज्ञान सहित कई विषयों में “सटन लॉ” लागू किया गया. इसका मूल मंत्र था “जो सबसे सहज कारण हो उस पर पहले भरोसा करें जैसे मरीज की सामान्य खांसी के लक्षण को मौसम परिवर्तन-जनित मान कर प्रारंभिक इलाज या जांच कराना. डकैत सटन ने 1976 में जेल में लिखी अपनी किताब में यह भी कहा कि उपक्रम चाहे जैसा भी हो, लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दिमाग की एकाग्रता और टारगेट की हर छोटी-बड़ी जानकारी हासिल करना सबसे जरूरी पहलू हैं.  

    भारत में बढती आर्थिक विषमता के मद्देनज़र थॉमस पिकेटी जैसे तमाम अर्थशास्त्रियों की राय रही है कि छोटे से “सुपररिच” वर्ग पर कुछ टैक्स लगा कर गरीबों की मदद की जा सकती है. वित्तमंत्री ने बजट प्रस्तुत करने के बाद दिए गए मीडिया इंटरव्यू में इस सवाल को ख़ारिज करते हुए कहा कि यह उचित नहीं होगा कि और छोटे होते करदाताओं के आधार को हीं ज्यादा निचोड़ा जाये. सीधा मतलब यह हुआ कि सरकार एचएनआईज (हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स) पर किसी किस्म का टैक्स लगा कर “मार्केट सेंटिमेंट” खराब करना नहीं चाहती है. 

    यह सच है कि एक विकासशील देश में सरकार के जिम्मे कई स्तर पर प्रयास करना होता है. कुपोषण से लेकर अशिक्षा दूर करने तक और स्वास्थ्य सेवा बेहतर करने से लेकर सामाजिक कुरीतियों पर लगाम लगाने तक. इसके अलावा विकास के लिए अंतरसंरचनात्मक ढांचे पर व्यय जैसे रेल, सड़क, सिंचाई, एअरपोर्ट, बिजली, पर्यावरण पर असाधारण खर्च करना अपरिहार्य होता है. इस वर्ष सरकार ने न तो प्रस्ताव के अनुरूप पूंजीगत व्यय किया, न हीं सब्सिडी पर पहले जैसा खर्च रहा. ये सभी खर्च विकास को पंख देते हैं. इसके एवज में बस हासिल हुआ तो क्या फिस्कल घाटा कम हुआ. याने मार्केट सेंटिमेंट बेहतर रहेगा.

    अगर उद्योगपति अडानी की संपत्ति पिछले 11 सालों में 20 गुनी बढ़ी है, अगर जिनी कोएफ़िशिएंट पर भाकी बात रत में गरीबी-अमीरी की खाई लगातार बढ़ रही है जिसके व्यापक संकेत थॉमस पिकेटि ने अपने अध्ययन में दिये हैं तो मात्र एक प्रतिशत अरबपतियों पर “सुपर रिच” टैक्स लगाना और उससे प्रेमचंद के गोदान के चरित्र – होरी, झुनिया, गोबर की स्थिति सुधारना और सोना-रूपा को अच्छी शिक्षा देना न्याय भी है और विकास की सही दिशा भी. इसीलिए विली सटन की बात सही लगती है भले हीं वह डकैती अपने लिए करता था और सरकार गरीबों के कल्याण के लिए.

    सरकार दो मोर्चों पर गलत नीति अपना रही है. पहला, जिसे वह मार्केट सेंटिमेंट समझ कर फिस्कल डेफिसिट कम करना अपना पहला और शायद अंतिम दायित्व मानती है वह मार्केट-ड्रिवेन इकॉनमी की शोशेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं है अगर कोई अर्थव्यवस्था अपने अन्य फंडामेंटल्स को मजबूत रख रहा है. दूसरी गलती है आज तक दुनिया में अपरिभाषित “मध्यम वर्ग” से डरना.   

    कार्ल मार्क्स का मध्यम वर्ग एक “पेटी बुर्जुआ” खास किस्म का शोषक होता था. भारत में इसका मतलब अपने-अपने तर्क को वजन देने के लिए “मिडिल क्लास मानसिकता” कह कर दिया जाता है. आयकर में छूट की कई वर्षों पुरानी मांग मान कर सरकार ने एक वर्ग को राहत तो दी है. भले हीं इससे राजस्व में एक लाख करोड़ रुपये की कमी होगी लेकिन बताया जा रहा है कि इससे इस राशि से तीन गुना क्रय होगा और इकॉनमी उत्प्रेरित होगी.

    देश में आयकर मात्र 2.3 प्रतिशत लोग देते हैं. लेकिन सरकार ने इसे मध्यम वर्ग के लिए एक बड़ी राहत बता रही है. पहले तो, पूरी दुनिया में मध्यम वर्ग की कोई परिभाषा आज तक नहीं बनी है. बहरहाल किसी समाज में मात्र 2.3 प्रतिशत टैक्स देने वाला वर्ग (याने देश के तीन करोड़ लोग) मिडिल क्लास तो कतई नहीं हो सकता. दरअसल सरकार या संगठित क्षेत्र के नौकरीपेशा लोग या छोटा सा वह शहरी तबका जो नौकरी में न रहते हुए भी इतना कमा रहा है कि कम या ज्यादा इनकम टैक्स दे रहा है, आज भी समाज का मुखर तबका है. मीडिया में भी इसी की बात होती है. 

    शहरों में सब्जी, गेंहूं, दूध, दाल, ,बस भाडा या स्कूल फी बढे तो यह वर्ग पूरे देश के बेहाली जैसा माहौल बनाता है. यही कारण है कि सरकार मांग से पहले हीं वेतन-आयोग लाती है, जबकि देश भर में कुल (केंद्र और राज्यों के) सरकारी कर्मचारी मात्र 1.75 करोड़ ही हैं.

    तथाकथित मध्यम वर्ग के डर से खाद्यान्न की महंगाई होने पर उसका निर्यात रोक देती है या दाम गिराने के लिए आयात करती है बगैर यह सोचे कि दाम बढ़ेंगे तो किसान खुशहाल होगा. यह वर्ग 144 करोड़ की आबादी में कहीं से भी स्पेक्ट्रम में मध्यम स्थान नहीं लेता फिर भी इतना प्रभावशाली है कि 100-125 करोड़ असंगठित क्षेत्र के किसान-मजदूर-छोटे व्यापारी, रेहड़ी-पटरी विक्रेता गौण हो जाते हैं. तभी तो पिछले 55 वर्षों में सरकारी कर्मचारी की आय 326 गुना बढ़ी जबकि गेंहूं का एमएसपी 30 गुना. 

    • असली मध्यम वर्ग किसान और उसका बेरोजगार बेटा है और असली मार्केट सेंटिमेंट है “बेहतर और सस्ता उत्पादन जो ग्लोबल मार्केट में खडा हो सके”. 

    (लेखक एन के सिंह ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए) के पूर्व महासचिव हैं।)

    Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleअमेरिका से अवैध भारतीय प्रवासियों को लेकर आ रही है फ्लाइट
    Next Article Banarsi Tamatar Chaat in Lucknow: लखनऊ में यहाँ मिलेगा बनारसी टमाटर चाट का लाजवाब स्वाद, देखते ही आ जायेगा मुँह में पानी

    Related Posts

    इस महाभारत का शांतिपर्व कहाँ है?

    June 2, 2025

    Satya Hindi News Bulletin। 2 जून, दोपहर तक की ख़बरें

    June 2, 2025

    सावरकर-गोडसे परिवार के संबंधों को रिकॉर्ड में लाने की राहुल की मांग क्यों ठुकराई?

    June 2, 2025
    Leave A Reply Cancel Reply

    ग्रामीण भारत

    गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

    December 26, 2024

    बिहार में “हर घर शौचालय’ का लक्ष्य अभी नहीं हुआ है पूरा

    November 19, 2024

    क्यों किसानों के लिए पशुपालन बोझ बनता जा रहा है?

    August 2, 2024

    स्वच्छ भारत के नक़्शे में क्यों नज़र नहीं आती स्लम बस्तियां?

    July 20, 2024

    शहर भी तरस रहा है पानी के लिए

    June 25, 2024
    • Facebook
    • Twitter
    • Instagram
    • Pinterest
    ग्राउंड रिपोर्ट

    जाल में उलझा जीवन: बदहाली, बेरोज़गारी और पहचान के संकट से जूझता फाका

    June 2, 2025

    धूल में दबी जिंदगियां: पन्ना की सिलिकोसिस त्रासदी और जूझते मज़दूर

    May 31, 2025

    मध्य प्रदेश में वनग्रामों को कब मिलेगी कागज़ों की कै़द से आज़ादी?

    May 25, 2025

    किसान मित्र और जनसेवा मित्रों का बहाली के लिए 5 सालों से संघर्ष जारी

    May 14, 2025

    सरकार की वादा-खिलाफी से जूझते सतपुड़ा के विस्थापित आदिवासी

    May 14, 2025
    About
    About

    Janta Yojana is a Leading News Website Reporting All The Central Government & State Government New & Old Schemes.

    We're social, connect with us:

    Facebook X (Twitter) Pinterest LinkedIn VKontakte
    अंतराष्ट्रीय

    पाकिस्तान में भीख मांगना बना व्यवसाय, भिखारियों के पास हवेली, स्वीमिंग पुल और SUV, जानें कैसे चलता है ये कारोबार

    May 20, 2025

    गाजा में इजरायल का सबसे बड़ा ऑपरेशन, 1 दिन में 151 की मौत, अस्पतालों में फंसे कई

    May 19, 2025

    गाजा पट्टी में तत्काल और स्थायी युद्धविराम का किया आग्रह, फिलिस्तीन और मिस्र की इजरायल से अपील

    May 18, 2025
    एजुकेशन

    ISRO में इन पदों पर निकली वैकेंसी, जानें कैसे करें आवेदन ?

    May 28, 2025

    पंजाब बोर्ड ने जारी किया 12वीं का रिजल्ट, ऐसे करें चेक

    May 14, 2025

    बैंक ऑफ बड़ौदा में ऑफिस असिस्टेंट के 500 पदों पर निकली भर्ती, 3 मई से शुरू होंगे आवेदन

    May 3, 2025
    Copyright © 2017. Janta Yojana
    • Home
    • Privacy Policy
    • About Us
    • Disclaimer
    • Feedback & Complaint
    • Terms & Conditions

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.