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    Home » लद्दाख की पैंगोंग झील के किनारे शिवाजी की प्रतिमा पर ऐतराज क्यों उठा?
    भारत

    लद्दाख की पैंगोंग झील के किनारे शिवाजी की प्रतिमा पर ऐतराज क्यों उठा?

    By December 31, 2024No Comments5 Mins Read
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    लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के किनारे छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा पर पर्यावरण कार्यकर्ताओं और लद्दाख के एक्टिविस्टों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह “सांस्कृतिक वर्चस्व” और हिमालय में संवेदनशील पर्यावरण का “अपमान” बताया है। 

    सेना ने पिछले हफ्ते शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण किया था। पूर्वी लद्दाख में चुशुल के पार्षद कोंचोक स्टैनज़िन ने हिमालय क्षेत्र में मराठा योद्धा की “प्रासंगिकता” पर सवाल उठाया। चुशुल इलाका हाल ही में भारत और चीन के बीच सैन्य और राजनयिक विवादों का केंद्र रहा है।

    चुशुल के पार्षद कोंचोक स्टैनज़िन ने एक्स पर लिखा है- “एक स्थानीय निवासी के रूप में, मैं पैंगोंग में शिवाजी की मूर्ति को लेकर चिंतित हूं। इसे स्थानीय लोगों की सलाह के बिना स्थापित किया गया। मैं यहां के पर्यावरण और वन्य जीवन के लिए इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहा हूं। आइए उन परियोजनाओं को प्राथमिकता दें जो वास्तव में हमारे समुदाय और प्रकृति को प्रतिबिंबित करती हैं और उनका सम्मान करती हैं।” स्टैनज़िन लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, लेह के पूर्व कार्यकारी पार्षद रहे हैं। 

    As a local resident, I must voice my concerns about the Shivaji statue at Pangong. It was erected without local input, and I question its relevance to our unique environment and wildlife. Let’s prioritize projects that truly reflect and respect our community and nature. https://t.co/7mpu3yceDp

    — Konchok Stanzin (@kstanzinladakh) December 29, 2024

    बता दें कि 14 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला ने 26 दिसंबर को  भारत-चीन सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास पूर्वी लद्दाख में 14,300 फीट की ऊंचाई पर 30 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया था। 14 कोर ने इस मौके पर एक्स पर कहा “वीरता, दूरदर्शिता और अटूट न्याय के प्रतीक का उद्घाटन लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला, एससीएसएम, वीएसएम, जीओसी फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स और मराठा लाइट इन्फैंट्री के कर्नल द्वारा किया गया। यह कार्यक्रम भारतीय शासक की अटूट भावना का जश्न है, जिनकी विरासत पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।”

    Hoping that Shivaji will keep the dragon away the same way he killed Afzal Khan. China by the way seems to be following Shivaji’s war strategy and wearing the anti Afzal weapon. https://t.co/m6Ui2gPgVY

    — Naeem Akhtar (@shangpal) December 30, 2024

    जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री पीडीपी नेता नईम अख्तर ने इस पर तंज करते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि शिवाजी “ड्रैगन (चीन का संदर्भ) को उसी तरह दूर रखेंगे, जिस तरह उन्होंने अफजल खान को मारा था।” खान भारत में बीजापुर सल्तनत के आदिल शाही राजवंश में एक जनरल थे जो मराठा योद्धा के खिलाफ अपने अभियानों के लिए जाने जाते हैं।

    अख्तर, महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के विचारक के रूप में जाने जाते हैं, ने एक्स पर लिखा, “ऐसा लगता है कि चीन शिवाजी की युद्ध रणनीति की नकल कर रहा है और अफजल विरोधी हथियार पहन रहा है।”

    लद्धाख के जाने-माने एक्टिविस्ट और नेता सज्जाद कारगिली ने इस कदम को “सांस्कृतिक वर्चस्व का एक रूप” बताते हुए कहा कि सेना ने स्थानीय लोगों को अपने साथ नहीं लिया। उन्होंने कहा कि भले ही मराठा योद्धा ने महाराष्ट्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो, लेकिन वह लद्दाख के लिए “राजनीतिक रूप से प्रासंगिक नहीं” हैं।

    कारगिली, जिन्होंने हाल ही में लोकसभा चुनाव में लद्दाख से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, असफल रहे थे। उन्होंने कहा कि सेना को ऐसा “विवादास्पद” कदम उठाने से पहले “क्षेत्रीय संवेदनाओं” का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लद्दाख पर “सांस्कृतिक प्रतीकों” को थोपना “स्वीकार्य नहीं” है।

    There is no cultural or historical relevance of Shri Chhatrapati Shivaji Maharaj in #Ladakh. While we respect his legacy, imposing such cultural symbols here is misplaced. We would appreciate the installation of statues honoring local historical figures like Khree Sultan Cho or… https://t.co/ubSQOs3Gu6

    — 𝐒𝐚𝐣𝐣𝐚𝐝 𝐊𝐚𝐫𝐠𝐢𝐥𝐢 | سجاد کرگلی (@SajjadKargili_) December 30, 2024

    सज्जाद ने आगे कहा कि “लद्दाख के इतिहास को संरक्षित करना अधिक महत्वपूर्ण है। हमारे इतिहास के लिए प्रासंगिक सुल्तान चो, अली शेर खान अंचन या ग्याल खातून की मूर्ति लगाना अधिक उपयुक्त होता। बड़े स्तर पर, पैंगोंग त्सो जैसे पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में ऐसी मूर्ति की कोई आवश्यकता नहीं है। यहां तो सावधानीपूर्वक संरक्षण की आवश्यकता है।”

    सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा छाया हुआ है। कुछ लोगों ने शिवाजी को इस तरह “श्रद्धांजलि” देने के लिए सेना की सराहना की, तो तमाम लोगों ने पैंगोंग त्सो के किनारे इस मूर्ति स्थापना को “संदर्भ से परे” और गैर जरूरी बताया। काफी लोगों ने सलाह दी है कि सिख जनरल ज़ोरावर सिंह की प्रतिमा लगाना ज्यादा बेहतर होता, जो डोगरा-राजपूत शासक गुलाब सिंह की सेना के जनरल थे। जोरावर सिंह बौद्ध-बहुल राज्य लद्दाख पर विजय प्राप्त करने के लिए जाना जाता है। जिसे बाद में डोगरा साम्राज्य में मिला दिया गया था, जो उस समय लाहौर के महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व वाले सिख साम्राज्य का हिस्सा था।

    स्थानीय लोगों का कहना है कि हमें नौकरियां चाहिए, ताकि हमारी बेरोजगारी दूर हो सके। हमारे पर्यावरण की रक्षा की जाए जो तबाह हो रहा है और आगे देश के लिए भी चुनौती बन सकता है। हालांकि केंद्र सरकार इस क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिए 95% नौकरियां आरक्षित करने, पहाड़ी परिषदों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण और लद्दाख की भूमि और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए “संवैधानिक सुरक्षा उपाय” तैयार करने पर सहमत हुई है। अगले दौर की बातचीत 15 जनवरी को होने वाली है। लेकिन यह सब सिर्फ कागजों पर है। स्थानीय लोग कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है।

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