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    Home » Mount Kailash Map: भारत की आत्मा में बसता कैलाश, पर मानचित्र में क्यों नहीं?
    Tourism

    Mount Kailash Map: भारत की आत्मा में बसता कैलाश, पर मानचित्र में क्यों नहीं?

    Janta YojanaBy Janta YojanaAugust 31, 2025No Comments5 Mins Read
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    Mount Kailash Map History (Image Credit-Social Media)

    Mount Kailash Map History

    Mount Kailash Map History: हिमालय की ऊंचाइयों में स्थित कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप की आस्था, अध्यात्म और संस्कृति के केंद्र रहे हैं। यह स्थान न केवल हिन्दू धर्म बल्कि जैन, बौद्ध और सिख परंपरा के लिए भी अत्यधिक पवित्र माना जाता है। हर वर्ष हजारों श्रद्धालु कठिन रास्तों और ऊंचाई की चुनौतियों को पार करके यहां पहुंचने का प्रयास करते हैं। लेकिन एक सवाल लोगों के मन को बार-बार कचोटता है,वह यह कि, इतना महत्वपूर्ण और पवित्र स्थल भारत की भौगोलिक सीमाओं में क्यों नहीं आता? आखिरकार यह भारत से अलग कैसे हो गया और वर्तमान में इसकी स्थिति क्या है? आइए इस बारे में जानते हैं विस्तार से –

    कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील का धार्मिक जुड़ाव और आध्यात्मिक महत्व

    कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों से जुड़े हैं। हिन्दू धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है और मानसरोवर झील को मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती है। जैन धर्म में यही भूमि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की निर्वाण स्थली कही जाती है। जबकि बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे ब्रह्मांडीय ऊर्जा का केंद्र मानते हैं। सिख परंपरा में भी माना जाता है कि गुरु नानक देव जी ने इस स्थान पर ध्यान साधना की थी। इन धार्मिक कथाओं से यह स्पष्ट है कि कैलाश और मानसरोवर भारतीय आध्यात्मिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा रहे हैं, भले ही वे राजनीतिक रूप से भारत की सीमा में न आते हों।

    कैलाश और तिब्बत का रहा है ऐतिहासिक रिश्ता

    इतिहास पर नजर डालें तो कैलाश मानसरोवर प्राचीनकाल से तिब्बत का हिस्सा रहा है। तिब्बत स्वयं एक स्वतंत्र और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश था, जहां से भारत के साथ व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता रहा। भारत के संत-महात्मा और बौद्ध भिक्षु पैदल ही यहां यात्रा के लिए जाते थे। उस दौर में सीमाओं की जटिलता उतनी नहीं थी जितनी आज है, इसलिए यह यात्रा सहज और धार्मिक दृष्टि से पूरी तरह स्वतंत्र थी।

    1950 में चीन का तिब्बत पर हुआ नियंत्रण

    परिस्थितियां 20वीं सदी में अचानक बदल गईं, जब चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया। 1950 में चीनी सेना ने सैन्य कार्रवाई करते हुए तिब्बत पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। इस कब्ज़े के बाद कैलाश मानसरोवर भी चीन के अधिकार क्षेत्र में आ गया। भारत ने तिब्बत की स्वतंत्रता के समर्थन में आवाज तो उठाई, लेकिन उस समय तटस्थ विदेश नीति और सैन्य क्षमता की सीमाओं के कारण कोई ठोस कदम नहीं उठा सका। नतीजतन, यह पवित्र स्थल चीन के अधीन चला गया।

    क्या था पंचशील समझौता और भारत का रुख

    1954 में भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता हुआ, जो दोनों देशों के संबंधों में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। इस समझौते के तहत भारत ने पहली बार औपचारिक रूप से तिब्बत को चीन का हिस्सा स्वीकार कर लिया। इस स्वीकारोक्ति के साथ ही कैलाश मानसरोवर क्षेत्र भी चीन के अधिकार क्षेत्र में शामिल हो गया। यही वह क्षण था, जब भारत ने कूटनीतिक रूप से इस पवित्र स्थल पर अपना अधिकार खो दिया।

    मौजूदा समय में भारत की स्थिति और दावेदारी

    आज कैलाश मानसरोवर चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा है। भारत की ओर से इस पर कोई औपचारिक दावेदारी नहीं है। हालांकि, सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी संगठन समय-समय पर यह मांग करते रहते हैं कि भारत को इस स्थल पर अपने ऐतिहासिक और धार्मिक अधिकारों को लेकर पहल करनी चाहिए। लेकिन चीन की सख्त नीतियों और भू-राजनीतिक परिस्थितियों के चलते यह मुद्दा व्यवहारिक स्तर पर आगे नहीं बढ़ पाता।

    वर्तमान समय में भारतीय श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर की यात्रा दो मुख्य मार्गों से होकर करते हैं। उत्तराखंड के लिपुलेख पास और सिक्किम के नाथुला पास से कर सकते हैं। यह यात्रा भारत और चीन के बीच हुए समझौते के आधार पर संभव होती है। तीर्थयात्रियों को यात्रा से पहले चीन का वीज़ा लेना पड़ता है, साथ ही मेडिकल फिटनेस टेस्ट और अन्य औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं। यह यात्रा शारीरिक, मानसिक और आर्थिक दृष्टि से बेहद चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन श्रद्धालु इसे अपनी सबसे बड़ी आध्यात्मिक उपलब्धि मानते हैं।

    कैलाश मानसरोवर का प्रश्न केवल धर्म या संस्कृति का नहीं है, बल्कि यह राजनीति और कूटनीति से भी गहराई से जुड़ा है। चीन इस क्षेत्र को सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानता है, और भारत-चीन संबंधों में आए उतार-चढ़ाव के चलते यह मुद्दा और भी जटिल हो गया है। 1962 के युद्ध से लेकर हालिया सीमा तनाव तक, इस क्षेत्र का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि रणनीतिक भी बन चुका है।

    कैलाश मानसरोवर का भारत से अलग होना सीधे तौर पर तिब्बत की राजनीतिक स्थिति और भारत-चीन संबंधों का परिणाम है। 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्ज़े और 1954 के पंचशील समझौते ने इसे भारत की भौगोलिक सीमा से बाहर कर दिया। आज यह स्थल भले ही चीन का हिस्सा हो, लेकिन भारतीय संस्कृति और आस्था में इसकी जगह अटूट है। यह स्थल भारत की आत्मा और विश्वास का केंद्र है। चाहे राजनीतिक मानचित्र इसे किसी और देश की सीमा में दिखाए।

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