History of Khonoma Village
History of Khonoma Village: वर्तमान समय में पर्यावरण का तेजी से गिरता ग्राफ पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। ऐसे में हमेशा बर्फ से ढके रहने वाले पहाड़ी इलाके भी प्रदूषण की समस्या से अछूते नहीं बचे हैं। ऐसे हालातों के बीच भारत में एक ऐसी जगह भी है जहां की ऑक्सिजन से भरपूर हवा पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त है। जहां प्रकृति का संरक्षण ही उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी समझा जाता है। जहां हर तरफ हरियाली ही हरियाली है । वहां के लोग प्रदूषण जैसी चीज से वाकिफ ही नहीं है। यह जगह इस कदर स्वच्छ है कि पूरे एशिया का ’पहला ग्रीन विलेज’ के नाम से प्रसिद्ध है। यही नहीं, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ स्वंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने में भी इस जगह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। हम यहां बात कर रहें है खोनोमा गांव की।
यह गांव नागालैंड की राजधानी कोहिमा से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है। खोनोमा को अक्सर ’योद्धा गांव’ के रूप में वर्णित किया जाता है। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान अपने उग्र प्रतिरोध के लिए जाना जाता है। खूबसूरत प्राकृतिक छटाओं और कई रोमांचक गतिविधियों के कारण यह वर्ष भर पर्यटकों की शरण स्थली बना रहता है। इस गांव में बहुत सारा इतिहास लिखा गया है। इसके अलावा, खोनोमा वन्यजीव संरक्षण में अपनी पहल के लिए भी जाना जाता है। नागालैंड का एक छोटा-सा गांव है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है। इस अद्भुत गांव को लेकर कहा जाता है कि इसका इतिहास लगभग 700 साल से प्राचीन है।
ये है खोनोमा का इतिहास (Khonoma Village Ka Itihas)
अपनी प्राकृतिक खूबियों और बहादुरी के लिए जाना जाने वाला ग्रीन विलेज खोनोमा से जुड़े इतिहास की बात करें तो इस गांव के लोगों ने अंग्रेजों को कई बार अपनी बहादुरी से खदेड़ने का काम किया। इसी कड़ी में 13 अक्टूबर, 1879 को नागा हिल्स के एक राजनीतिक अधिकारी गाइबॉन हेनरी दमंत ने 87 ब्रिटिश सैनिकों की एक टुकड़ी को खोनोमा में ले जाकर वहां के निवासियों के ऊपर जबरन कर और बंधुआ मजदूरी लागू की। जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश सेना को वहां से भगाने के लिए खोनोमा के आदिवासी योद्धाओं ने घात लगाकर अंग्रेजों पर हमला किया, जिसमें दमंत के साथ 27 ब्रिटिश मारे गए।
खोनोमा लोगों ने ब्रिटिश घुसपैठियों के साथ कई लड़ाइयां लड़ीं। अंततः खोनोमा की इस प्रसिद्ध लड़ाई के उपरांत उनका प्रतिरोध समाप्त हो गया। उन्होंने अंग्रेजों के साथ शांति स्थापित कर ली।
अब इस खूबसूरत गांव में लगभग 600 घर मौजूद हैं। यहां लगभग 3 हजार से अधिक लोग रहते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस खूबसूरत गांव में विशेष प्रकार की अंगमी जनजाति भी रहती है।
विलुप्त होती प्रजातियों के नाते शिकार पर है पूर्ण प्रतिबंध
खोनोमा गांव में जंगलों के बीच रहने वाले जीव जंतुओं के शिकार पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। उसके पीछे कई बड़े कारण हैं। असल में 700 साल पुराने इस गांव के लोग अपने भोजन की व्यवस्था के लिए पहले जानवरों का शिकार किया करते थे।लेकिन 1998 से लेकर आज तक इस गांव में एक भी जानवर मारा नहीं गया है।
खोनोमा के यहां पर शिकार करने के लिए आने वाले लोगों और अपने ही गांव के निवासियों पर शिकार करने के लिए इसलिए रोक लगाई क्योंकि शिकार की वजह से कई पशु-पक्षी धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए थे। यह बात जब खोनामा गांव वालों को समझ में आई तो उन्होंने उन जीवों को संरक्षित करने के लिए पूर्ण रूप से शिकार प्रतिबंधित कर दिया।
इस तरह से पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है यह गांव
खोनोमा गांव की ऑक्सिजन और पक्षियों के खूबसूरत कलरव से भरपूर हरियाली, पहाड़ों के मनोरम दृश्य और स्थानीय जनजातीय की परंपरा व
संस्कृति पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बाध्य करती है। इस गांव को एशिया के पहले ग्रीन विलेज का खिताब ऐसे ही नहीं मिल गया है बल्कि यहां कई वर्षों से पेड़ काटने को बहुत बड़ा जुर्म माना है। यहां की निवासी ‘अंगमी जनजाति’ पेड़ और पौधे को बिल्कुम भी नहीं काटते बल्कि उनकी सुरक्षा करते हैं।
अंगमी जनजाति ने 90 के दशक से गांव में मौजूद जंगलों को सुरक्षित रखने का काम शुरू किया था, जो आज तक कायम है। खोनामा गांव के लोग अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए पूरी तरह कटिबद्ध हैं। यही वजह है कि उस जनजाति ने खुद को संरक्षित रखने के लिए नियम बनाए। इस गांव में अगर किसी को लकड़ी की आवश्यकता होती है, तो वे पूरा पेड़ काटने की जगह उसकी सिर्फ कुछ टहनियों को काट कर उन्हें इस्तेमाल में लाते है।
झूम खेती कर उगाते हैं अन्न
कोहिमा में पेट भरने के लिए झूम खेती की जाती हैं । झूम खेती के अन्तर्गत किसी क्षेत्र विशेष की वनस्पति को जलाकर राख कर दी जाती है, जिससे वहाँ की भूमि की उर्वरता बढ़ जाती है तथा आदिवासी दो-तीन वर्षों तक अच्छी फसल प्राप्त कर लेते हैं।
उर्वरता कम होने पर उस स्थान को छोड़ देते हैं तथा यही विधि अन्य स्थान पर फिर से अपनाई जाती है।अंगामी लोग सीढ़ीनुमा गीले चावल की खेती के लिए जाने जाते हैं। इस श्रम-गहन खेती पद्धति के कारण, भूमि को सबसे मूल्यवान माना जाता है।
घूमने लायक स्थल
खोनोमा गांव जिस तरह खूबसूरती के लिए लोकप्रिय है ठीक उसी तरह कुछ बेहतरीन और मनमोहक जगहों के लिए भी फेमस है। खोनोमा गांव में मौजूद कोहिमा किला और मोरंग जैसी अन्य कई बेहतरीन जगहों को देखने के लिए पर्यटक उत्साहित रहते हैं।
ट्रैगोपैन अभयारण्य
खोनोमा प्रकृति संरक्षण और ट्रैगोपैन अभयारण्य स्थल पर आप कई ऐसे दुर्लभ पशु पंछियों को देख सकते हैं, जो विलुप्त के कगार पर हैं।
जिसमें ब्लाइथ्स ट्रैगोपन जैसी पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियों को देखा जा सकता है। यहां आप विभिन्न प्रकार के पक्षियों, तितलियों और अन्य वन्यजीवों को देख सकते हैं।
खोनोमा किला
जब अंग्रेजों और अंगामी आदिवासियों के बीच युद्ध चल रहा था। तब अंग्रेजों ने यहाँ खोनोमा किला बनाया। ये किला अंग्रेजों के सबसे मजबूत किलों में से एक था।
1850 से 1879 के बीच हुई उस जंग का गवाह है यह किला। अगर आपको इतिहास में थोड़ी-सी भी दिलचस्पी हो तो इस किले को जरूर देखना चाहिए। यह किला बेहद ऊंचाई पर स्थित है, जिससे पूरे क्षेत्र का शानदार दृश्य देखा जा सकता है।
जापफू चोटी
पर्यटकों ने बीच जापफू चोटी खोनोमा में हाइकिंग के लिए लोकप्रिय मानी जाती है।
यह चोटी करीब 3,048 मीटर ऊंची है और यहां से प्रकृति का अनोखा नज़ारा दिखाई देता है।
यहां का पारंपरिक भोजन
यहाँ हर आदिवासी जनजाति का अपना खान-पान और अपना तरीका है। लाल चावल और पत्ता गोभी यहाँ का मुख्य व्यंजन है।
खोनोमा गांव में अंगामी जनजाति के लोगों की पारंपरिक थाली में एक मीट की डिश, एक सब्जी और साथ में चावल मिलते हैं।
ये हैं यहां की मुख्य वस्तुएं
खोनोमा का स्थानीय बाजार पर्यटकों को स्थानीय हस्तशिल्प, कपड़े और अन्य वस्त्र खरीदने का अवसर देता है।यहां आप हाथ से बने बांस के उत्पाद, पारंपरिक नागा कपड़े और आभूषण खरीद सकते हैं, जो आपके अनुभव को यादगार बनाएंगे।
हर जगह पर कुछ स्थानीय चीज फेमस होती ही है। नागालैंड की अर्थव्यवस्था में कपड़ा उद्योग का बड़ा योगदान है। खोनोमा के अंगामी शॉल दुनिया भर में बहुत पसंद किए जाते हैं। अगर आप कभी ग्रीन विलेज जाएं तो अंगामी शॉल को लेना न भूलें।
अंगामी जनजाति का परंपराएं
खोनोमा गांव की जनजाति अंगामी की परंपराएं और संस्कृति आम जनजीवन से बहुत अलग होती हैं। पशुपालन भी इनका एक मुख्य व्यवसाय बन गया है। वे बेंत और बांस की टोकरी बनाने की अपनी परंपरा के लिए भी जाने जाते हैं।
अंगामी लोग ’तेन्यीदी’ भाषा बोलते हैं, जो तिब्बती-बर्मी मूल की एक भाषा है, जिसे अधिकतर रोमन लिपि का उपयोग करके लिखा जाता है।
अंगामी लोगों की संस्कृति को परिभाषित कर सकता है, वह है-‘ईमानदारी’ वहीं तेरहूमिया आत्मा उनके कुल देवता के साथ-साथ उनका भगवान भी है। अंगामी जनजाति के लोग काले लोहे और मोतियों और छोटे मुखौटों जैसे आभूषण पहनते हैं।
इस जनजाति के लोग दस दिनों तक चलने वाला सेक्रेनी त्योहार मनाते हैं एवं हॉर्नबिल फ़ेस्टिवल में 15 टन का विशाल पत्थर खींचने जैसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। ये जनजाति पितृसत्तात्मक समाज का पालन करती है। अंगामी जनजाति के लोग कट्टरता से अपनी पारंपरिक मान्यताओं को मानते हैं। वे अपने मेहमानों का स्वागत बड़ी ही गर्मजोशी से करते हैं।
टूरिज्म पर निर्भर है ये गांव
123 वर्ग किमी. में फैले इस गाँव में बहुत कुछ ऐसा है जो इसे खास बनाता है। सुंदर नजारे और हरियाली से भरा ये गाँव पूरी तरह से टूरिज्म पर निर्भर है। यहाँ का पर्यटन इकोटूरिज्म की राह पर बखूबी चल रहा है। इसमें प्रकृति को नुकसान करने से बचाया जाता है।
यहाँ आप जाएंगे तो आपको ठहरने के लिए बड़े-बड़े होटल शायद न मिलें। लेकिन एक आरामदायक होमस्टे में आपको सारी सुविधाएँ मिल जाएँगी। इसमें एक खास बात यह है कि पूरे गाँव के होमस्टे से जितना पैसा कमाया जाता है। उसे सभी के बीच बराबर-बराबर बाँट दिया जाता है। इस प्रकार, खोनोमा अपने प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक धरोहर और एडवेंचर गतिविधियों द्वारा पर्यटकों के लिए आकर्षण केंद्र बना हुआ है।
इस तरह पहुंचे
खोनोमा गांव की यात्रा करना बेहद आसान है। नागालैंड की राजधानी कोहिमा पहुंचकर लोकल टैक्सी या कैब लेकर खोनोमा गांव पहुंच सकते हैं। सबसे पास में दीमापुर रेलवे स्टेशन है। रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी लेकर इस गांव में पहुंच सकते हैं।नागालैंड में आने के लिए आपको आई.एल.पी. यानी इनर लाइन परमिट की आवश्यकता होती है। यह परमिट आप नई दिल्ली, गुवाहाटी, कोलकाता और कोहिमा में ले सकते हैं।