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    राजनीति

    Politician Sukanta Kumar Panigrahi: कंधमाल की नई आवाज़ – किसान से सांसद बने सुकांत कुमार पाणिग्रही का प्रेरक सफर

    Janta YojanaBy Janta YojanaMay 25, 2025No Comments6 Mins Read
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    Politician Sukanta Kumar Panigrahi (Image Credit-Social Media)

    Politician Sukanta Kumar Panigrahi (Image Credit-Social Media)

    Politician Sukanta Kumar Panigrahi Biography: ओडिशा के कंधमाल लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर प्रचंड बहुमत से निर्वाचित हुए सुकांत कुमार पाणिग्रही आज न सिर्फ़ एक जनप्रतिनिधि हैं, बल्कि ग्रामीण भारत की उम्मीदों और आकांक्षाओं के प्रतीक भी बन चुके हैं। पाटांडा गांव से निकलकर दिल्ली की संसद तक का उनका सफर कृषि, शिक्षा और समाजसेवा के मूल्यों से सजा है। एक स्वर्ण पदक विजेता कृषि वैज्ञानिक, एक समर्पित किसान और अब 18वीं लोकसभा के सदस्य के रूप में, उन्होंने राजनीति में एक नई शैली की शुरुआत की है ‘जहां वादे नहीं, कार्य और परिणाम बोलते हैं।’

    शुरुआती जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

    सुकांत कुमार पाणिग्रही का जन्म 25 मई 1967 को ओडिशा के कंधमाल जिले के पाटांडा गांव में हुआ। वे एक साधारण किसान परिवार से आते हैं। उनके पिता, स्वर्गीय सुरेन्द्रनाथ पाणिग्रही, एक प्रगतिशील किसान और सामाजिक विचारों वाले व्यक्ति थे, जबकि मां सावित्री देवी एक गृहिणी के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी रुचि रखती थीं। पारिवारिक संस्कारों में पले-बढ़े सुकांत ने बचपन से ही कृषि और समाज की समस्याओं को बेहद करीब से देखा और समझा। वे अविवाहित हैं और अपने पूरे जीवन को समाज और खेती के लिए समर्पित कर चुके हैं। बिना किसी पारिवारिक जिम्मेदारी के, वे पूरी तरह जनसेवा में जुटे हुए हैं। जो उन्हें दूसरों से अलग बनाता है।

    शिक्षा ज्ञान का स्वर्णिम अध्याय

    सुकांत पाणिग्रही की शिक्षा दीक्षा ओडिशा के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में हुई। उन्होंने ओडिशा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से कृषि विज्ञान में एमएससी की पढ़ाई की। जहां वे स्वर्ण पदक विजेता रहे। यह उपलब्धि उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण और कठोर परिश्रम का प्रमाण है। उच्च शिक्षा के दौरान ही वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कृषक कल्याण और जैविक खेती जैसे विषयों में गहरी रुचि लेने लगे थे। शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ उन्होंने ग्रामीण समाज की समस्याओं का गहन अध्ययन किया और उन्हें हल करने की दिशा में नवाचार पर केंद्रित विचार विकसित किए।

    कृषि और सामाजिक कार्यों से राजनीति की ओर

    अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने किसी प्रशासनिक सेवा या कॉर्पोरेट करियर का रास्ता नहीं चुना। बल्कि अपने गांव लौटकर एक पूर्णकालिक किसान बने। उन्होंने पारंपरिक खेती को वैज्ञानिक तरीकों से जोड़ने की दिशा में कई पहल कीं। उन्होंने न केवल खुद उन्नत तकनीकों को अपनाया। बल्कि सैकड़ों किसानों को भी प्रशिक्षित किया।

    वे जैविक खेती, जल संरक्षण और बीज संरक्षण जैसे मुद्दों पर सक्रिय रहे। कंधमाल जिले के आदिवासी किसानों को बाजार से जोड़ने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कार्यों के कारण क्षेत्र में कई किसान आत्मनिर्भर बन सके। राजनीति में उनकी प्रवेश की पृष्ठभूमि भी समाजसेवा और जनसंवाद रही है। उन्होंने गांव-गांव जाकर किसानों, युवाओं और महिलाओं से संवाद किया और यही जनसंपर्क आगे चलकर उनकी राजनीतिक ताकत बना।

    राजनीतिक सफर किसान नेता से सांसद तक

    2024 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने सुकांत कुमार पाणिग्रही को कंधमाल लोकसभा सीट से टिकट दिया। भाजपा नेतृत्व को विश्वास था कि वे ज़मीन से जुड़े हुए नेता हैं और जनता का वास्तविक प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। परिणामस्वरूप, सुकांत ने न केवल चुनाव जीता, बल्कि भारी मतों के अंतर से विपक्षी दलों को पीछे छोड़ दिया। उनकी जीत सिर्फ़ एक राजनीतिक सफलता नहीं थी। बल्कि यह संकेत भी था कि देश की राजनीति अब काम करने वाले, जमीनी नेताओं की ओर लौट रही है। उनके विजयी भाषण में भी यह बात स्पष्ट थी, जब उन्होंने कहा-

    यह जीत मेरी नहीं, बल्कि किसानों, आदिवासियों, युवाओं और उन सभी लोगों की है, जिन्होंने वर्षों से अनसुनी आवाज़ों को बुलंद किया।

    धारित पद और संसदीय भूमिका

    18वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित होने के तुरंत बाद उन्हें 26 सितंबर 2024 को कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण संबंधी समिति का सदस्य बनाया गया। यह नियुक्ति उनकी विशेषज्ञता के बिल्कुल अनुकूल थी। उन्होंने अब तक कृषि क्षेत्र से जुड़े कई ज्वलंत मुद्दों पर समिति में आवाज़ उठाई है जैसे MSP की गारंटी, बीजों की गुणवत्ता, जल संकट, ग्रामीण बाजारों का डिजिटलीकरण और किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण। उनके सुझावों और सक्रिय सहभागिता के चलते समिति की रिपोर्टों में गहराई और व्यावहारिकता आई है।

    सामाजिक सरोकार और स्थानीय जुड़ाव

    सुकांत पाणिग्रही ने अपने संसदीय क्षेत्र में विकास के साथ-साथ सामाजिक समरसता को भी प्राथमिकता दी है। उन्होंने निम्नलिखित क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किए हैं-

    कृषक प्रशिक्षण केंद्र

    पाटांडा और आसपास के गांवों में किसानों के लिए उन्नत तकनीकों पर आधारित प्रशिक्षण सत्र आयोजित।

    महिला स्व-सहायता समूह

    महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए सब्जी उत्पादन, कढ़ाई-बुनाई और प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा।

    आदिवासी युवाओं के लिए कैरियर मार्गदर्शन

    उन्होंने कई कैरियर मार्गदर्शन शिविर आयोजित कर आदिवासी युवाओं को UPSC, SSC, और रेलवे की परीक्षाओं की तैयारी करवाई।

    पर्यावरण संरक्षण

    जल संरक्षण को लेकर “पानी बचाओ अभियान” की शुरुआत की और वृक्षारोपण को जनांदोलन बनाया।

    विचारधारा और दृष्टिकोण

    सुकांत पाणिग्रही की राजनीति केवल सत्ता के इर्द-गिर्द नहीं घूमती, बल्कि वह सेवा और समाधान पर आधारित है। उनका मानना है कि—

    राजनीति केवल भाषण देने का मंच नहीं, बल्कि उन सपनों को पूरा करने का माध्यम है, जो गांव के बच्चे, किसान और महिलाएं देखते हैं।

    उनकी दृष्टि एक ऐसे भारत की है। जहां किसान आत्मनिर्भर हों, युवा शिक्षित और प्रशिक्षित हों और महिलाएं स्वावलंबी बनें। वे तकनीक और परंपरा के समन्वय को ग्रामीण भारत की तरक्की की कुंजी मानते हैं।

    चुनौतियां और भविष्य की योजनाएं

    हालांकि उनकी शुरुआत प्रभावशाली रही है, लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां भी हैं। जैसे जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव, आदिवासी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी और युवाओं का पलायन। सुकांत पाणिग्रही ने अपने आगामी कार्यों की प्राथमिकताएं स्पष्ट की हैं-

    कृषि को उद्योग से जोड़ना

    ताकि किसानों की आय स्थायी रूप से बढ़े।

    स्थायी ग्रामीण विकास

    हर गांव में सड़क, बिजली, स्वास्थ्य केंद्र और शिक्षा की मजबूत बुनियाद।

    डिजिटल साक्षरता

    युवाओं और किसानों को डिजिटल भारत से जोड़ना आदि। सुकांत कुमार पाणिग्रही का जीवन एक उदाहरण है कि कैसे शिक्षा, अनुभव और निष्ठा के बल पर कोई व्यक्ति आम जनता की आवाज़ बन सकता है। वे उस नेतृत्व के प्रतीक हैं जो नारे नहीं, समाधान देता है। जो दिखावा नहीं, समर्पण करता है।

    आज जब राजनीति में ईमानदारी और सेवा-भाव की चर्चा होती है, तो कंधमाल के सांसद सुकांत पाणिग्रही एक चमकता हुआ नाम बनकर उभरते हैं।।जिनसे न केवल ओडिशा, बल्कि पूरा भारत उम्मीद कर सकता है।

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