
Somnath Returns After 1000 Years
Somnath in Madhya Pradesh: मध्यप्रदेश इस समय एक ऐसे दिव्य अवसर का साक्षी बन रहा है जिसकी प्रतीक्षा सदियों से की जा रही थी। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के वे पवित्र अंश, जो लगभग एक सहस्राब्दी तक इतिहास के अंधेरों में छिपे रहे, अब फिर असंख्य भक्तों की आस्था का केन्द्र बनने जा रहे हैं। इंदौर से लेकर भोपाल और ग्वालियर से लेकर जबलपुर तक, हर शहर इस अद्वितीय आध्यात्मिक यात्रा का स्वागत करने को तैयार है। यह केवल दर्शन का अवसर नहीं, बल्कि उस महान धरोहर के पुनर्जीवन का क्षण है जिसे आक्रमणों, युद्धों और समय के थपेड़ों के बीच भी मिटाया नहीं जा सका। गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम माना जाता है। हजारों वर्षों से यह मंदिर भारतीय सभ्यता, उसके आध्यात्मिक बल और सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक रहा है। यह स्थान केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि इतिहास के उतार चढ़ाव का साक्षी भी रहा है। यहां शिवलिंग की स्थापना का इतिहास, मंदिर के अनेक पुनर्निर्माण और इसके जुड़े रहस्य आज भी लोगों रोमांचित करते हैं।
सोमनाथ शिवलिंग की उत्पत्ति और पौराणिक गाथा
सोमनाथ शिवलिंग की शुरुआत चंद्रदेव की तपस्या से जुड़ी है। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है कि चंद्रदेव को श्राप मिला था और उससे मुक्ति के लिए उन्होंने इसी स्थान पर कठोर तप किया। भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने चंद्रमा को जीवनदान दिया। कृतज्ञता में चंद्रदेव ने इस स्थान पर एक दिव्य लिंग की स्थापना की, जिसे आगे चलकर ‘सोमनाथ’ कहा गया अर्थात सोम (चंद्रमा) के नाथ।
पहला ज्योतिर्लिंग माने जाने का कारण
पुराणों के अनुसार इसी स्थान पर भगवान शिव ने ज्योति रूप में प्रकट होकर अपनी अनंत ऊर्जा का दर्शन कराया। इसी कारण इसे प्रथम ज्योतिर्लिंग की उपाधि मिली। ज्योतिर्लिंग वह स्थान माना जाता है, जहां शिव स्वयं प्रकाश-स्तंभ के रूप में प्रकट हुए हों। यहां का वातावरण अपने माहात्म्य का बखान करता हुआ आज भी अलौकिक शांति और आस्था से भरा रहता है। जो इस मान्यता को और भी बल देता है।
आर्थिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है सोमनाथ मंदिर
प्राचीन सोमनाथ मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं था, बल्कि आर्थिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक गतिविधियों का भी केंद्र था। विदेशी यात्रियों के अनुसार मंदिर में नवरत्नों से भरे भंडार, सोने-चांदी से अलंकृत भवन और समुद्री मार्गदर्शन के लिए ऊंचे स्तंभ थे। यहां से समुद्र मार्गों की दिशा तय की जाती थी, जो इसे दिशा निर्देशन का भी प्रमुख केंद्र बनाता था।
सोमनाथ मंदिर पर हमले और संघर्ष का इतिहास
सोमनाथ मंदिर की कहानी जितनी पवित्र है, उतनी ही संघर्षपूर्ण भी। इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर पर कई बार आक्रमण हुए। इनमें सबसे चर्चित 1025 ई. में महमूद गजनवी का हमला है। उसने मंदिर को लूटा, तोड़ा और अनमोल धरोहरों को नष्ट कर दिया। इसके बाद भी मंदिर अनेक बार गिराया गया और हर बार फिर से खड़ा किया गया। इस मंदिर का लगातार पुनर्निर्माण भारतीय संस्कृति की अडिग आस्था का उदाहरण है।
टूटे हुए शिवलिंग को बचाने का प्रयास
इतिहासकारों के अनुसार, मूल शिवलिंग को नष्ट करने की प्रत्येक कोशिश के बाद पुजारियों ने उसके बचाए जा सकने वाले हिस्सों को छिपा लिया। कई हिस्से समुद्र किनारे की गुफाओं में छिपाए गए, कुछ जंगलों में दफन किए गए, कुछ को दक्षिण भारत ले जाया गया।
यह अंश धीरे-धीरे 11 सुरक्षित लिंगों के रूप में संरक्षित रहे। हर टुकड़ा उस समय का साक्षी बना, जब भारत की आध्यात्मिक धरोहर को मिटाने की कोशिशें की जा रही थीं।
हमलों के समय पुजारियों और स्थानीय समुदाय ने शिवलिंग के टुकड़ों को सुरक्षित रखने के लिए अनेक प्रयास किए। कई अंशों को गुप्त रूप से अन्य क्षेत्रों में ले जाकर पीढ़ियों तक संरक्षित रखा गया। इन्हीं अंशों में से कुछ को सदियों बाद फिर पहचाना गया और उनकी आध्यात्मिक व ऐतिहासिक महत्ता को स्वीकार किया गया।
मंदिर के पुनर्निर्माण का लंबा कालक्रम
सोमनाथ का पुनर्निर्माण कई ऐतिहासिक चरणों में हुआ। सबसे पहले चंद्रदेव द्वारा, फिर रावण और उसके बाद भगवान कृष्ण के समय में इसका विस्तार हुआ। मौर्य शासन, वल्लभी राजवंश और प्रतिहार राजाओं ने भी इसे पुनर्जीवित किया। कई आक्रमणों के बाद भी इसकी महिमा को कभी मिटाया नहीं जा सका। औरंगज़ेब के शासनकाल में अंतिम विध्वंस हुआ, लेकिन आज भी मंदिर मजबूती से खड़ा है क्योंकि उसका पुनर्निर्माण एक जीवंत परंपरा रही है।
स्वतंत्र भारत में सोमनाथ का पुनरुत्थान
1947 के बाद सरदार पटेल और के.एम. मुंशी ने दृढ़ निश्चय किया कि सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण होना चाहिए। यह केवल एक मंदिर की स्थापना नहीं, बल्कि भारत की आत्मा को पुनः खड़ा करने जैसा था। 1951 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर का उद्घाटन किया। यह स्वतंत्र भारत की संस्कृति पुनर्स्थापना का ऐतिहासिक क्षण था।
सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला और वैज्ञानिक अद्भुतता
सोमनाथ मंदिर की विशेषता केवल उसकी कला नहीं, बल्कि उसकी वैज्ञानिक संरचना भी है। गर्भगृह से दक्षिण दिशा में सीधी रेखा में समुद्र पार तक कोई भूभाग नहीं है, जो प्राचीन भारतीय नेविगेशन ज्ञान का प्रमाण है। मंदिर इस तरह बनाया गया है कि समुद्र की लहरें इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाती। इसके आसपास की ऊर्जा को कई लोग आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र मानते हैं।
प्राचीन अवशेषों की पहचान कैसे हुई
सोमनाथ के मूल अंशों की पहचान एक अभूतपूर्व और लंबी यात्रा का परिणाम थी। तमिलनाडु के पंडित सीताराम शास्त्री के परिवार में पीढ़ियों से सुरक्षित रखे गए ये अवशेष लंबे समय तक केवल पूजा की वस्तु के रूप में जाने जाते रहे।
एक दिन उन्हें अपनी परंपरा के शास्त्र संकेतों से अनुभूति हुई कि अब समय आ गया है कि इन अवशेषों को भारत के सामने लाया जाए।
उन्होंने इन अंशों को लेकर कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य के पास जाकर मार्गदर्शन मांगा।
शंकराचार्य ने स्पष्ट कहा कि, ‘समय बदल चुका है। अब इन्हें जनता तक पहुंचना चाहिए। आप इन्हें बेंगलुरु ले जाएं। वहां संत गुरुदेव श्री श्री रविशंकर। इन्हें उनके संरक्षण में रखिए।’
जब विद्वानों, शास्त्रियों और इतिहासकारों ने उनका गहन अध्ययन किया, तो उनकी आकृति, बनावट और शिल्पकला के आधार पर स्पष्ट संकेत मिले कि ये वही दिव्य अंश हैं जो सोमनाथ के मूल शिवलिंग से जुड़े थे। प्राचीन वंशावली के अभिलेखों और दक्षिण भारत में सुरक्षित परंपराओं ने इस तथ्य की पुष्टि और अधिक मजबूत कर दी।
वैज्ञानिक परीक्षणों में सामने आए रहस्य
जब इन अवशेषों को आधुनिक वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए प्रस्तुत किया गया तो विशेषज्ञ चकित रह गए। सामान्य चुम्बकीय पत्थरों में जहां लोहे की मात्रा अधिक होती है। वहीं इन अंशों में लोहे की मात्रा बहुत कम थी, लेकिन इनका चुंबकीय क्षेत्र अत्यधिक शक्तिशाली था। यह चुंबकत्व सामान्य गुणों से बिल्कुल अलग था और किसी ज्ञात खनिज की श्रेणी में भी नहीं आता था। इससे भूवैज्ञानिकों में उत्सुकता बढ़ी और उन्होंने इसे एक अत्यंत दुर्लभ और असाधारण प्रकृति का पत्थर बताया। यह शोध इस बात को भी प्रमाणित करता है कि प्राचीन भारत की आध्यात्मिक धरोहर केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अद्भुत रही है।
विश्व ध्यान दिवस का अवसर और अवशेषों के संरक्षण की आध्यात्मिक महत्ता
इन अवशेषों के संरक्षण का दायित्व गुरुदेव श्री श्री रविशंकर को सौंपा गया, जो विश्वभर में शांति, सद्भाव और मानवता के संदेश के लिए जाने जाते हैं। कांची शंकराचार्य द्वारा उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपना आधुनिक संत-परंपरा के बीच एक सेतु का निर्माण भी है। यह भी संयोग की बात है है कि 21 दिसंबर को गुरुदेव विश्व ध्यान दिवस के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं। ऐसे समय में इन पवित्र अवशेषों का उनके संरक्षण में होना एक आध्यात्मिक ऊर्जा का अनूठा संयोग माना जा रहा है।
मध्यप्रदेश में दिव्य यात्रा का कार्यक्रम
सोमनाथ के ये पवित्र अंश जब मध्यप्रदेश में पहुंच रहे हैं। इस दिव्य आयोजन के इंतजार में वहां की हवा भक्ति, आस्था और उल्लास से भर उठी है। मध्यप्रदेश में प्रस्तावित दिव्य यात्रा कार्यक्रम इस प्रकार निर्धारित है –
इंदौर
14 से 27 दिसंबर तक इंदौर में रहने वाले इन अवशेषों के दर्शन के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं। शहर में भक्ति का ऐसा वातावरण बन गया है मानो स्वयं महादेव यहां विराजमान हों।
भोपाल
28 दिसंबर से 5 जनवरी तक भोपाल में इन पवित्र अंशों का स्वागत किया जाएगा। राजधानी होने के कारण यहां हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने का अनुमान है।
ग्वालियर
14 से 20 जनवरी तक ग्वालियर में दर्शन का अवसर मिलेगा। ऐतिहासिक नगर होने के कारण यहां इस यात्रा का विशेष महत्व है।
जबलपुर
21 दिसंबर से 5 जनवरी तक जबलपुर भी इस दिव्य धरोहर का साक्षी बनेगा। नर्मदा तट पर स्थित यह शहर हमेशा से धार्मिक परंपराओं का केंद्र रहा है।
यह यात्रा केवल पवित्र अवशेषों का दर्शन कराने के लिए नहीं है। बल्कि यह भारत की संस्कृति का आध्यात्मिक उत्सव बनने जा रही है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के इन अंशों की पुनः उपस्थिति एक मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं, बल्कि भारत की आत्मा के पुनर्जागरण का प्रतीक है।


