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    Home » लालू कुनबे में घमासान,तेज प्रताप से लेकर रोहिणी आचार्य तक, सबकी नजर में ‘जयचंद’ क्यों बने संजय यादव?
    राजनीति

    लालू कुनबे में घमासान,तेज प्रताप से लेकर रोहिणी आचार्य तक, सबकी नजर में ‘जयचंद’ क्यों बने संजय यादव?

    Janta YojanaBy Janta YojanaSeptember 21, 2025No Comments6 Mins Read
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    बिहार में लालू कुनबे में मची है कलह (Photo: Social Media)

    बिहार में लालू कुनबे में मची है कलह

    RJD Family Politics: बिहार की राजनीति हमेशा से ही उलझी हुई और दिलचस्प रही है लेकिन 1990 से लेकर 2005 तक जिस परिवार ने बिहार की सत्ता पर राज किया, अब उसी परिवार के अंदर सियासी तूफान मच गया है। यह परिवार, राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का परिवार है। इस परिवार में आए इस संकट को कोई मामूली बात नहीं समझ सकता, क्योंकि लालू यादव का परिवार बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली शक्ति के रूप में जाना जाता है। अब, पार्टी के भीतर एक अनदेखी अंदरूनी जंग छिड़ गई है, और इसे लेकर परिवार के लोग भी खुलकर अपनी राय रखने लगे हैं।

    तेज प्रताप यादव और रोहिणी आचार्य की नाराजगी

    लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव और उनकी बहन रोहिणी आचार्य, पार्टी के भीतर चल रहे इस संकट से काफी परेशान हैं। तेज प्रताप यादव, जो कभी अपने पिता के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाते थे, आज अपने परिवार और पार्टी के अंदर एक सियासी संघर्ष में फंसे हुए हैं। वे बार-बार सार्वजनिक मंचों से यह कहते हैं कि पार्टी में एक ‘जयचंद’ घुस चुका है, जो पार्टी को हाइजैक करना चाहता है। तेज प्रताप का यह बयान किसी एक व्यक्ति पर सीधा निशाना है, हालांकि उन्होंने नाम नहीं लिया। इसके बावजूद यह पूरी बिहार की सियासत में एक बड़ा बयान बन गया है।

    रोहिणी आचार्य, जो कि तेजस्वी यादव के परिवार से बाहर हैं, भी अपनी नाराजगी जताती हुई नजर आईं। रोहिणी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने अपने परिवार के भीतर चल रही सियासी कलह पर गहरी नाराजगी व्यक्त की। उनका यह भी कहना था कि जो लोग पार्टी में विश्वासघात कर रहे हैं, वे उस पार्टी को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे उनके पिता ने मेहनत से बनाया था।

    अब सवाल उठता है कि यह ‘जयचंद’ कौन है, जिस पर तेज प्रताप और रोहिणी आचार्य की नाराजगी का केंद्र बना है? हालांकि, तेज प्रताप ने कभी भी इस शख्स का नाम सार्वजनिक रूप से नहीं लिया, लेकिन उनकी भाषा और संकेतों से यह साफ हो जाता है कि यह शख्स तेजस्वी यादव के करीबी सलाहकार, संजय यादव हो सकते हैं। संजय यादव को तेजस्वी यादव का ‘राजनीतिक गुरु’ भी माना जाता है, और तेजस्वी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में उनकी अहम भूमिका है।

    यह भी कहा जाता है कि संजय यादव ने तेजस्वी की छवि को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनका काम केवल तेजस्वी के भाषणों और कार्यों की रणनीति बनाने तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने पार्टी के भीतर भी कई अहम बदलाव किए थे। लालू यादव के पुराने सिपहसालारों को पार्टी से बाहर किया गया, और नई टीम का गठन किया गया, जिससे पार्टी में एक नया समीकरण बन गया।

    संजय यादव: एक विवादित पात्र

    संजय यादव, तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार और करीबी मित्र, बिहार के महेन्द्रगढ़ जिले के नंगल सिरोही गांव से आते हैं। संजय यादव का बिहार की राजनीति में आना और यहां तक कि राष्ट्रीय जनता दल में महत्वपूर्ण स्थान हासिल करना काफी विवादित रहा है। उनका संबंध बिहार से नहीं है, और यही बात पार्टी के अंदर और बिहार के स्थानीय नेताओं को खटकती है। संजय यादव, जो पहले क्रिकेटर रहे थे, ने राजनीति में आने से पहले एक मल्टीनेशनल कंपनी में भी काम किया था। 2013 में जब लालू यादव को जेल हुई, तो तेजस्वी यादव ने उन्हें पार्टी में बुलाया और संजय यादव ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की।

    संजय यादव की राजनीतिक समझ और रणनीति ने उन्हें तेजस्वी के करीबी बना दिया। उन्होंने न केवल तेजस्वी की छवि को नया रूप दिया, बल्कि आरजेडी को कॉलेज कैंपस में भी स्थापित किया। उनका एक अहम योगदान यह था कि उन्होंने ‘जंगलराज’ के आरोपों से लालू यादव की छवि को मुक्त करने में मदद की और तेजस्वी यादव को एक सेक्युलर राजनेता के रूप में प्रस्तुत किया।

    तेजस्वी यादव और संजय यादव का गहरा संबंध

    तेजस्वी यादव और संजय यादव के बीच की दोस्ती बहुत गहरी है। दोनों के बीच परस्पर विश्वास और समझदारी का स्तर इतना उच्च है कि तेजस्वी के फैसलों में संजय का प्रभाव साफ देखा जा सकता है। तेजस्वी की भाषण शैली 2015 के बाद काफी बदल गई, और इसे संजय यादव की रणनीति के तहत ही देखा जा सकता है। संजय ने तेजस्वी के राजनीतिक दृष्टिकोण को न केवल बदला, बल्कि उसे और मजबूत भी किया।

    संजय यादव की बढ़ती दखलंदाजी ने पार्टी के कई पुराने नेताओं को नाराज कर दिया। कई लोग यह मानते हैं कि उनकी राजनीति में ज्यादा हस्तक्षेप ने ही आरजेडी में टूट की स्थिति पैदा की। वे न केवल तेजस्वी के करीबी हैं, बल्कि बिहार के राजनीतिक समीकरणों को भी बेहतर समझते हैं और उन्हें साधने में माहिर हैं। यही कारण है कि वे पार्टी के भीतर अधिक अहमियत प्राप्त करने में सफल रहे हैं, लेकिन यह बात पार्टी के पुराने नेताओं के लिए स्वीकार्य नहीं रही।

    पार्टी में बढ़ती आंतरिक कलह को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं। तेज प्रताप यादव ने तो खुद यह कहा था कि अगर यही स्थिति बनी रही, तो पार्टी के लिए चुनावों में बुरा परिणाम हो सकता है। उनके मुताबिक, पार्टी के भीतर जो ‘जयचंद’ हैं, उन्हें अगर जल्द ही न रोका गया, तो वह पार्टी को बर्बाद कर देंगे।

    रोहिणी आचार्य का भी यही मानना था कि तेजस्वी यादव को अपने आसपास के लोगों से सावधान रहना चाहिए। उनका यह भी कहना था कि लालू प्रसाद यादव ने जिस पार्टी को संघर्षों के बाद खड़ा किया, उसी पार्टी को अब कुछ लोग नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।

    बिहार की राजनीति में अब बहुत से बदलाव देखे जा रहे हैं, जिनकी वजह से भविष्य में नई सियासी राहें खुल सकती हैं। इस संकट के बीच एक सवाल यह भी उठता है कि क्या तेजस्वी यादव और उनके करीबी सलाहकार संजय यादव इस पार्टी को संभाल पाएंगे? क्या लालू यादव की अनुपस्थिति में यह परिवार राजनीति के अंदर अपने पुराने कद को बनाए रख पाएगा, या फिर परिवार में और भी झगड़े होंगे?

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