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Wat Pho Temple Bangkok: थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक (Bangkok) के हृदय में स्थित, ‘वाट फो’ (Wat Pho) केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय संगम है। यह मंदिर स्वर्णिम बुद्ध प्रतिमाओं, रंगीन मोज़ेकों से सजे स्तूपों और शांत ध्यान कक्षों से युक्त एक ऐसा परिसर है, जहां प्रत्येक ईंट, प्रत्येक नक्काशी, और प्रत्येक घंटियों की ध्वनि सैकड़ों वर्षों से चल रही एक दिव्य यात्रा की गवाही देती है।
जब कोई इस मंदिर के मुख्य द्वार से भीतर प्रवेश करता है, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो समय ठहर गया हो। वातावरण में व्याप्त चंदन की गंध, मंत्रों की मधुर ध्वनि और वहां बैठे श्रद्धालुओं की मौन साधना आत्मा को भीतर तक छू लेती है। ठीक इसी शांति और दिव्यता से प्रेरित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बैंकॉक यात्रा के दौरान ‘वाट फो’ के दर्शन किए- जो भारत और थाईलैंड के बीच प्राचीन बौद्धिक और सांस्कृतिक संबंधों का एक गहरा संकेत है। प्रधानमंत्री की यह यात्रा केवल औपचारिकता नहीं थी, बल्कि यह एक ध्यानमग्न भारतवर्ष के प्रतिनिधि का, बुद्ध की करुणा और उपदेशों से जुड़े स्थल को नमन करने का भावपूर्ण अवसर था। जिस प्रकार गंगा की धाराएं भारत की आध्यात्मिक चेतना को समेटे हुए बहती हैं, वैसे ही ‘वाट फो’ की दिव्य आभा दक्षिण-पूर्व एशिया के बौद्ध हृदय को आलोकित कर वहां के स्थानीय लोगों को शांति और सुकून प्रदान करती हैं।
जब कोई राष्ट्राध्यक्ष किसी धार्मिक स्थल पर जाता है, तो वह केवल एक औपचारिक दौरा नहीं होता, बल्कि वह उस स्थान की आत्मा से जुड़ने का माध्यम बनता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड यात्रा के दौरान बैंकॉक के प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर ‘वाट फो’ का दर्शन भी इसी भावना का प्रतीक था। इस दौरे ने भारत और थाईलैंड के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों को एक बार फिर जीवंत कर दिया।
‘वाट फो’: थाईलैंड की आत्मा में रचा-बसा मंदिर

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
‘वाट फो’ जिसे स्थानीय भाषा में वाट फ्रा चेत्तुपोन विन्मोंगख्लाराम कहा जाता है, थाईलैंड के सबसे प्राचीन और विशाल मंदिरों में से एक है। यह मंदिर ग्रैंड पैलेस के पास स्थित है और इसे ‘थाई बुद्धिज्म का विश्वविद्यालय’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह बौद्ध शिक्षा और थाई पारंपरिक चिकित्सा के अध्ययन का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर को पुनर्निर्मित और विस्तारित करने का श्रेय थाईलैंड के राजा राम I और राम III को जाता है। खास बात यह है कि यह वही स्थल है जहाँ थाईलैंड की पारंपरिक चिकित्सा और ‘थाई मसाज’ को औपचारिक रूप से संरक्षित किया गया।
लीनिंग बुद्ध: निर्वाण की प्रतीक अनोखी मूर्ति

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
मंदिर का सबसे प्रमुख आकर्षण है ‘लीनिंग बुद्ध’ की मूर्ति (Reclining Buddha)।
यह मूर्ति 46 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊँची है।
इसे सोने की परत से ढका गया है और यह भगवान बुद्ध की उस अवस्था को दर्शाती है जब वे महापरिनिर्वाण को प्राप्त कर रहे थे। बुद्ध के पैरों के तलवे 3 मीटर चौड़े हैं, जिन पर 108 शुभ चिन्ह बने हैं जो उनके जीवन और सिद्धियों को दर्शाते हैं। यह मूर्ति न केवल स्थापत्य कला की उत्कृष्ट मिसाल है, बल्कि यह देख कर एक आध्यात्मिक शांति और गूढ़ता का अनुभव होता है।
मंदिर परिसर की अन्य विशेषताएं

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
1. 1000 से अधिक बुद्ध मूर्तियां: वाट फो में थाईलैंड के विभिन्न हिस्सों से लाकर रखी गईं सैकड़ों बुद्ध मूर्तियां हैं, जो इस स्थान को एक बौद्धिक संग्रहालय बनाती हैं।
2. चार विहार और स्तूप: इन विहारों में बुद्ध के विभिन्न रूपों की पूजा होती है। स्तूपों पर थाई वास्तुकला की बारीक नक्काशी और रंगीन टाइलें अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती हैं।
3. दीवार चित्रकला: रामायण पर आधारित ‘रामकियेन’ की गाथा को भित्तिचित्रों के माध्यम से चित्रित किया गया है, जो भारत-थाई सांस्कृतिक साम्यता को दर्शाती है।
4. 108 कटोरों में सिक्के डालना: भक्त 108 पीतल के कटोरों में सिक्के डालते हैं, यह बौद्ध धर्म में पुण्य संचय और शांति का प्रतीक माना जाता है।
थाई पारंपरिक चिकित्सा और थाई मसाज का केंद्र
वाट फो को थाईलैंड का पहला पब्लिक यूनिवर्सिटी भी माना जाता है। यहाँ पारंपरिक थाई चिकित्सा, हर्बल थेरेपी और मसाज की शिक्षा दी जाती है। आज भी लोग यहाँ थाई मसाज की बारीकियां सीखने आते हैं।
पौराणिक दृष्टिकोण: ज्ञान और मुक्ति का मार्ग
थाई बौद्ध मान्यता के अनुसार, वाट फो वह स्थल है जहाँ भगवान बुद्ध के ज्ञान का संकलन किया गया। यह मंदिर आत्मा की शुद्धि, ध्यान और निर्वाण की प्राप्ति का प्रतीक है। माना जाता है कि यहाँ ध्यान करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा: सांस्कृतिक कूटनीति का एक उदाहरण

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा ने वैश्विक मंच पर यह संदेश दिया कि भारत केवल एक राजनीतिक शक्ति ही नहीं, बल्कि एक धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का संवाहक भी है। यह मंदिर यात्रा भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’, बौद्ध परंपरा को पुनर्जीवित करने की नीति और थाईलैंड से पुराने संबंधों को और मजबूत करने का प्रतीक है।’ ‘वाट फो’ केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि बौद्ध दर्शन, थाई परंपरा और भारत से जुड़े आध्यात्मिक रिश्तों की जीवित विरासत है। प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा न केवल भारतीयों को गौरवान्वित करती है, बल्कि हमें यह याद दिलाती है कि एशियाई देशों की आत्मा में कहीं न कहीं ध्यान, शांति और करुणा की साझा संस्कृति गहराई से जुड़ी है।