
Karnataka Shravanabelagola Lord Bahubali Statue History
Karnataka Shravanabelagola Lord Bahubali Statue History
Bahubali Statue History in Hindi: यह पावन भारतभूमि आदिकाल से ही ऋषियों, मुनियों, संतों और आत्मज्ञानी पुरुषों की तपस्थली रही है, जिन्होंने अपने गहन साधना, त्याग और आध्यात्मिक अनुकरण से मानवता को प्रकाश और पथदर्शन प्रदान किया। इन्हीं महान आत्माओं में एक थे, भगवान बाहुबली, जो न केवल जैन धर्म के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं, बल्कि तप, संयम और अहिंसा के जीवंत प्रतीक भी हैं। उनके जीवन की कथा त्याग और आत्मविजय की वह अमर गाथा है, जो युगों-युगों से लोगों को प्रेरणा देती आई है। इस लेख में हम भगवान बाहुबली के जीवनचरित्र, उनके अतुलनीय तप, श्रद्धा और आत्मज्ञान की प्रतीक गोमटेश्वर प्रतिमा (बाहुबली स्तंभ) की विशेषताओं, उसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व, तथा उससे उत्पन्न आध्यात्मिक ऊर्जा का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे।
भगवान बाहुबली कौन थे?

भगवान बाहुबली(Lord Bahubali) , जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) के पुत्र थे और उनके भाई भरत चक्रवर्ती, आगे चलकर एक महान सम्राट बने। ऋषभदेव ने संसार से विरक्त होकर जब वैराग्य धारण किया, तब उन्होंने अपने पुत्रों को अलग-अलग राज्यों का विभाजन कर दिया। भरत को अयोध्या और बाहुबली को पोदनपुर राज्य सौंपा गया। भरत ने चक्रवर्ती सम्राट बनने की इच्छा से सभी भाइयों से अधीनता स्वीकार करवानी चाही, किंतु बाहुबली ने इसका विरोध किया। इसके परिणामस्वरूप दोनों भाइयों के बीच दृष्टि युद्ध, जल युद्ध और मल्ल युद्ध हुआ, जिसमें बाहुबली ने अपने पराक्रम और संयम से विजय प्राप्त की। लेकिन इस विजय के बाद बाहुबली के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने सत्ता का त्याग कर आत्म-साधना का मार्ग चुन लिया। कठोर तपस्या के फलस्वरूप उन्हें केवलज्ञान और अंततः मोक्ष की प्राप्ति हुई, जिससे वे जैन परंपरा में आत्मविजय के प्रतीक बन गए।
भरत और बाहुबली का युद्ध

राजसत्ता को लेकर भरत और बाहुबली के बीच विवाद हुआ। युद्ध को रोकने के लिए एक विशेष “तीन प्रकार की प्रतिस्पर्धा” रखी गई दृष्टि युद्ध, जल युद्ध और मल्ल युद्ध। इन तीनों में बाहुबली ने अपने बड़े भाई भरत को पराजित किया। परंतु, जैसे ही वे भरत को मारने वाले थे, आत्मचिंतन करते हुए उन्हें आत्मबोध हुआ कि यह सत्ता और अहंकार का मार्ग उन्हें आत्मज्ञान से दूर कर रहा है। बाहुबली ने उसी क्षण सबकुछ त्याग दिया और तप में लीन हो गए।
तप और आत्मज्ञान की ओर यात्रा
बाहुबली ने एक वर्ष तक बिना हिले-डुले, एक ही स्थान पर खड़े रहकर कठिन तपस्या की। उनके शरीर पर बेलें और लताएं उग आईं, किन्तु वे अडिग रहे। अंततः उन्होंने कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। उनका यह तप मानव जीवन में संयम, अहिंसा और आत्मनियंत्रण का अद्भुत उदाहरण बन गया। उनका जीवन संदेश देता है कि आत्मशुद्धि और मोक्ष केवल त्याग और आत्मनिरीक्षण से ही संभव है, न कि शक्ति और विजय से।
श्रवणबेलगोला का बाहुबली स्तंभ

स्थान और पहचान
बाहुबली की सबसे प्रसिद्ध मूर्ति कर्नाटक(Karnataka) राज्य के हासन ज़िले के श्रवणबेलगोला(Shravanabelagola) नामक स्थान पर स्थित है। यह जगह जैन तीर्थों में सर्वोच्च मानी जाती है। यहां पर स्थित है ,गोमटेश्वर बाहुबली की विशालकाय मूर्ति, जिसे आमतौर पर “बाहुबली स्तंभ” के रूप में जाना जाता है।
निर्माण और इतिहास
बाहुबली स्तंभ, जिसे गोमटेश्वर प्रतिमा के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर है, जिसका इतिहास लगभग हजार वर्ष पुराना है। यह स्तंभ कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में स्थित है और भगवान बाहुबली की विशाल प्रतिमा का रूप में प्रतिष्ठित है। इस अद्भुत प्रतिमा का निर्माण चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री चंद्रसेन द्वारा 981 ईस्वी में किया गया था, और इसे प्रसिद्ध जैन आचार्य, श्री भीमसेन के आदेश पर स्थापित किया गया। यह प्रतिमा लगभग 57 फीट (17.7 मीटर) ऊंची है और विशेष रूप से अपने आर्द्र, शांत और समर्पित मुद्रा के लिए जानी जाती है।
मूर्ति की विशेषताएँ
ऊँचाई – यह प्रतिमा लगभग 57 फीट (17 मीटर) ऊँची है और इसे एक ही शिला (मोनोलिथ) से तराशा गया है, जो इसे दुनिया की सबसे ऊँची एकाश्म नग्न मानव प्रतिमा बनाती है।
एकाश्म प्रतिमा – पूरी मूर्ति एक ही पत्थर से बनी है, जो भारतीय मूर्तिकला की अद्भुत उपलब्धियों में गिनी जाती है।
आसन और मुद्रा – भगवान बाहुबली कायोत्सर्ग (स्थिर खड़े ध्यान) मुद्रा में दर्शाए गए हैं। यह मुद्रा आत्मत्याग, वैराग्य और ध्यान का प्रतीक है।
मुख भाव – प्रतिमा के चेहरे पर शांति, संयम और आत्मज्ञान की झलक स्पष्ट है। चेहरे की बनावट में हल्की मुस्कान और शांत आंतरिक भाव स्पष्ट दिखते हैं।
लताएं और बेलें – मूर्ति के पैरों और शरीर पर चढ़ती लताएं और बेलें इस बात का प्रतीक हैं कि भगवान बाहुबली ने वर्षों तक तपस्या की, जिससे उनके शरीर पर बेलें उग आईं।
सज्जा – प्रतिमा पूरी तरह नग्न है, जो जैन दिगंबर परंपरा में पूर्ण वैराग्य और सांसारिक वस्तुओं के त्याग का प्रतीक है।
महामस्तकाभिषेक उत्सव

महामस्तकाभिषेक भगवान बाहुबली की श्रद्धा और भक्ति का भव्य पर्व है, जो हर 12 वर्षों में कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में आयोजित होता है। इस ऐतिहासिक उत्सव के दौरान बाहुबली की विशाल प्रतिमा पर दूध, दही, घी, चंदन, केसर, जल और पुष्पों से अभिषेक किया जाता है, जो एक दिव्य और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। यह आयोजन केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक महाकुंभ भी है, जिसमें लाखों श्रद्धालु, पर्यटक और साधु-संत सम्मिलित होते हैं। महामस्तकाभिषेक जैन धर्म के मूल सिद्धांतों अहिंसा, शांति, तप और आत्मसंयम को जनमानस में पुनर्स्थापित करता है और समग्र समाज में नैतिकता, समरसता और आध्यात्मिक चेतना का संदेश फैलाता है।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
तप और त्याग का प्रतीक – बाहुबली की प्रतिमा न केवल स्थापत्य की दृष्टि से महान है, बल्कि यह आत्मसंयम, त्याग और मोक्ष की ओर यात्रा का प्रेरणास्त्रोत है।
अहिंसा का संदेश – जैन धर्म के मूल सिद्धांतों अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह को मूर्ति के माध्यम से मूर्त रूप दिया गया है।
भारत की मूर्तिकला का चमत्कार – बाहुबली स्तंभ भारतीय मूर्तिकला और स्थापत्य की ऊँचाई को दर्शाता है। इसका निर्माण उस युग में हुआ था, जब आधुनिक यंत्र या मशीनें नहीं थीं, जो इसे और भी अद्वितीय बनाता है।
पर्यटन और तीर्थ – यह स्थल केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए नहीं, बल्कि दुनियाभर के पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
अन्य बाहुबली मूर्तियाँ

हालाँकि श्रवणबेलगोला की प्रतिमा सबसे प्रसिद्ध है, लेकिन भारत में अन्य जगहों पर भी भगवान बाहुबली की मूर्तियाँ स्थापित हैं, जैसे:
कर्कल (Karkala) – कर्नाटक में स्थित एक और भव्य बाहुबली प्रतिमा।
वेणूर (Venur) – कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में।
धर्मस्थल – यहां भी एक बड़ी प्रतिमा स्थापित की गई है।
इन सभी प्रतिमाओं में भगवान बाहुबली की तपस्वी मुद्रा को दर्शाया गया है, जो आत्मज्ञान और वैराग्य का प्रतीक है।
बाहुबली स्तंभ केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रेरणा, संयम का प्रतीक, और मानव जीवन के उद्देश्य की दिशा में चलने की प्रेरणा है। यह हमें सिखाता है कि जब तक हम अपने भीतर के अहंकार को नहीं छोड़ते, तब तक आत्मज्ञान की ओर अग्रसर नहीं हो सकते। श्रवणबेलगोला की गोमटेश्वर प्रतिमा न केवल भारतीय वास्तुकला और मूर्तिकला का एक चमत्कारी नमूना है, बल्कि यह दर्शाती है कि भारत की आध्यात्मिक चेतना कितनी गहरी और व्यापक रही है। जो कोई भी इस प्रतिमा को देखता है, वह उसकी शांति, स्थिरता और दिव्यता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। यह केवल देखने का अनुभव नहीं, बल्कि आत्मा को झकझोर देने वाला अनुभव होता है।