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    Home » Kanipakam Ganesh Temple: सीधे ब्रह्म जी से जुड़ा है इस मंदिर का नाता, जहां बढ़ रहा है गणेश जी का आकार
    Tourism

    Kanipakam Ganesh Temple: सीधे ब्रह्म जी से जुड़ा है इस मंदिर का नाता, जहां बढ़ रहा है गणेश जी का आकार

    Janta YojanaBy Janta YojanaSeptember 4, 2025No Comments5 Mins Read
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    Kanipakam Ganesh Temple

    Kanipakam Ganesh Temple

    Kanipakam Ganesh Temple: आंध्रप्रदेश आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है। जहां के हर कोने में आपको मंदिर मिल जाएंगे। आंध्र प्रदेश के इन पवित्र मंदिरों का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि सदियों पुरानी शानदार वास्तुकला लोगों को अचंभित करने पर मजबूर कर देती है। इसी कड़ी में चित्तुर जिले के इरला मंडल नाम की जगह पर मौजूद गणेश जी का मंदिर अपनी वास्तुकला और रहस्यों के चलते दूर-दूर तक लोकप्रिय है। इस मंदिर को पानी के देवता का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर से जुड़ी एक बेहद रोचक मान्यता है कि यहां मौजूद भगवान गणेश की मूर्ति का आकार समय के साथ बढ़ता जा रहा है। साथ में ये भी मान्यता जुड़ी है कि बाहुदा नदी के बीच बने इस गणेश मंदिर में मौजूद कुंड के पवित्र जल में स्नान करने से तमाम तरह की बीमारियां जड़ से खत्म हो जाती हैं। यह तीर्थ एक नदी के किनारे बसा है। इस कारण इसे कनिपक्कम नाम दिया गया था। मान्यता के अनुसार, यहां आने वाले भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं। तिरुपति जाने वाले भक्त इस मंदिर में आकर भगवान गणेश का आशीर्वाद जरूर ग्रहण करते हैं।

    चित्तुर स्थित गणेश मंदिर का इतिहास

    चित्तुर स्थित गणेश मंदिर का इतिहास 11 वीं शताब्दी से जुड़ा है। इस मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी में चोल राजा कुलोठुन्गा चोल प्रथम ने करवाया था। आगे चलकर इस मंदिर का जिर्णोद्धार विजयनगर वंश के राजा ने सन 1336 में करवाया। और इस मंदिर को और अधिक भव्य और विस्तार देने का भी काम किया।

    ब्रह्मदेव से जुड़ा है इस मंदिर का नाता

    इस गणेश मंदिर का नाता ब्रह्मदेव से भी जुड़ा है। मान्यता है कि, एक बार खुद ब्रह्मदेव इस स्थल पर प्रगट थे। तब से यहां एक खास परम्परा सदियों से निभाई जा रही है। इस मंदिर में सितंबर या अक्टूबर में आने वाली गणेश चतुर्थी से ब्रह्मोत्स शुरू हो जाता है। तभी से इस मंदिर में 20 दिन का ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है। इस तरह का उत्सव बहुत अपने आप में बेहद अनोखा है जो शायद ही किसी और मंदिरों में मनाया जाता है। इस दौरान मंदिर प्रांगड़ से भक्तों के विशाल हुजूम के बीच गाजे बाजे के साथ रथ यात्रा निकाली जाती है। ब्रह्मोत्सव पर यह यात्रा गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन से सुबह और शाम एक निकाली जाती है। भगवान गणेश प्रतिदिन अलग-अलग वाहनों और साज श्रृंगार के साथ इस रथ यात्रा में भक्तों के दर्शन हेतु निकलते हैं। यात्रा में शामिल गणेश जी के रथ को खुशबूदार और आकर्षक रंगों वाले फूलों और चटकीले कपड़ों सुसज्जित किया जाता है।

    नदी में स्नान करने से कष्टों और पापों से मुक्ति प्रदान करता है ये मंदिर

    मध्य प्रदेश के इस लोकप्रिय मंदिर को लेकर ये भी मान्यता बेहद प्रचिलत है कि पापी व्यक्ति यदि भगवान से अपने पाप कर्मों की क्षमा मांगने के साथ ही यहां स्थित नदी में स्नान कर ये कसम खाए कि वह फिर कभी जीवन में पाप और अधर्म के रास्ते पर नहीं चलेगा। ऐसा प्रण करने के बाद जब स्नान कर वह व्यक्ति गणेश जी की प्रतिमा के दर्शन करता है तो भगवान उसे क्षमा करते हैं। 

    आकार बदल रही है भगवान गणेश की मूर्ति

    इस मंदिर से सबसे रहस्यमई बात यह है कि इस मंदिर में मौजूद गणेश की मूर्ति का आकार प्रतिदिन बदलता है। ये सिर्फ एक मनगढ़ंत मान्यता ही नहीं बल्कि इसका प्रमाण भी है। असल में इस मंदिर में मौजूद गणेश प्रतिमा कि पेट और घुटने का आकार काफी बढ़ गया है।इस बात का प्रमाण है उनके पुराने वस्त्र। कहा जाता है कि करीब पचास दशक पहले भगवान गणेश की एक भक्त श्री लक्ष्माम्मा ने उन्हें एक कवच भेंट किया था। लेकिन मूर्ति का आकार बढ़ने की वजह से अब वह कवच कनिपक्कम भगवान को फिट नहीं बैठता।

    बेहद रोचक है मंदिर के निर्माण से जुड़ी कहानी

    मंदिर के निर्माण के पीछे भी कई किस्से प्रचिलत हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार तीन भाई थे। उनमें से एक गूंगा, दूसरा बहरा और तीसरा अंधा था। तीनों ने अपने जीवन यापन के लिए मिलकर जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा खरीदा। अब एक समस्या आ खड़ी हुई वह ये कि उस जमीन पर बीज बोने के लिए पानी की जरुरत थी। आस पास कहीं पानी का कोई विकल्प न मिलने पर, तीनों भाइयों ने खेत कुआं खोदना शुरू किया। बहुत गहरी खुदाई करने के बाद भी पानी नहीं निकला। उन तीनों भाइयों ने मिलकर पानी की आस में थोड़ा और खोदने की कोशिश की। लेकिन तभी उन्हें गणेशजी की प्रतिमा दिखाई दी। उस प्रतिमा को देखते ही तीनों भाइयों की किस्मत चमक गई। इन तीनों गूंगे, बहरे और अंधे भाइयों के शारीरिक विकार सब दूर हो गए। वे देखने, सुनने और बोलने लग गए। इस आश्चर्यचकित कर देने वाली घटना के बाद उस गांव में रहने वाले लोग वहां प्रतिमा के प्रतिदिन दर्शन करने आने लगे। बाद में भगवान गणेश की मूर्ति को वहीं पानी के बीच ही एक मंदिर बनाकर उन्हें स्थापित कर दिया।

    कैसे पहुंचे

    एयर वे के माध्यम से तिरुपति हवाईअड्डा इस मंदिर से केवल 86 किमी की दूरी पर मौजूद है।

    कनिपक्कम गणेश मंदिर तिरुपतिबस स्टेशन से करीब आठ 72 किमी दूर पर स्थित है। इस स्टेशन से मंदिर जाने लिए आराम से बस और कैब की सुविधा मिलती है।

    ट्रेन से जाने पर कनिपक्कम गणेश मंदिर तिरुपति रेलवे स्टेशन से करीब 70 किमी की दूरी पर है।

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