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    Jharkhand Ka Famous Gaon: प्रधानमंत्री मोदी के साथ ओबामा भी हुए इस गांव से प्रभावित, जो है लुप्तप्राय धरोहरों की सूची में शामिल*

    By January 24, 2025No Comments5 Mins Read
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    Jharkhand Ka Famous Gaon Maluti Temples Village History and Mystery

    Jharkhand Maluti Temples Village History: विशाल भारत की धरती पर अनगिनत ऐसे छिपे खजाने के तौर पर ऐतिहासिक विरासते मौजूद हैं जो आज के दौर में भी लोगों की जानकारी से दूर हैं। ऐसा ही एक गांव है मलूटी। झारखंड में मौजूद ये मलूटी गांव करीब ढाई-तीन हजार की आबादी वाला एक साधारण गांव हैं। लेकिन इसके ऐतिहासिक महत्व बेहद असाधारण है। यही वजह है कि इस गांव से जब केंद्र-राज्य की सरकारें वाकिफ हुईं तब इसे यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल कराने के लिए प्रयास किया गया। हेरिटेज पर काम कर रही संस्था ग्लोबल हेरिटेज फंड ने साल 2010 में मलूटी के मंदिरों को दुनिया के 12 सर्वाधिक लुप्तप्राय धरोहरों की सूची में शामिल किया। लगभग ढाई से तीन सौ साल पहले यहां बनाए गए 108 मंदिरों में से अब मात्र 72 बचे हैं। तालाब भी घटकर 65 रह गए हैं।

    ओबामा भी हुए थे इस गांव की झांकी से प्रभावित

    108 मंदिरों और इतने ही तालाबों वाले इस गांव की झांकी वर्ष 2015 में नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड के दौरान प्रस्तुत की गई थी, तब मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी खासे प्रभावित हुए थे।

    इस समारोह में इस झांकी को द्वितीय पुरस्कार के लिए चुना गया था। इसी के बाद मलूटी की समृद्ध ऐतिहासिक विरासतों ने सरकार और सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित किया था और इस धार्मिक महत्व के क्षेत्र का पुनरुद्धार शुरू हुआ था।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मलूटी की धरोहरों को संरक्षित करने के लिए जारी की योजना

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मलूटी के ऐतिहासिक-धार्मिक विरासत से प्रभावित होकर इस स्थान के प्रति व्यक्तिगत तौर पर दिलचस्पी दिखाई। केंद्र की मदद से इन धरोहरों को संरक्षित करने की 13.67 करोड़ रुपए की योजना पर काम शुरू हुआ। दो अक्टूबर, 2015 को प्रधानमंत्री ने इस योजना का ऑनलाइन शिलान्यास भी किया था।

    लेकिन स्थानीय लोगों और इतिहासविदों की आपत्ति के चलते 2018 में यह काम रुक गया। असल में जिस संस्था को इन धरोहरों को संरक्षित करने और यहां के मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम सौंपा गया, उस परइनके मूल स्वरूप से छेड़छाड़ का आरोप लगा।

    इस मशहूर धार्मिक क्षेत्र के निर्माण के साथ जुड़ा है एक रोचक किस्सा

    मलूटी में 108 मंदिरों और तालाबों के निर्माण की कहानी भी कम रोचक नहीं। 1494-1519 के बीच बंगाल की रियासत सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह के अधीन थी। कहते हैं कि सुल्तान ने कई बाज पाल रखे थे। उसका एक पसंदीदा बाज लापता हो गया। उसकी तलाश करने वाले के लिए बड़े इनाम की मुनादी की गई। बसंत राय नामक एक युवक ने बाज को ढूंढ़ निकाला। इससे खुश होकर सुल्तान ने बंसत राय को मलूटी और आस-पास के इलाकों की जमींदारी दे दी। इसके बाद बसंत राय अब इलाके में राजा बाज बसंत के नाम से मशहूर हो गए। उनके वशंज राजा राखड़ चंद्र राय की धर्म-कर्म में रुचि थे। मलूटी में पहला मंदिर उन्होंने 1720 ई में बनाया। कहते हैं कि जमींदार परिवार के बाकी सदस्यों में भी मंदिर निर्माण की होड़ लग गई।

    इसके बाद एक-एक कर 108 मंदिर और उतने ही तालाब बना दिए गए। इनमें से सबसे ऊंचा मंदिर 60 फीट और सबसे छोटा 15 फीट का है। यहां के मंदिर टेरोकोटा शैली में बने हुए हैं। इन पर चाला, बंगाल और उड़ीसा की प्राचीन वास्तुकला की छाप है। मलूटी पर हाल में झारखंड सरकार की आर्थिक सहायता से डॉ सोमनाथ आर्य ने ‘बियॉन्ड कैम्परिजन’ नामक एक पुस्तक लिखी है।

    गुप्त काशी के नाम से भी लोकप्रिय है यह जगह

    मलूटी को गुप्त काशी के नाम से भी जाना जाता है। अभिलेखों से पता चलता है मलूटी कभी देवों की भूमि के रुप में अधिग्रहित क्षेत्र थी। तत्कालीन मुस्लिम शासक सुल्तान अलाउद्दीन शाह 1493-1519 ने इसके धार्मिक महत्व को समझते हुए इस क्षेत्र को करमुक्त जागीर घोषित कर दिया था। उनकी पूजा जमींदार परिवार के कुलदेवी के रूप में करता रहा है।

    हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हिंदू धर्म के ग्रंथों में देवी मौलिक्षा का जिक्र नहीं मिलता। ऐसे में यह संभवतः बौद्ध धर्म की तांत्रिक परंपराओं की देवी हो सकती हैं। 15वीं शताब्दी तक इस इलाके में वज्रायन या तांत्रिक बौद्ध धर्म बेहद प्रचलित था।

    टेराकोटा शैली का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं यहां मौजूद कलाकृतियां

    406 हेक्टेयर में फैले इस गांव में एक साथ इतने ऐतिहासिक, धार्मिक और उत्कृष्ट वास्तुशिल्प वाले प्राचीन धरोहर मौजूद हैं। मलूटी के कुछ मंदिरों में उनके निर्माण के वर्ष भी अंकित हैं। इसके आधार पर इतिहासविद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सन 1720 से इस गांव में मंदिरों का निर्माण शुरू हुआ, जो 1845 तक निरंतर चलता रहा। इनमें सबसे अधिक संख्या भगवान शिव के मंदिरों की हैं। इनके अलावा दुर्गा, काली, धर्मराज, मनसा देवी, विष्णु भगवान के मंदिर हैं। मंदिर के बाहर टेराकोटा की आकर्षक कलाकृतियां शिल्प कला का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। ये कलाकृतियां रामायण और महाभारत के प्रसंगों पर आधारित हैं। जिनमें खासतौर से राम रावण युद्ध, रामलीला, वकासुर युद्ध, कृष्णलीला, राम वनवास, जटायु युद्ध, सीता हरण प्रसंगों पर आधारित कलाकृतियां टेराकोटा शैली से निर्मित हैं। जिन्हें मिट्टी पक्के बरतन के समान सांचे में ढाल कर बनाया गया है। लगभग सभी मंदिरों के बाह्यभाग पर सामने की तरफ टेराकोटा के पैनल बने हैं, जो 300 साल बाद भी नष्ट नहीं हुए हैं। टेराकोटा के इन पैनलों को बेहद बारीकी से जोड़ा गया है। अलग-अलग आकार के इन टेराकोटा टाइल्स में धार्मिक और ऐतिहासिक दृश्यों को बारीकी से उकेरा गया है।

    इन मंदिरों की एक समानता यह है कि सभी मंदिरों का प्रवेश द्वार बहुत ही छोटा है।

    रखरखाव की कमी और वक्त की मार के चलते कई बेशकीमती धरोहर नष्ट हो गए। हाल के वर्षों में मलूटी के इन धरोहरों पर सरकार के अलावा गैर सरकारी स्तर पर कई शोध हुए हैं और इनकी जानकारी दूर-दूर तक फैल रही है। यही वजह है कि अब झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे निकटवर्ती राज्यों के अतिरिक्त अच्छी संख्या में कई राज्यों के सैलानियों की चहल पहल यहां काफी बढ़ी है।

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