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    Deccan Traps Mahabaleshwar: 6.6 करोड़ साल पुराना महाबलेश्वर का ज्वालामुखीय अजूबा

    Janta YojanaBy Janta YojanaSeptember 17, 2025No Comments6 Mins Read
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    Deccan Traps Mahabaleshwar

    Deccan Traps Mahabaleshwar

    Deccan Traps Mahabaleshwar: महाबलेश्वर के डेक्कन ट्रैप्स (Deccan Traps) सिर्फ चट्टानों का ढेर नहीं हैं बल्कि ये धरती के लाखों-करोड़ों साल पुराने इतिहास को अपने अंदर छिपाए हुए हैं। हाल ही में इन्हें यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है, जिससे इनकी पहचान और भी बढ़ गई है। सह्याद्रि की पहाड़ियों के बीच बसे यह इलाके अपनी ठंडी हवा, खूबसूरत नज़ारों और खास तरह की ज्वालामुखीय चट्टानों के लिए जाने जाते हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि करीब 6.6 करोड़ साल पहले यहाँ इतने बड़े ज्वालामुखी फटे थे जिनका असर पूरी धरती पर पड़ा। यही बदलाव डायनासोर के खत्म होने की वजह भी बने।

    आइये जानते है डेक्कन ट्रैप्स के इतिहास और महत्त्व को ।

    डेक्कन ट्रैप्स क्या हैं?

    डेक्कन ट्रैप्स भारत के पश्चिमी भाग में फैले ज्वालामुखीय चट्टानों के बड़े क्षेत्र को कहा जाता है।डेक्कन ट्रैप्स का नाम स्वीडिश भाषा के शब्द ‘Trappa’ से लिया गया है, जिसका मतलब होता है सीढ़ी। यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यहाँ की ज़मीन परत दर परत सीढ़ियों जैसी दिखती है। यह परतें दरअसल लाखों साल पहले निकले ज्वालामुखी लावे से बनी थीं। लगभग 6.6 करोड़ साल पहले क्रेटेशियस काल के अंत में यह बड़ा लावा प्रवाह हुआ था। शुरुआत में डेक्कन ट्रैप्स का क्षेत्र करीब 15 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला था, लेकिन आज इसका आकार घटकर लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया है। यह भूभाग मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात के हिस्सों में फैला हुआ है।

    कितने पुराने हैं ये चट्टानें?

    यह चट्टानें लगभग 6.6 करोड़ साल पहले ज्वालामुखी से निकले लावे के ठंडा होकर जमने से बनी थीं। उस समय इतनी बड़ी मात्रा में लावा, गैस और राख निकली थी कि पूरी धरती की जलवायु बदल गई। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे तापमान कम हुआ, अम्लीय वर्षा हुई और कई जीव-जंतु नष्ट हो गए। माना जाता है कि डेक्कन ट्रैप्स के विस्फोटों ने डायनासोर के विलुप्त होने में भी भूमिका निभाई। हालांकि, मुख्य कारण मेक्सिको में हुआ एक विशाल एस्ट्रॉयड टकराव माना जाता है। कुछ शोध बताते हैं कि दोनों घटनाओं ने मिलकर इस बड़े बदलाव को जन्म दिया। महाबलेश्वर की चट्टानों में आज भी इन घटनाओं के सबूत देखे जा सकते हैं।

    महाबलेश्वर में डेक्कन ट्रैप्स की विशेषता

    महाबलेश्वर की चट्टानें ज्यादातर बेसाल्ट से बनी हैं, जो काले रंग की, बहुत मजबूत और कठोर होती है। इसमें खास तरह के खनिज पाए जाते हैं, जैसे पाइरोक्सिन और ओलिविन। यही कारण है कि बेसाल्ट आज भी इमारतों और निर्माण कार्यों में काम आता है। महाबलेश्वर की घाटियाँ और पठार भी इन्हीं चट्टानों से बने हैं। यहाँ डेक्कन ट्रैप्स की मोटाई 2000 मीटर से ज्यादा है, जो वैज्ञानिकों के लिए उस समय की ज्वालामुखीय घटनाओं को समझने का एक बड़ा सबूत है।

    भूगर्भीय निर्माण की प्रक्रिया

    निर्माण लगभग 6.6 करोड़ साल पहले धरती के अंदर का मैग्मा बार-बार सतह पर लावा बनकर निकला। यह प्रक्रिया एक ही बार में नहीं, बल्कि कई चरणों में हुई। हर बार लावा बहकर ठंडा होता और एक नई परत बना देता। यही वजह है कि यहाँ की चट्टानें सीढ़ियों जैसी परतदार दिखाई देती हैं। महाबलेश्वर में इन परतों की मोटाई कहीं 50 मीटर तो कहीं 3000 मीटर तक पाई गई है। वैज्ञानिकों ने यहाँ 50 से भी ज्यादा लावा प्रवाह की अलग-अलग परतें खोजी हैं जो इस जगह को बहुत खास बनाती हैं।

    डेक्कन ट्रैप्स और डायनासोरों का विलुप्त होना

    डेक्कन ट्रैप्स के ज्वालामुखी फटने के समय बहुत सारी गैसें निकली थीं, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और सल्फर डाइऑक्साइड (SO2)। इन गैसों ने धरती के वातावरण को काफी बदल दिया। कार्बन डाइऑक्साइड से ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ा और सल्फर डाइऑक्साइड की वजह से अम्लीय वर्षा (एसिड रेन) हुई। इन बदलावों का असर जीव-जंतुओं पर भी पड़ा और कई प्रजातियाँ खत्म हो गईं। वैज्ञानिकों का मानना है कि डेक्कन ट्रैप्स की इन घटनाओं ने डायनासोरों के विलुप्त होने में भी बड़ी भूमिका निभाई। हालाँकि, इसके साथ एस्ट्रॉइड टकराव और जलवायु परिवर्तन भी इस प्रक्रिया के कारण माने जाते हैं।

    महाबलेश्वर में डेक्कन ट्रैप्स का अध्ययन

    महाबलेश्वर का इलाका डेक्कन ट्रैप्स को समझने के लिए बहुत अहम जगह माना जाता है। यहाँ की चट्टानों की परतों में हुए लावा प्रवाह का वैज्ञानिक Chrono stratigraphy तकनीक से अध्ययन करते हैं, जिससे यह पता चलता है कि कौन-सी परत कब बनी थी। इन चट्टानों में मौजूद खनिज और रासायनिक तत्व हमें उस समय की जलवायु और वातावरण के बारे में जानकारी देते हैं। इसके अलावा, डेक्कन ट्रैप्स का अध्ययन प्लेट टेक्टॉनिक्स और मैग्मा की गतिविधियों को समझने में भी मदद करता है। इस वजह से महाबलेश्वर का क्षेत्र भूगर्भीय शोध के लिए बहुत खास है।

    डेक्कन ट्रैप्स का पर्यावरण और कृषि पर प्रभाव

    महाबलेश्वर के डेक्कन ट्रैप्स की चट्टानों से बनी मिट्टी को काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी कहा जाता है। यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है और इसमें कपास, गन्ना और सब्जियाँ आसानी से उगाई जाती हैं। इसी मिट्टी और ठंडी जलवायु के कारण यहाँ स्ट्रॉबेरी की खेती भी सफल है। इस मिट्टी की खासियत यह है कि यह पानी को लंबे समय तक रोककर रखती है जिससे खेतों में नमी बनी रहती है और जल स्रोत सुरक्षित रहते हैं। महाबलेश्वर का पठारी इलाका और यहाँ का मौसम खेती के लिए बिल्कुल अनुकूल है, जो स्थानीय लोगों और पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी है।

    पर्यटन और डेक्कन ट्रैप्स

    महाबलेश्वर के डेक्कन ट्रैप्स सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी खास आकर्षण हैं। यहाँ का प्रसिद्ध प्रतापगढ़ किला डेक्कन ट्रैप्स की चट्टानों पर बना है और ऐतिहासिक व प्राकृतिक सौंदर्य का संगम दिखाता है। इसके अलावा एलिफैंट हेड पॉइंट, केट्स पॉइंट और विल्सन पॉइंट जैसे जगहों से सीढ़ीनुमा चट्टानों का सुंदर नज़ारा देखा जा सकता है। बरसात के समय यहाँ के झरने और हरे-भरे दृश्य इस इलाके को और भी मनमोहक बना देते हैं। इसलिए महाबलेश्वर प्रकृति और इतिहास, दोनों का अनुभव करने के लिए एक बेहतरीन जगह है।

    वैश्विक महत्व

    महाबलेश्वर के डेक्कन ट्रैप्स का महत्व सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि इन्हें दुनिया के सबसे बड़े और खास ज्वालामुखीय क्षेत्रों (Large Igneous Provinces) में गिना जाता है। यहाँ की लावा परतों की मोटाई और विस्तार बहुत दुर्लभ है, इसी कारण दुनिया भर के वैज्ञानिक यहाँ अध्ययन करने आते हैं। जब इनकी तुलना साइबेरियन ट्रैप्स से की जाती है, तो डेक्कन ट्रैप्स आकार और संरचना में और भी ज्यादा जटिल और बड़े दिखते हैं। महाबलेश्वर के डेक्कन ट्रैप्स का अध्ययन करके वैज्ञानिक धरती की रासायनिक संरचना, पुराने समय का वातावरण और भूवैज्ञानिक इतिहास समझ पाते हैं। यही वजह है कि इनका वैश्विक महत्व बहुत बड़ा है।

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