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    Diwali 2025:15000 किलो सोने से बना है माता लक्ष्मी का यह मंदिर – जानिए विशेषताएं

    Janta YojanaBy Janta YojanaOctober 17, 2025No Comments4 Mins Read
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    Pic Credit – Social Media

    Sripuram Mahalaxmi Temple facts: 20 अक्टूबर को पूरे देश में दिवाली का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन लोग धन और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी और कुबेर भगवान की पूजा करते हैं। दक्षिण भारत के वेल्लोर जिले के मलाईकोड़ी पहाड़ों में स्थित श्रीपुरम महालक्ष्मी मंदिर इस अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह मंदिर अपने स्वर्ण भव्यता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध है और इसे ‘स्वर्ण मंदिर’ या ‘श्री लक्ष्मी नारायणी गोल्डन टेम्पल’ भी कहा जाता है। यहाँ लोग देवी महालक्ष्मी नारायणी की उपासना के लिए दूर-दूर से आते हैं। आइये जानते है इस मंदिर के बारे में।

    स्थापना और इतिहास

    श्रीपुरम महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण वर्ष 2001 में शुरू हुआ और 2007 में यह पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। इसका भव्य महाकुंभाभिषेक 24 अगस्त 2007 को आयोजित किया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस मंदिर का निर्माण वेल्लोर की धार्मिक संस्था श्री नारायणी पीठम् द्वारा कराया गया, जिसका नेतृत्व पूज्य श्री शक्ति अम्मा (नारायणी अम्मा) करती हैं। श्री शक्ति अम्मा एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु हैं और उन्होंने इस मंदिर को दुनिया में धन की देवी महालक्ष्मी के आशीर्वाद और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक बताया है।

    भव्य निर्माण और स्थापत्य शैली

    श्रीपुरम महालक्ष्मी मंदिर 100 एकड़ भूमि में फैला हुआ है और इसका पूरा निर्माण वेदिक स्थापत्य कला पर आधारित है। मंदिर की दीवारों, शिखर (गोपुरम) और गर्भगृह को सजाने में लगभग 1500 किलोग्राम शुद्ध सोना इस्तेमाल हुआ है, जो अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की तुलना में दोगुना माना जाता है। इसका स्वर्ण आवरण 10 से 15 परतों में सोने की पत्तियों से तैयार किया गया है, जिन्हें तांबे पर चढ़ाकर हाथ से जड़ा गया। इस काम में सैकड़ों कुशल शिल्पियों ने सात वर्षों की मेहनत की। मंदिर का विमानम (गुम्बद) और अर्ध मंडप भी सुनहरे डिजाइनों से सुसज्जित हैं। गर्भगृह में देवी स्वर्ण महालक्ष्मी की 70 किलोग्राम सोने की मूर्ति ध्यान मुद्रा में प्रतिष्ठित है। यहाँ श्रद्धालु अभिषेक भी कर सकते हैं, जो दक्षिण भारत के मंदिरों में बहुत ही दुर्लभ अवसर होता है।

    श्रीपुरम का आध्यात्मिक विन्यास

    श्रीपुरम महालक्ष्मी मंदिर परिसर का सबसे अद्भुत भाग इसका तारा-आकृति मार्ग है, जो 1.8 किलोमीटर लंबा है। यह मार्ग श्री चक्र की ज्यामिति पर आधारित है और आध्यात्मिकता, ब्रह्मांडीय संतुलन और मानव जीवन के चक्र का प्रतीक माना जाता है। भक्त जब इस मार्ग पर चलते हैं, तो उन्हें पट्टिकाओं पर वेदवाक्य, धार्मिक शिक्षाएँ और नैतिक संदेश पढ़ने को मिलते हैं। यह यात्रा खासतौर पर मन को शुद्ध और आत्मा को एकाग्र बनाने के लिए डिज़ाइन की गई है।

    प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरणीय संतुलन

    श्रीपुरम महालक्ष्मी मंदिर हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता से घिरे क्षेत्र में स्थित है, जहाँ चारों ओर छोटी-छोटी पहाड़ियाँ और हरे-भरे उपवन हैं। मंदिर परिसर में लगभग 20,000 प्रकार के पौधे लगे हैं, जो पर्यावरण संरक्षण का उदाहरण पेश करते हैं। यहाँ एक पवित्र सरोवर ‘सर्वतीर्थम्’ भी है जिसमें भारत की सभी प्रमुख नदियों का पवित्र जल एकत्र किया गया है। यह सरोवर पूरे परिसर को एक छोटे भारत जैसा आध्यात्मिक रूप देता है।

    धार्मिक महत्व

    देवी महालक्ष्मी नारायणी को संपन्नता, करुणा और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक माना जाता है और इसी कारण श्रीपुरम महालक्ष्मी मंदिर को ‘धन-समृद्धि का तीर्थ’ कहा जाता है। यहाँ हर दिन 1008 दीपों की भव्य आरती होती है, जिसका सूर्यास्त के समय दृश्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है। शक्ति अम्मा के अनुसार, यह मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं है बल्कि यह नैतिकता, दया और मानवता जैसे आध्यात्मिक मूल्यों को फैलाने का भी केंद्र है।

    सुविधाएँ और दर्शन व्यवस्था

    श्रीपुरम महालक्ष्मी मंदिर में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए आधुनिक व्यवस्थाएँ मौजूद हैं, जैसे भोजनालय, अतिथि गृह, प्रसाद वितरण केंद्र, चिकित्सा सहायता, क्लोक रूम, स्मृति वस्तुएँ खरीदने का केंद्र और विश्राम गृह। इसके अलावा यहाँ हेलिपैड और अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों के लिए विशेष सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। मंदिर सुबह 4 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है और प्रवेश पूरी तरह निःशुल्क है।

    पहुंच मार्ग

    श्रीपुरम मंदिर वेल्लोर शहर से लगभग 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चेन्नई (146 किमी), तिरुपति (120 किमी) और बैंगलोर (212 किमी) से यहाँ सड़क मार्ग द्वारा पहुँचना अत्यंत सुगम है। वेल्लोर रेलवे स्टेशन तथा बस स्टैंड से मंदिर के लिए स्थानीय टैक्सी व ऑटो रिक्शा आसानी से उपलब्ध रहते हैं ।

    दिव्यता और दर्शन का अनुभव

    रात्रि में जब मंदिर की स्वर्ण आभा बिजली की व्यवस्था से जगमगाती है तो यह दृश्य किसी स्वप्नलोक की छवि बन जाता है। चारों ओर गूंजते वैदिक मंत्र, दीपों की पंक्तियाँ और हवा में घुली चंदन की सुगंध एक अलौकिक वातावरण बनाते हैं। अनेक श्रद्धालु यहाँ ध्यान, साधना और आत्मिक शांति की खोज में आते हैं।

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