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    Bharat Ka Ajab Gajab Gaon: एक अनोखा गांव जहां सूर्य सबसे पहले अपने दर्शन देता है

    By January 19, 2025No Comments6 Mins Read
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    Bharat Ka Ajab Gajab Gaon Dong Valley History 

    Bharat Ka Ajab Gajab Gaon Dong Valley: हमारा भारत एक विशाल और विविधताओं से भरा देश है, जहां प्रकृति के अद्भुत रूप और व्यवहार हर कोने में देखने को मिलते हैं। इस धरती पर कई जगह ऐसी हैं, जो अपनी अनोखी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसे ही एक गांव का नाम ‘जोंग’ है, जो अरुणाचल प्रदेश के अंजॉ जिले में स्थित है। डोंग भारत के सबसे पूर्वी हिस्से में स्थित है। यह प्राचीन संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और अनोखे भौगोलिक तथ्यों के लिए प्रसिद्ध है। यह गांव भारत-चीन सीमा के पास स्थित है। यहां की भौतिक सुंदरता और शांति अपने आप में एक अलग अनुभव देती है। डोंग गांव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां सूर्य दिन में दो बार उगता है, जो दुनिया के किसी और कोने में देखने को नहीं मिलता। 1999 में, यह पता चला कि अरुणाचल प्रदेश में डोंग, जो भारत में सबसे पूर्वी स्थान भी है, देश के पहले सूर्योदय का अनुभव करता है।

    अर्थात भारत का सबसे पूर्वी भाग होने की वजह से सूरज की पहली किरण यहीं पड़ती है। डोंग वैली लोहित और सती नदियों का संगम एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। इन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो दो प्राचीन नदियाँ एक साथ एक दूसरे के साथ विलीन हो रही हैं, जो भव्य पहाड़ों और मेघों के बादल की पृष्ठभूमि में स्थित हैं।

    पृथ्वी की अक्ष और इसके गोलाकार होने के कारण सूर्य के उगने और डूबने का समय दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग होता है। डोंग गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह एक घाटी के बीच में स्थित है। यह घाटी दो ऊंचे पहाड़ों से घिरी हुई है। इस स्थिति के कारण, सूर्य की किरणें सबसे पहले डोंग गांव में पहुंचती हैं। दिन के प्रथम प्रहर में सूर्य उगता है और जब यह घाटी के एक हिस्से के पीछे छुप जाता है तो एक बार के लिए यहां अंधेरा छा जाता है। फिर जब सूर्य घाटी के दूसरे क्षेत्र में से उगता है, तब लोगों को लगता है कि सूर्य ने दिन में दूसरी बार उगने का काम किया है।यह भौगोलिक घटना समझने के लिए यह जरूरी है कि हम पृथ्वी की प्राकृतिक घटनाओं को समझें। पृथ्वी का घूमाव और इसकी धुरी की झुकी हुई दिशा इस प्रक्रिया को संभव बनाती है। डोंग गांव का पूर्वी स्थान होने के कारण, यह सूर्य की पहली किरणों को देखने वाला भारत का प्रथम क्षेत्र है।

    गांव के लोग और उनका जीवन

    डोंग गांव में रहने वाले लोगों का जीवन साधारण परंतु प्रेरित करने वाला है। यहां की जनसंख्या बहुत कम है। लोग प्रमुख रूप से कृषि और पशुपालन पर निर्भर हैं।

    यहां के लोग मिश्मी जनजाति के समुदाय से संबंधित हैं। मिश्मी जनजाति के लोग अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और संस्कृति को बनाए रखने में विश्वास रखते हैं।

    अनकहे जीवन की झलक

    डोंग गांव के लोगों का जीवन प्रकृति के साथ जुड़कर जीने का एक अद्भुत उदाहरण है। यहां लोग प्रकृति के नियम और समय के अनुसार अपनी दिनचर्या का निर्धारण करते हैं। सुबह का समय सूर्य के उगते ही शुरू होता है। लोग खेतों में काम करने निकल जाते हैं। दिन के मध्य तक काम करने के बाद वे छोटा सा विश्राम लेते हैं।फिर सूर्य के दूसरी बार उगने के बाद अपने काम को दोबारा प्रारंभ करते हैं।

    मिश्मी जनजाति के लोग अपने हस्तशिल्प और हाथ से बने कपड़ों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका खाना-प्रथा भी उनकी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्थानीय व्यंजन जैसे कि ‘बांस की कोंपल की करी’ और ‘मिश्मी चाय’ विदेशी यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। प्रकृति के करीब रहकर जीने वाले ये लोग शांत और संतोषित जीवन का उदाहरण हैं।

    प्रमुख आकर्षण

    डोंग गांव की सबसे बड़ी प्रमुखता उसका प्राकृतिक सुंदरता और अनोखा सूर्योदय है। इस अनुभव को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। परंतु यह गांव सिर्फ अपनी भौगोलिक विशेषताओं तक सीमित नहीं है। यहां के प्राकृतिक स्रोत, वन्य जीवन और अनोखी संस्कृति भी बहुत कुछ कहती हैं।

    मिश्मी बोली में , ‘वा’ का अर्थ है बांस, और ‘लॉन्ग’ का अर्थ है स्थान या भूमि, जिससे इस क्षेत्र को बांस की भूमि के रूप में जाना जाता है। हालांकि, यह विश्वास करना कठिन है कि यह खूबसूरत बांस की भूमि कभी युद्ध क्षेत्र थी। लॉन्ग से थोड़ी ही दूरी पर नमति मैदान, भारत और चीन के बीच भीषण युद्ध का स्थल था। हमारी बहादुर सेना के अथक प्रयासों के बावजूद, युद्ध हार में समाप्त हुआ। लेकिन उनके बलिदान ने सुनिश्चित किया कि हम भारत के इस खूबसूरत हिस्से को बचा सकें। आज, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के निकट होने के कारण, लॉन्ग में एक सैन्य छावनी है। हर शाम, स्मारक पर एक ध्वनि और प्रकाश शो हमारे सैनिकों की बहादुरी और बलिदान को याद करता है।

    • इसी के साथ बता दें, डोंग गांव प्रतिबंधित क्षेत्र हैं। क्योंकि इन गांवों में स्वदेशी जनजातियों के कुछ निवासी रहते हैं। जो कोई भी अरुणाचल प्रदेश के बाहर से आता है, उसे अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा जारी आईएलपी या इनर लाइन परमिट के लिए आवेदन करना होता है।
    • डोंग गांव ऊंचाई पर स्थित होने के कारण बर्फीले ढके पहाड़ों, घने वनों और नदियों से घिरा हुआ है। यहां की लोहित नदी अपने सुंदर दृश्यों और मूल्य स्रोत के लिए जानी जाती है। गांव के आस-पास का वातावरण शीतल और साफ है, जो यहां आने वाले यात्रियों को एक शांत अनुभव देता है।
    • डोंग गांव की मिश्मी जनजाति अपनी संस्कृति और परंपरा के लिए जानी जाती है। यहां के लोगों की बोली, भाषा और रीति-रिवाजों में अपनी अलग पहचान है। यहां के त्योहार जैसे कि ‘रेह उत्सव’ मिश्मी जनजाति के धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं का प्रदर्शन करते हैं।
    • डोंग गांव की अनोखी स्थिति और प्राकृतिक महत्व के बावजूद, यहां के लोगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। गांव का दूर-दराज स्थान और सामान्य सुविधाओं की कमी यहां के लोगों के जीवन को कठिन बनाता है। यहां सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, जो विकास में बाधा डालती है।
    • लेकिन यह गांव पर्यटन और सतत विकास के लिए एक संभावना भी रखता है। डोंग गांव को एक पर्यटन स्थान के रूप में विकसित करने के लिए अगर सरकार और स्थानीय समुदाय मिलकर काम करें, तो यह गांव दुनिया भर में अपने अनोखे सूर्योदय के लिए और भी प्रसिद्ध हो सकता है।
    • डोंग गांव एक ऐसा स्थान है जो प्रकृति और मानव के संवाद का जीवंत उदाहरण है। यहां सूर्य का दिन में दो बार उगना एक अद्भुत भौगोलिक घटना है, जो दुनिया के अन्य क्षेत्रों में देखने को नहीं मिलती। डोंग गांव के लोगों का जीवन, उनकी संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता सभी को अपने ओर आकर्षित करती है।
    • यह गांव सिर्फ एक घूमने का स्थान नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव के बीच के संबंध को समझने का एक माध्यम भी है। इस गांव के अनुभव को जीने के लिए एक बार यहां जाना आवश्यक है, जहां सूर्य अपने अनोखे रूप में प्रकृति के चमत्कार को प्रस्तुत करता है।
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