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    Home » Jharkhand Ka Shrapit Gaon: झारखंड का जादूगोड़ा जहां के आदिवासी आज भी यूरेनियम के श्राप से हैं परेशान
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    Jharkhand Ka Shrapit Gaon: झारखंड का जादूगोड़ा जहां के आदिवासी आज भी यूरेनियम के श्राप से हैं परेशान

    By January 29, 2025No Comments5 Mins Read
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    Jharkhand Ka Shrapit Gaon Jadugora Village History 

    Jharkhand Ka Shrapit Jadugora Village History: झारखंड का जादूगोड़ा क्षेत्र अपने यूरेनियम खनन (Uranium Mining) के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र न केवल भारत का पहला यूरेनियम खनन स्थल (India’s First Uranium Mining Site) है, बल्कि इसके साथ ही यह कई जटिल सामाजिक, स्वास्थ्य और पर्यावरणीय समस्याओं का केंद्र भी बन चुका है। जादूगोड़ा, जो पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है, ने वर्षों से भारत की परमाणु ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा किया है। इस लेख में, हम जादूगोड़ा के इतिहास, यूरेनियम खनन, उससे उत्पन्न बीमारियाँ, त्वचा रोग और पर्यावरणीय प्रभावों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

    जादूगोड़ा का इतिहास (Jharkhand Jadugora Gaon History In Hindi)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    जादूगोड़ा झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है। यह क्षेत्र प्राचीन काल से खनिज संपदाओं के लिए प्रसिद्ध रहा है। हालांकि, इसका सबसे बड़ा पहचानकर्ता 20वीं सदी में यूरेनियम की खोज के बाद बना। भारत में यूरेनियम का खनन 1950 के दशक में शुरू हुआ। 1951 में जादूगोड़ा में यूरेनियम के भंडार की खोज की गई। यह क्षेत्र भारत के परमाणु कार्यक्रम के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ। 1967 में यूरेनियम खनन का औपचारिक रूप से संचालन शुरू हुआ।

    जादूगोड़ा का यूरेनियम भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए एक प्रमुख संसाधन है। भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम (UCIL) द्वारा संचालित खदानें इस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र हैं।

    यूरेनियम खनन और उसके प्रभाव (Uranium Mining and its Effects)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    जादूगोड़ा में यूरेनियम की खदानें भूमिगत हैं। खनन के दौरान यूरेनियम अयस्क निकाला जाता है, जिसे प्रसंस्करण के बाद उपयोग के योग्य बनाया जाता है। खनन प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी कचरा उत्पन्न होता है।

    खनन के कारण मिट्टी, पानी और वायु में रेडियोधर्मी कणों का उत्सर्जन होता है। यह आसपास के पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। खदानों से निकलने वाले कचरे को खुली जगहों पर डंप किया जाता है, जिससे आसपास की भूमि बंजर हो रही है।

    खदानों से निकलने वाला रेडियोधर्मी कचरा आसपास के जल स्रोतों को दूषित करता है। यह क्षेत्र के लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है।

    रेडिएशन का सबसे ज़्यादा असर गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर पड़ता है। गर्भपात, समय से पहले बच्चे होना या मरे हुए बच्चे पैदा होना रेडिएशन का नतीजे हो सकते हैं। इससे कैंसर, ट्यूमर, मोतियाबिंद और आनुवांशिक बीमारियां हो सकती हैं।

    जादूगोड़ा के लोगों को यूरेनियम खनन से उत्पन्न रेडियोधर्मी प्रभावों के कारण विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।खनन क्षेत्र में रहने वाले लोगों में कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी गई है। रेडियोधर्मी विकिरण से कैंसर का खतरा बढ़ता है।

    रेडियोधर्मी कणों के सीधे संपर्क में आने से त्वचा रोग जैसे रैशेज, खुजली और गंभीर त्वचा संक्रमण होते हैं। कई लोगों को त्वचा में जलन और चकत्ते की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

    विकिरण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से आनुवंशिक विकार उत्पन्न हो सकते हैं। यह बच्चों में जन्मजात विकलांगताओं और शारीरिक असामान्यताओं का कारण बनता है।

    खनन क्षेत्र में उत्पन्न धूल और रेडियोधर्मी कणों के कारण फेफड़ों की समस्याएँ, जैसे अस्थमा और सिलिकोसिस आम हैं। महिलाएँ गर्भपात और बांझपन जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं। यह विकिरण के संपर्क के कारण होता है।

    सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

    जादूगोड़ा क्षेत्र में अधिकांश जनसंख्या आदिवासी समुदायों की है। खनन गतिविधियों के कारण उनकी पारंपरिक आजीविका और जीवनशैली पर गहरा असर पड़ा है। भूमि अधिग्रहण के कारण कई परिवार विस्थापित हुए हैं। खनन क्षेत्र के लोगों को पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएँ और सुविधाएँ नहीं मिलतीं। रेडियोधर्मी प्रभावों से निपटने के लिए चिकित्सा सेवाओं की भारी कमी है।

    खनन से उत्पन्न आर्थिक लाभ का अधिकांश हिस्सा कंपनियों और अधिकारियों को जाता है, जबकि स्थानीय समुदायों को इसके दुष्प्रभाव झेलने पड़ते हैं।

    पर्यावरणीय क्षति और समाधान (Environmental Damage From Mining And Solutions)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    खनन गतिविधियों के कारण क्षेत्र की जैव विविधता प्रभावित हो रही है। वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का अस्तित्व खतरे में है। रेडियोधर्मी कचरे को सुरक्षित तरीके से नष्ट करने की आवश्यकता है। वर्तमान में इसका प्रबंधन असंतोषजनक है। खनन क्षेत्र में रेडियोधर्मी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियमों का पालन करना चाहिए। स्थानीय समुदायों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षारोपण और पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।

    जादूगोड़ा झारखंड का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसने भारत के परमाणु कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, यूरेनियम खनन के कारण इस क्षेत्र को गंभीर पर्यावरणीय, स्वास्थ्य और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। स्थानीय समुदायों के जीवन और पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभावों को कम करने के लिए सरकार और कंपनियों को जिम्मेदार भूमिका निभानी होगी। जादूगोड़ा का उदाहरण यह दर्शाता है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना कितना महत्वपूर्ण है। इसके बिना, इस क्षेत्र के लोग और पर्यावरण दोनों ही दीर्घकालिक नुकसान झेलने के लिए मजबूर होंगे।

    रेडिएशन का प्रभाव केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और पर्यावरणीय क्षेत्रों में भी गहरा असर डालता है। इसके समाधान के लिए स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे।

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