नागपुर में मुगल सम्राट औरंगजेब के मकबरे को लेकर शुरू हुआ विवाद थम नहीं रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रवक्ता सुनील अंबेकर ने बुधवार को कहा कि औरंगजेब आज के समय में प्रासंगिक नहीं हैं और किसी भी तरह की हिंसा समाज के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। लेकिन पुलिस, भाजपा और RSS ने विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल की भूमिका पर चुप्पी साध रखी है, जिन्होंने मकबरे को हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन का आह्वान किया था। उसके बाद हिंसा शुरू हो गई।
अंबेकर ने क्या कहा
संघ प्रवक्ता सुनील अंबेकर ने कहा, “सवाल यह है कि क्या औरंगजेब आज प्रासंगिक हैं अगर हां, तो क्या उनका मकबरा हटाया जाना चाहिए जवाब है कि वह प्रासंगिक नहीं हैं। किसी भी प्रकार की हिंसा समाज के लिए हानिकारक है।” उन्होंने हिंसा को रोकने और शांति बनाए रखने की अपील की। आरएसएस पदाधिकारी के बयान का अर्थ यही है कि औरंगजेब का मुद्दा अब प्रासंगिक नहीं है। जब वो प्रासंगिक नहीं है तो उनकी कब्र हटाने का मुद्दा भी बेकार है। औरंगजेब के नाम पर हिंसा समाज के लिए नुकसानदेह है।
यह विवाद सोमवार को उस समय शुरू हुआ था, जब VHP और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने खुल्दाबाद में औरंगजेब के मकबरे को हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान औरंगजेब के पुतले को ‘चादर’ के साथ जलाया गया। इसके बाद अफवाह फैल गई कि चादर पर कुरान की आयतें थीं, जिन्हें जलाया गया है। इससे दो समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया। नतीजतन, महाल और हंसापुरी इलाकों में तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं हुईं। भीड़ ने घरों पर हमला किया और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया। वीएचपी और बजरंग दल ने प्रदर्शन से पहले बयान दिया था कि अगर औरंगजेब की कब्र नहीं हटाई गई तो उसका हाल बाबरी मस्जिद जैसा होगा। जिसे 6 दिसंबर 1992 को हिन्दू कारसेवकों ने अयोध्या में गिरा दिया था। पुलिस ने वीएचपी और बजरंग दल के खिलाफ अभी तक लोगों को भड़काने का कोई केस दर्ज नहीं किया है।
हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘छावा’, जो मराठा राजा छत्रपति संभाजी महाराज के इतिहास और औरंगजेब द्वारा उनकी हत्या को दर्शाती है, ने इस विवाद को और हवा दी।
- महाराष्ट्र में औरंगजेब पहले से ही एक ध्रुवीकरण करने वाला मुद्दा रहा है, और इस फिल्म ने इस संवेदनशीलता को फिर से उजागर किया।
कथित मास्टरमाइंड गिरफ्तार
बुधवार को पुलिस ने हिंसा के कथित मास्टरमाइंड फहीम शमीम खान को गिरफ्तार किया। पुलिस का कहना है कि फहीम ने ही अफवाहें फैलाईं और दंगा कराया। फहीम माइनॉरिटीज डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) का नेता है। पुलिस का कहना है कि हिंसा सुनियोजित थी और इसमें पेट्रोल बम का इस्तेमाल हुआ, जो तुरंत नहीं मिल सकते। यानी उनकी तैयारी की गई थी। लेकिन बजरंग दल, वीएचपी, मंत्री नितेश राणा आदि की भड़काऊ बयानबाजी से इस हिंसा को नहीं जोड़ा गया है।
हालांकि VHP के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने दावा किया कि उनके संगठन का प्रदर्शन शांतिपूर्ण था और हिंसा को भड़काने में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी कहा कि यह हिंसा सुनियोजित थी। पेट्रोल बम तुरंत नहीं मिलते, ये पहले से तैयार किए गए थे। हमारा प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, इसमें कोई उकसावा नहीं था।” हालांकि फडणवीस ने वीएचपी और बजरंग दल के बयानों का समर्थन किया था और यह भी कहा था कि वो भी चाहते हैं कि औरंगजेब की कब्र हटनी चाहिए लेकिन ऐतिहासिक विरासत साइट होने के कारण इसमें बाधाएं हैं। वैसे केंद्र और महाराष्ट्र में बीजेपी की सत्ता है, अगर वो औरंगजेब की कब्र हटाना चाहेगी तो पुरातत्व नियम बदल कर हटा भी सकती है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि यह मांग औरंगजेब की कब्र हटाने के बाद अन्य विरासत धरोहरों को हटाने के लिए नहीं होगी।
- नागपुर हिंसा पर फडणवीस, बीजेपी, आरएसएस की प्रतिक्रिया ने सवाल खड़े किए हैं। विपक्ष का आरोप है कि सत्तारूढ़ दल इस मामले में दोहरा रवैया अपना रहा है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने नागपुर हिंसा के लिए मंगलवार को बीजेपी और संघ से जुड़े संगठनों को जिम्मेदार ठहराया था।
क्या चाहती है बीजेपी
यह घटना न केवल नागपुर बल्कि पूरे देश में बढ़ते धार्मिक उन्माद को लेकर एक चेतावनी भी है। ऐतिहासिक मुद्दों को लेकर बार-बार होने वाले विवाद और हिंसा देश की एकता को कमजोर करते हैं। औरंगजेब जैसे ऐतिहासिक चरित्रों पर बहस जरूरी हो सकती है। तीन सौ साल पहले के किसी शख्स की भूमिका को हिंसा का आधार बनाना कैसे और कहां तक उचित है। यह सवाल अब देश के लोगों को करना ही चाहिए। लेकिन तमाम राजनीतिक दल और संगठन अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं और भड़काऊ बयानों को लगातार हवा दे रहे हैं।
रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी