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    Home » Kuno National Park Details: जंगल सफारी के लिहाज से क्यों मशहूर है कूनो राष्ट्रीय उद्यान, जहां थम नहीं रहा चीतों की मौतों का सिलसिला
    Tourism

    Kuno National Park Details: जंगल सफारी के लिहाज से क्यों मशहूर है कूनो राष्ट्रीय उद्यान, जहां थम नहीं रहा चीतों की मौतों का सिलसिला

    By March 28, 2025No Comments9 Mins Read
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    Kuno Wildlife Sanctuary Cheeta Dekhne Ke Liye Best Jagah

    Kuno Wildlife Sanctuary Cheeta Dekhne Ke Liye Best Jagah

    Kuno National Park Details: देश में लगातार घटती चीतों की संख्या एक बड़ी समस्या बन चुकी है। यही वजह है कि मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान (Kuno National Park, KNP) चीतों की पुनर्स्थापना को लेकर सबसे महत्वपूर्ण केंद्र के तौर पर उभरा है। 1952 में भारत में विलुप्त घोषित किए गए एशियाई चीतों की जगह अफ्रीकी चीतों को इस उद्यान में लाकर बसाने की महत्वाकांक्षी योजना लागू की गई है। यह पहल भारत सरकार और नामीबिया एवं दक्षिण अफ्रीका की सरकारों के सहयोग से चलाई जा रही है। हालांकि, इन चीतों की सुरक्षा और देखभाल के लिए कई गंभीर चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। इसी के साथ वन्यजीवKuno National कूनो राष्ट्रीय उद्यान भारत में चीता पुनर्स्थापन का केंद्र होने के अलावा एक रोमांचक वन्यजीव पर्यटन स्थल भी बन चुका है। इसकी विविध जैव विविधता, ऐतिहासिक धरोहर, रोमांचक सफारी और प्राकृतिक सुंदरता इसे पर्यटकों के लिए एक आदर्श स्थान बनाते हैं।

    ये हैं कूनो राष्ट्रीय उद्यान की खूबियां

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान 748.46 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह मध्य प्रदेश के श्योपुर एवं मुरैना जिलों में स्थित है। इस उद्यान को मूल रूप से एशियाई शेरों को बसाने के लिए विकसित किया गया था। लेकिन बाद में इसे चीतों के पुनर्स्थापन के लिए चुना गया। कूनो राष्ट्रीय उद्यान का स्थापना वर्ष 1981 है जिसे वन्यजीव अभयारण्य के नाम से भी जाना जाता है।

    इसे 2018 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा हासिल हुआ था। श्योपुर जिला, मध्य प्रदेश में स्थापित इस विस्तृत राष्ट्रीय उद्यान की मुख्य वनस्पति में उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड़ी जंगल पाए जाते हैं। यहां मौजूद रहने वाले मुख्य जीव जंतुओं में तेंदुआ, लकड़बग्घा, सांभर, नीलगाय, चिंकारा, जंगली सूअर, मगरमच्छ और अब अफ्रीकी चीते आदि का नाम शामिल है।

    इसके अलावा कूनो राष्ट्रीय उद्यान पक्षी प्रेमियों के लिए भी स्वर्ग के समान है। यहां 200 से अधिक पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं,जिनमें ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (खासकर शुष्क क्षेत्र में), भारतीय गिद्ध (Indian Vulture), पीलक (Golden Oriole), चील और बाज आदि पंछियों की बड़ी तादात देखने को मिलती है। सरीसृप और अन्य जीव में मगरमच्छ और घड़ियाल, कछुए और विभिन्न प्रकार की मछलियां और सांपों की कई प्रजातियां यहां मौजूद हैं।

    चीतों को कूनो में बसाने की परियोजना

    भारत सरकार ने ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कुल 20 अफ्रीकी चीते कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाकर छोड़े थे। यह ऐतिहासिक कदम 17 सितंबर, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर उठाया गया, जब पहले आठ चीते नामीबिया से भारत लाए गए। बाद में, फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से भी 12 और चीतों को यहां स्थानांतरित किया गया।

    प्रारंभ में लाए गए 20 चीतों में से 7 की मृत्यु हो चुकी है। इसके अलावा, उद्यान में जन्मे चार शावकों में से तीन भी जीवित नहीं बच सके। मौजूदा समय में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 15 चीते (12 वयस्क और 3 शावक) हैं।

    चीतों की सुरक्षा को लेकर सामने आ रहीं ये कठिनाइयां

    चीतों को सुरक्षित रखने के लिए भारत सरकार और वन विभाग लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इस परियोजना को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

    1. पर्यावरण और जलवायु से जुड़ी चुनौतियां

    अफ्रीकी चीते नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के खुले घास के मैदानों में पले-बढ़े हैं, जबकि कूनो का वन क्षेत्र घना और पेड़ों से भरा हुआ है। घने जंगलों में चीतों को शिकार ढूंढने में मुश्किल होती है। अधिक गर्मी और आर्द्रता के कारण चीतों को भारतीय जलवायु में ढलने में समय लग रहा है। कूनो में उनके प्राकृतिक आवास की तुलना में खुला घास का मैदान बहुत कम है।

    2. भोजन और शिकार संबंधी समस्याएं

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में मुख्य रूप से चिंकारा, नीलगाय, सांभर और जंगली सूअर मौजूद हैं। अफ्रीकी चीते मूल रूप से छोटे हिरणों और गैजेल जैसे शिकार पर निर्भर होते हैं, जो भारतीय वन्यजीवों से अलग होते हैं। चीतों को भारतीय शिकार प्रणाली के अनुकूल होने में समय लग रहा है। कई चीते शिकार की कमी के कारण कमजोर हो गए हैं।

    3. अन्य शिकारी जीवों का खतरा

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में तेंदुए और लकड़बग्घे जैसे शिकारी जीव भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। ये चीते और उनके शावकों के लिए काफी खतरा पैदा कर सकते हैं। पहले भी कई बार चीतों और तेंदुओं के बीच संघर्ष देखने को मिला है। 2023 में एक शावक की मौत लकड़बग्घे के हमले से हुई थी।

    4. इंसानों से बढ़ता संपर्क

    हालांकि कूनो राष्ट्रीय उद्यान के आसपास इंसानों की बस्तियां बहुत अधिक नहीं हैं, फिर भी चीतों के जंगल से बाहर निकलने का खतरा बना रहता है।

    चीते यदि जंगल से बाहर निकलते हैं, तो मानव-पशु संघर्ष की घटनाएं हो सकती हैं। वन विभाग को लगातार चीतों की निगरानी करनी पड़ रही है।

    5. चीतों की बीमारियों से मौत

    अब तक मर चुके चीतों में से कुछ की मौत संक्रमण और बीमारियों के कारण हुई है।

    गर्मी के कारण त्वचा से संबंधित बीमारियां बढ़ रही हैं। कुछ चीतों की मौत कृमि संक्रमण और तनाव के कारण भी हुई है।

    चीतों की देखभाल में आने वाली परेशानियां

    1. निगरानी और ट्रैकिंग की चुनौती

    वन विभाग चीतों पर लगातार नजर रखने के लिए रेडियो कॉलर और GPS तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन भारत में पहली बार चीता संरक्षण का प्रयास हो रहा है, इसलिए निगरानी प्रणाली को पूरी तरह प्रभावी बनाने में समय लग रहा है। कुछ चीतों के रेडियो कॉलर में तकनीकी खराबी आ चुकी है। इसी के साथ वन्यजीवों पर नजर रखने वाले कर्मियों की संख्या अभी भी कम है।

    2. पर्याप्त संसाधनों की कमी

    भारत में चीता संरक्षण का कोई पूर्व अनुभव नहीं है, जिससे वन विभाग को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चीतों के लिए पर्याप्त पशु चिकित्सक और विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है। सरकार को लगातार अधिक बजट और संसाधन जुटाने की जरूरत पड़ रही है। वर्तमान में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों की अधिकतम क्षमता लगभग 30-35 ही मानी जा रही है। यदि इनकी संख्या बढ़ती है, तो इन्हें अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करना पड़ेगा। सरकार गांधीनगर (गुजरात) और नौरादेही (मध्य प्रदेश) के जंगलों में भी चीतों को बसाने की योजना बना रही है।

    भविष्य की योजनाएं

    1. चीता संरक्षण के लिए अधिक वैज्ञानिक शोध

    सरकार और वैज्ञानिकों की टीमें लगातार चीतों की स्थिति का अध्ययन कर रही हैं। भविष्य में चीतों के लिए विशेष घास के मैदान तैयार किए जा सकते हैं।

    उनकी खुराक और शिकार प्रणाली पर गहन शोध किया जा रहा है। साथ ही मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ़ और गुजरात में भी चीतों के लिए नए वन्यजीव अभयारण्य विकसित करने की योजना है।

    2. पर्यावरण और पर्यटन का विकास

    सरकार कूनो राष्ट्रीय उद्यान को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रही है, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर भी मिलेंगे।

    पर्यटन के लिहाज से कूनो की लोकप्रियता

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान न केवल जैव विविधता के लिए बल्कि पर्यटन और रोमांच के अवसरों के लिए भी प्रसिद्ध हो रहा है। चीता सफारी और वन्यजीव सफारी

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान का सबसे बड़ा आकर्षण है। चीता सफारी खासकर पर्यटकों की पसंदीदा गतिविधियों में शामिल है।

    पर्यटक जीप सफारी और जंगल वॉक के जरिए तेंदुए, भालू, हिरण और अन्य वन्यजीवों को देख सकते हैं।

    सफारी का समय:

    सुबह: 6:00 AM – 10:00 AM और शाम: 3:00 PM – 6:00 PM के बीच रहता है।

    रोमांचक ट्रेकिंग और फोटोग्राफी

    कूनो की पहाड़ियों और घास के मैदानों में ट्रेकिंग के बेहतरीन अवसर हैं। प्रकृति प्रेमियों और वाइल्डलाइफ फ़ोटोग्राफरों के लिए यह एक शानदार स्थान है।

    ऐतिहासिक स्थल और सांस्कृतिक धरोहर

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान के आसपास कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल स्थित हैं, जो पर्यटन को और आकर्षक बनाते हैं।

    पालपुर किला

    जिसमें से एक है सदियों पुराना पालपुर किला। यह एक प्राचीन किला है जो कूनो नदी के किनारे स्थित है और यहां से पूरे जंगल का सुंदर दृश्य दिखता है।

    मधुवनगढ़ किला:

    यह भी एक ऐतिहासिक धरोहर स्थल है, इस जीर्ण शीर्ण हो चुके किले को देखने के लिए हजारों की संख्या में पर्यटक वर्ष भर आते हैं।

    श्योपुर का किला

    कूनो से लगभग 25-30 किमी की दूरी पर स्थित यह किला मध्यकालीन वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। फोटोग्राफी के लिहाज से बेहतरीन आर्टिस्टिक स्थल है यह।

    कूनो में इको-टूरिज्म और कैंपिंग

    जंगल के अंदर टेंट कैंपिंग की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने गाइडेड टूर, ट्राइबल विलेज विजिट और रिवर साइट पिकनिक जैसी गतिविधियों की शुरुआत की है।

    कैसे पहुंचे कूनो राष्ट्रीय उद्यान

    (A) हवाई मार्ग:

    ग्वालियर हवाई अड्डा (Gwalior Airport) – कूनो से लगभग 200 किमी

    जयपुर हवाई अड्डा (Jaipur Airport) – कूनो से 250 किमी

    B) रेल मार्ग:

    श्योपुर रेलवे स्टेशन – कूनो से लगभग 25 किमी

    ग्वालियर रेलवे स्टेशन – कूनो से लगभग 200 किमी

    (C) सड़क मार्ग:

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान ग्वालियर, शिवपुरी, सवाई माधोपुर और जयपुर से सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

    दिल्ली से दूरी: 450 किमी (लगभग 7-8 घंटे की यात्रा)

    आवास और ठहरने की सुविधाएं

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में ठहरने के लिए कई सरकारी और निजी रिसॉर्ट्स, गेस्ट हाउस और होमस्टे उपलब्ध हैं।

    जिसमें एमपी टूरिज्म का कूनो लॉज, कूनो सफारी कैंप, श्योपुर और मुरैना में होटल और गेस्ट हाउस आदि ठहरने के लिए बेस्ट प्लेस माने जाते हैं। आने वाले वर्षों में, यह राष्ट्रीय उद्यान न केवल वन्यजीव संरक्षण का प्रमुख केंद्र बनेगा बल्कि भारत में इको-टूरिज्म के विकास में भी अहम भूमिका निभाएगा।

    कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों को बसाने की परियोजना भारत के वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। हालांकि, इस योजना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन उचित देखभाल, वैज्ञानिक शोध और सतत प्रयासों के माध्यम से यह परियोजना सफल हो सकती है। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो भारत के जंगलों में फिर से चीतों की दहाड़ गूंजने लगेगी।

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