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    Home » Rajkumari Bai Kothi History: राजकुमारी बाई की कोठी का इतिहास, जानें सिंधिया परिवार की इस ऐतिहासिक धरोहर के बारे में
    Tourism

    Rajkumari Bai Kothi History: राजकुमारी बाई की कोठी का इतिहास, जानें सिंधिया परिवार की इस ऐतिहासिक धरोहर के बारे में

    By January 8, 2025No Comments5 Mins Read
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    Rajkumari Bai Kothi (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    Rajkumari Bai Ki Kothi: मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित राजकुमारी बाई की कोठी (Rajkumari Bai Ki Kothi), जिसे रॉयल होटल (British Hotel Royal Palace) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल मानी जाती है। यह सिंधिया राजवंश (Scindia Rajvansh) की अमूल्य धरोहर है, जिसका इतिहास 19वीं शताब्दी से जुड़ा है। कहा जाता है कि इसका निर्माण 1857 में राजा गोकुलदास (Raja Gokuldas) ने अपनी नातिन के विवाह में उपहार स्वरूप करवाया था।

    राजकुमारी बाई (Rajkumari Bai), सिंधिया परिवार (Scindia Family) की एक प्रमुख महिला थीं। यह कोठी उनके निवास स्थान के रूप में प्रसिद्ध थी। वर्तमान समय में यह कोठी अपनी भव्य वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए जानी जाती है। साथ ही, यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

    राजकुमारी बाई की कोठी का इतिहास (Rajkumari Bai Ki Kothi Ka Itihas)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    इस ऐतिहासिक इमारत का इतिहास आजादी के उस अमृतकाल से जुड़ा है, जब ‘जबलपुर’ को ‘जबौलपुर’ कहा जाता था। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित राजकुमारी बाई की कोठी, जिसे बाद में ‘रॉयल होटल’ के नाम से भी जाना जाता था, सिंधिया परिवार की ऐतिहासिक धरोहर है। खंडर हो चुकी यह इमारत किसी ज़माने में अंग्रेजों की ऐशगाह हुआ करती थी। जहां भारतीय लोगों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित था।

    19वीं शताब्दी के अंत में तत्कालीन राजा गोकुलदास ने इस कोठी का निर्माण करवाया था। उन्होंने अपने गोविंद महल (Govind Mahal) के, जिसे वर्त्तमान समय में ओल्ड आरटीओ बिल्डिंग के नाम से जाना जाता है, ठीक सामने अपनी नातिन राजकुमारी बाई के लिए उपहार के तौर पर इस भव्य इमारत का निर्माण करवाया था। इसीलिए उस समय यह महल ‘राजकुमारी बाई की कोठी’ के नाम से प्रसिद्ध थी। जिसके बाद ब्रिटिशकाल में अंग्रेजों ने इसपर नियंत्रण हासिल किया और इसे एक आलिशान राजसी हॉटेल के रूप में बदल दिया।

    उस समय यह हॉटेल मध्य भारत के सबसे आलीशान होटलों में से एक था तथा यह एकमात्र ऐसा होटल था जहां सारा स्टाफ ब्रिटिश था। अंग्रेज उस समय यहां आये-दिन पार्टियों का आयोजन करते थे। इसके अलावा आजादी के बाद यहाँ कुछ समय के लिए मध्य प्रदेश विद्युत् मंडल का कार्यालय स्थापित किया गया था। तथा बाद में यहां एनसीसी की कन्या बटालियन का कार्यालय भी संचालित किया गया था। हाल ही में इस ऐतिहासिक महल को राज्य संरक्षित सूचि से अलग हुए मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग को सौंप दिया गया है। तथा इस जर्जर हो चुके भवन में आर एन मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के द्वारा पुराने स्वरुप के साथी ही फिर से होटल शुरू करने का प्रस्ताव भी भेजा गया है।

    सिंधिया परिवार का इतिहास (Scindia Parivaar Ka Itihas)

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    1910 के दशक में ग्वालियर राजघराने की गिनती देश के उच्चतम राजघरानों में की जाती थी। इस समय सिंधिया परिवार अग्रेसर था। पूरे उत्तर भारत पर सिंधिया राजशाही का नियंत्रण था। तथा उस दौरान ग्वालियर रियासत अंग्रेजो के दलों में भी राज करती थी।

    इस दौर में गोकुलदास तथा उनके बेटे तथा ग्वालियर राजघराने के राजकुमार माधवराव सिंधिया की शान देखते ही बनती थी। अंग्रेज भी उन्हें 21 तोपों की सलामी दिया करते थे।उनका सम्मान करते थे। माधवराव सिंधिया, लोकप्रिय नेता तथा भारत के 43वें संचार मंत्री और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के 10वें विकास मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के परदादा थे।

    भव्य कोठी की भव्य वास्तुकला (Architecture of Rajkumari Bai Ki Kothi)

    19वीं शताब्दी में बनी यह कोठी यूरोपीय वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है। इस महल का प्रवेश द्वार छतयुक्त कमानीदार आर्च स्वरुप में बनाया गया है, जो इसका मुख्य प्रवेश द्वार है।इस प्रवेश द्वार के दोनों ओर दो छोटे द्वार होने के साथ -साथ शेरों की कलाकृति भी बनाई गई है।

    मुख्य प्रवेश द्वार पर ही एक बोर्ड पर इसके इतिहास के बारे में जानकारी साझा की गई है। यह कोठी लूनल लेंस केपिंग पर बनाई गई है जिसका आगे का हिस्सा अर्धचंद्राकर आकार (हाफ मून) में बनाया गया है। बरामदे को बनाने के लिए महराव एवम स्तंभों का उपयोग किया गया है, जो इस भवन को अधिक भव्य बनाता है।

    भारतीय लोगों का प्रवेश वर्जित रहा

    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
    (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

    यह ऐतिहासिक धरोहर तत्कालीन राजा गोकुलदास की संपत्ति थी। लेकिन अंग्रेजों के भारत पर शासन के दौरान यह ब्रिटिशर्स के नियंत्रण में चली गई थी। जिसके बाद अंग्रेजों ने इसे होटल में तब्दील कर दिया और यहां भारतीय लोगों का प्रवेश करना वर्जित था। अंग्रेजों ने इस होटल के प्रवेश द्वार पर ही (इंडियंस एंड डॉग्स आर नॉट अलाउड) यानी भारतीय और कुत्तों का प्रवेश प्रतिबंधित है- यह संदेश लिखा था।

    वर्त्तमान समय में

    राजकुमारी बाई की कोठी नाम से प्रसिद्ध यह इमारत कभी भारतीय राजसी थाट का एक अद्भुत नमूना होने के साथ – साथ अंग्रेजों की भी पसंदीदा जगह थी। लेकिन आज यह भव्य कोठी खंडर में तब्दील हो चुकी है। फ़िलहाल यह इमारत मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के संरक्षण में है तथा इस जर्जर हो चुकी इमारत के संरक्षण के लिए यहां आम लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है।

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