History Of Kumbh Mela 2025: स्नान, दान, तप और अनगिनत संस्कारों को अपने भीतर समेटे भारत का सबसे विशाल धार्मिक समागम है कुंभ मेला, जहां गुफाओं और जंगलों में एकांत जीवन व्यतीत करने वाले तपस्वी और नागा संन्यासी से लेकर लाखों श्रद्धालु पवित्र त्रिवेणी नदियों में स्नान करने और धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए मीलों दूर की यात्रा कर यहां पहुंचते हैं। कुंभ स्नान के दौरान अनगिनत ऐसे संस्कार निभाने की परंपरा है, जिसे वहां मौजूद एक खास तरह का जाति समुदाय द्वारा ही संपन्न किया जाता है। जिन्हें हम पंडों के नाम से संबोधित करते हैं। जबकि प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में पंडों को ‘तीर्थराज’ और ‘प्रयागवाल’ के नाम से जाना जाता है। गंगाघाट पर कुंभ स्नान के दौरान कई तरह के संस्कारों को पूर्ण करने में इनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। वे श्रद्धालुओं को विधिवत धार्मिक अनुष्ठानों, पूजन आदि संस्कारों को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करते हैं, जिससे श्रद्धालु परम्परागत तरीके से पूजा पाठ कर सकें । कुंभ मेले में ‘तीर्थराज’ और ‘प्रयागवाल’ की उपस्थिति अनगिनत वर्षों से चली आ रही है। आइए जानते हैं प्रयागवाल के बारे में विस्तार से –
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