पाकिस्तान पर अमेरिका की मेहरबानी एक बार फिर सुर्खियों में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मित्रता के बावजूद, अमेरिका भारत की चिंताओं को अनदेखा करता दिख रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपनी सैन्य ताक़त का लोहा मनवाया लेकिन पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से अरबों डॉलर की मदद, संयुक्त राष्ट्र में अहम ज़िम्मेदारियाँ, और अमेरिकी आर्मी डे में पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष का निमंत्रण बताता है कि दुनिया भारत की इस बात को गंभीरता से नहीं ले रही है कि पाकिस्तान एक आतंकी देश है। इसका सबसे बड़ा कारण अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का दोहरा रवैया है।
जनरल माइकल कुरिल्ला का बयान
अमेरिकी सेंट्रल कमांड के प्रमुख, जनरल माइकल कुरिल्ला ने 11 जून 2025 को अमेरिकी सशस्त्र सेवा समिति में कहा, “पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अभूतपूर्व साझेदार रहा है। लेकिन अमेरिका को भारत और पाकिस्तान, दोनों के साथ रणनीतिक संबंध बनाए रखने चाहिए।”
कुरिल्ला का तर्क है कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर ISIS-खुरासान के खिलाफ कई ऑपरेशन किए। 2021 में काबुल हवाई अड्डे पर हुए हमले, जिसमें 13 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे, के आरोपी शरीफुल्लाह को मार्च 2025 में पाकिस्तान ने पकड़कर अमेरिका को सौंपा। तभी से ट्रंप प्रशासन और अमेरिकी सेना पाकिस्तान की तारीफ कर रही है।
इतना ही नहीं, अमेरिका ने 14 जून की आर्मी डे परेड में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर को बतौर अतिथि आमंत्रित करके भारत को एक तरह से चिढ़ाया है। 1775 में गठित अमेरिकी सेना का यह 250वाँ स्थापना दिवस है। भारत का आरोप रहा है कि जनरल आसिम मुनीर एक कट्टरपंथी जनरल हैं और जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को न भुलाने की बात कहकर उन्होंने आतंकियों को हमला करने के लिए उकसाया था। पाकिस्तान की सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद उन्हें फ़ील्ड मार्शल बना दिया है। इसके पहले सिर्फ़ जनरल अयूब ख़ान ही फ़ील्ड मार्शल बनाये गये थे जिन्होंने 1958 में तख्तापलट किया था।
पाकिस्तान को मदद
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान को भारी वित्तीय मदद मिली:
- IMF: 9 मई 2025 को 1 अरब डॉलर का लोन।
- विश्व बैंक: अगले 10 साल में 40 अरब डॉलर का प्रस्ताव।
- एशियाई विकास बैंक (ADB): 80 करोड़ डॉलर।
- UAE: 1 अरब डॉलर का कर्ज।
- अमेरिका: F-16 रखरखाव के लिए 40 करोड़ डॉलर।
चीन, तुर्की, अजरबैजान, कुवैत, ईरान, और UAE ने पाकिस्तान के साथ समझौते किए। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को 2025-26 के लिए गैर-स्थायी सदस्य चुना गया, और उसे तालिबान प्रतिबंध समिति (1988) का अध्यक्ष और आतंकवाद विरोधी समिति (1373) का उपाध्यक्ष बनाया गया। ये समितियां तालिबान और वैश्विक आतंकवाद पर नजर रखती हैं। भारत का कहना है कि पाकिस्तान UN-प्रतिबंधित आतंकियों का गढ़ है, फिर उसे ऐसी जिम्मेदारी क्यों?
लेकिन यह भारत की कूटनीति के लिए चुनौती है। किसी भी वीटो पावर वाले देश, यहां तक कि रूस ने भी, इसका विरोध नहीं किया।
ट्रंप की दोहरी नीति
ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप ने सीजफायर का श्रेय लिया। उन्होंने दावा किया कि उनकी मध्यस्थता ने परमाणु युद्ध रोका। एक अमेरिकी अदालत में हलफनामे में भी ट्रंप प्रशासन की ओर से यही कहा गया। जबकि भारत ने साफ़ किया कि सीजफायर DGMO स्तर की बातचीत से हुआ। ट्रंप ने भारत पर 10% टैरिफ हटाने का दबाव बनाया, चार भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए, और पाकिस्तान को F-16 के लिए 40 करोड़ डॉलर दिए।
यह सब तब हो रहा है जब प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप को लगातार अपना प्रिय मित्र बताया और बीजेपी समेत तमाम दक्षिणपंथी संगठनों ने उनकी जीत के लिए यज्ञ आदि किए थे। 2019 में ह्यूस्टन के ‘हाउडी मोदी’ और 2020 में अहमदाबाद के ‘नमस्ते ट्रंप’ आयोजनों में मोदी और ट्रंप की मित्रता चर्चा में थी। लेकिन ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप पाकिस्तान को चीन के प्रभाव से दूर करना और अफगानिस्तान में निगरानी बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन इससे भारत की कूटनीतिक स्थिति कमजोर हो रही है।
क्या भारत अकेला पड़ गया?
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने 33 देशों में 59 सांसदों की 7 टीमें भेजीं। शशि थरूर के नेतृत्व में भारतीय संसदीय समिति ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस से मुलाकात की, जो पहलगाम हमले के समय भारत में थे। लेकिन जे.डी.वेंस ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई बयान नहीं दिया। कोई देश पाकिस्तान को आतंकी देश नहीं कह रहा। सऊदी अरब, रूस, और बहरीन तटस्थ रहे। तुर्की, चीन और अज़रबैन खुलकर पाकिस्तान के साथ रहे।
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य ताकत का डंका बजाया, लेकिन कूटनीतिक मोर्चे पर चुनौतियां बरकरार हैं। ट्रंप की दोहरी नीति, UN में पाकिस्तान की भूमिका, और रूस का BRICS समर्थन भारत के लिए सवाल उठाते हैं। भारत को अपनी कूटनीति को और तेज करना होगा, ताकि वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को आतंकी देश साबित किया जा सके।