
Uttarakhand Bansi Narayan Temple History
Uttarakhand Bansi Narayan Temple History: देवभूमि उत्तराखंड, जिसे ‘भगवानों की भूमि’ भी कहा जाता है, भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक सुंदर और आध्यात्मिक राज्य है। यह राज्य हिमालय की गोद में बसा हुआ है और अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता, घने जंगलों, ऊंचे पहाड़ों और पवित्र नदियों जैसे गंगा और यमुना के लिए प्रसिद्ध है। उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे धार्मिक स्थल हैं, जो पूरे विश्व से श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। लेकिन क्या आप जानते है, उत्तराखंड के चमोली जिले में एक ऐसा मंदिर स्थित है, जिसके कपाट सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही श्रद्धालुओं के लिए खुलते हैं।
चमोली जिले में कई मंदिर अपनी खास मान्यताओं और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं, जो साल भर श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं। लेकिन इन्हीं में से एक ऐसा मंदिर भी है, जहां सिर्फ रक्षाबंधन के दिन विशेष पूजा आयोजित की जाती है। वंशीनारायण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित एक पवित्र स्थल है, जो सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है । इस मंदिर तक पहुंचने का मार्ग काफी चुनौतीपूर्ण है और यहां जाने के लिए उर्गम घाटी की ओर रुख करना पड़ता है। भगवान विष्णु के साथ ही इस मंदिर में भगवान शिव, गणेश जी और वन देवी की मूर्तियां भी स्थापित हैं, जो इसे और अधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व प्रदान करती हैं।
क्या है मान्यता
ऐसा माना जाता है कि देवभूमि की उर्गम घाटी के सुदूर बुग्याल क्षेत्र में स्थित वंशीनारायण मंदिर के द्वार सालभर बंद रहते हैं और केवल रक्षाबंधन के अवसर पर ही खोले जाते हैं। इस खास दिन पर स्थानीय लोग मंदिर की सफाई करते हैं और वहां पूजा-अर्चना करते हैं। यह भी कहा जाता है कि मंदिर में ही राखी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन आसपास के गांवों की महिलाएं भगवान नारायण को रक्षासूत्र अर्पित करती हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है।

वंशीनारायण मंदिर में रक्षाबंधन का पर्व बड़े उत्साह और परंपरा के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर किमाणा, डुमक, कलगोठ, जखोला, पल्ला और उर्गम घाटी की महिलाएं भगवान विष्णु को राखी बांधती हैं, जबकि ग्रामीण पुरुष उन्हें राखी अर्पित करते हैं। इसके बाद सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी शामिल होते हैं। यहां पूजा का कार्य कलगोठ गांव के जाख देवता के पुजारी द्वारा संपन्न किया जाता है।

वंशीनारायण मंदिर, जो समुद्र तल से लगभग 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, उर्गम घाटी के सुरम्य बुग्यालों के बीच बना हुआ है। माना जाता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में राजा यशोधवल के शासनकाल में हुआ था। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, और मंदिर में भगवान नारायण की चतुर्भुज मूर्ति है।और यहां उनकी आराधना श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है।
मान्यताओं के अनुसार, देवताओ के आग्रह पर भगवान विष्णु ने राजा बलि के अभिमान को समाप्त करने के लिए वामन अवतार लिया था ।भगवान विष्णु राजा बलि घमंड चूर करते है ।जिसके बाद राजा बलि पाताल लोक जाकर कठोर तपस्या करता है और भगवान विष्णु से अपना द्वारपाल बनने का आशीर्वाद मांगता है ।प्रसन्न होकर भगवान विष्णु बलि को वचन देते हैं और पाताल लोक में राजा बलि के द्वारपाल बन जाते हैं। तो वहीं, माता लक्ष्मी भगवान नारायण को पाताल लोक से वापस लाना चाहती है।इसपर नारद मुनि ने उन्हें राजा बलि के हातो पर रक्षासूत्र बांधकर भगवान विष्णु को बलि के वचन से मुक्त करने सुझाव देते है। तब पति को बलि के वचन से मुक्त करने के लिए माता लक्ष्मी पाताल लोक जाकर राजा बलि के हाथ पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और भगवान विष्णु को द्वारपाल से मुक्त करने का वचन मांगती हैं।तब राजा बलि उन्हें द्वारपाल से मुक्त कर देते हैं।

माना जाता है कि माता लक्ष्मी के दुर्गम घाटी में ठहरने के बाद से यहां रक्षाबंधन का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई। साथ ही, यह भी विश्वास है कि भगवान विष्णु के वामन अवतार को इसी स्थान पर मुक्ति प्राप्त हुई थी। मंदिर के समीप लोग प्रसाद बनाने की तैयारी करते हैं, जिसमें हर घर से मक्खन एकत्रित किया जाता है। प्रसाद बन जाने के बाद उसे भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है।