
Zero Mile Stone History
Zero Mile Stone History
History Of Zero Milestone: भारत एक विशाल भूभाग वाला देश है, जिसकी हर गली, हर रास्ता और हर पत्थर अपने भीतर इतिहास की कोई न कोई कहानी समेटे हुए है। भारत के ह्रदय नागपुर में स्थित ‘शून्य मील का पत्थर’ इन ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। यह सिर्फ एक भौगोलिक संकेत नहीं है बल्कि भूतकाल में ब्रिटिश साम्राज्य की भारत को एक केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था में शामिल करने की इच्छा का प्रमाण है। औपनिवेशिक काल में इसे पूरे उपमहाद्वीप के सड़क मार्गों के केंद्र बिंदु के रूप में विकसित किया गया था। यह पत्थर आज भी हमें उस समय की याद दिलाता है जब अंग्रेज़ों ने भारत के हर कोने को एक संगठित ढांचे में समेटने का प्रयास किया था।
शून्य मील का पत्थर – क्या है इसका महत्व?

शून्य मील का पत्थर, नागपुर (महाराष्ट्र-Maharashtra) में स्थित एक ऐतिहासिक स्मारक है जिसे 1907 में ब्रिटिश शासन के दौरान ‘ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे ऑफ इंडिया’के अंतर्गत स्थापित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य उस समय के अविभाजित भारत के भौगोलिक केंद्र को चिह्नित करना था। इस स्मारक का निर्माण अंग्रेज अधिकारियों द्वारा इस उद्देश्य से कराया गया था कि यह पूरे देश के विभिन्न हिस्सों से दूरी मापने और सड़क नेटवर्क की योजना बनाने के लिए एक मानक संदर्भ बिंदु का कार्य कर सके। यह एक ऊँचा स्तंभ है, जो उस युग की सटीक मानचित्रण प्रणाली और परिवहन संरचना के विकास का प्रतीक था। इसने ब्रिटिश भारत में सड़क मार्गों की दूरी तय करने के लिए केंद्रीय भूमिका निभाई और एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चिन्ह बन गया। हालांकि आज यह स्थान भारत के भौगोलिक केंद्र के रूप में मान्य नहीं है लेकिन ऐतिहासिक रूप से यह अविभाजित भारत के केंद्र की पहचान रखता है।
स्थान और संरचना
नागपुर(Nagpur) के सिविल लाइंस क्षेत्र के पास एक छोटे से चौक में स्थित शून्य मील का पत्थर एक ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्मारक है, जिसे ब्रिटिश काल में स्थापित किया गया था। यह स्मारक विशेष रूप से बेसाल्ट पत्थर से बना एक लगभग 13 फीट (करीब 4 मीटर) ऊँचा स्तंभ है जिसकी ऊँचाई समुद्र तल से 1020.171 फीट दर्ज की गई है। इस स्तंभ के चारों ओर चार दिशात्मक पत्थर मौजूद हैं, जिन पर भारत के चार प्रमुख महानगर – दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई की दूरी अंकित की गई है। स्मारक को एक लोहे के घेरे से घेरा गया है और इसमें एक छोटा पत्थर भी शामिल है जो ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे (GTS) के मानक बेंचमार्क को दर्शाता है। बाद में, इसके चारों ओर प्लास्टर के चार घोड़े भी सजाए गए, जो इसकी भव्यता और ऐतिहासिक पहचान को और बढ़ाते हैं। यह स्मारक उस युग की वैज्ञानिक सोच, सटीक मानचित्रण तकनीक और भारत के भौगोलिक केंद्र की अवधारणा का प्रतीक है, जो आज भी अपनी विरासत और ऐतिहासिक मूल्य के साथ विद्यमान है।
ब्रिटिश शासन और शून्य मील की अवधारणा
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भारत में रेलवे, डाक व्यवस्था और सड़क मार्गों के तेज़ विकास के साथ संपूर्ण उपमहाद्वीप में दूरी मापने के लिए एक केंद्रीय बिंदु की आवश्यकता महसूस की गई। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए ‘शून्य मील का पत्थर’ चिह्नित किया गया, जिसे नागपुर में स्थापित किया गया। नागपुर का चयन इसलिए किया गया क्योंकि यह भारत के लगभग मध्य में स्थित है और उत्तर-दक्षिण व पूर्व-पश्चिम के भौगोलिक संतुलन को दर्शाता है। इसी कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने इसे औपनिवेशिक भारत का भौगोलिक केंद्र घोषित किया। यद्यपि यह स्मारक वैज्ञानिक रूप से वर्तमान भारत का वास्तविक केंद्र नहीं है फिर भी उस काल में इसे पूरे भारत में सड़क मार्गों और दूरी निर्धारण के लिए एक केंद्रीय संदर्भ बिंदु के रूप में उपयोग किया गया था, जिससे इसका ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
नागपुर क्यों चुना गया?
नागपुर की भौगोलिक स्थिति इसे भारत के सबसे विशेष शहरों में से एक बनाती है। क्योंकि यह शहर उत्तर और दक्षिण भारत को न केवल जोड़ता है, बल्कि पूर्वी राज्यों को पश्चिमी तटीय क्षेत्रों से भी मार्ग प्रदान करता है। यह शहर मध्य भारत का एक प्रमुख केंद्र है, जहाँ से रेलवे और सड़क मार्ग अनेक दिशाओं में फैलते हैं।जिससे यह एक प्रमुख परिवहन जंक्शन बन जाता है। इसी भू-स्थानिक विशेषता के कारण नागपुर को ‘भारत का हृदय’ भी कहा जाता है। शून्य मील का पत्थर इसी अवधारणा का मूर्त प्रमाण है, जिसे ब्रिटिश काल में पूरे देश के लिए एक केंद्रीय संदर्भ बिंदु के रूप में स्थापित किया गया था। ताकि विभिन्न स्थानों की दूरियाँ नापी जा सकें और सड़क नेटवर्क का विकास सुसंगत रूप से हो सके।
ब्रिटिश शासन में इसका रणनीतिक महत्व
ब्रिटिश साम्राज्य में सड़कें केवल आम जन के यातायात के लिए नहीं थीं, बल्कि उनका मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक नियंत्रण, व्यापारिक संचालन और सैनिक गतिविधियों को सुदृढ़ बनाना था। इसी रणनीतिक सोच के तहत नागपुर में स्थापित शून्य मील का पत्थर एक केंद्रीय और महत्त्वपूर्ण बिंदु बन गया। यहाँ से पूरे देश की दूरी मापने की परंपरा शुरू हुई, और ट्रंक रोड्स (महामार्गों) की योजना बनाते समय इस स्थान को आधार मानकर विभिन्न शहरों की दूरी तय की जाती थी। ब्रिटिशों का उद्देश्य सिर्फ यात्रा को सुगम बनाना नहीं था बल्कि डाक, सेना और अन्य संसाधनों की तीव्र आवाजाही सुनिश्चित करना था। जिससे वे पूरे उपमहाद्वीप पर नियंत्रण बनाए रख सकें। नागपुर स्थित यह शून्य मील का पत्थर ब्रिटिश लॉजिस्टिक्स और प्रशासनिक रणनीति का एक अहम हिस्सा बन गया था, जिसकी ऐतिहासिक महत्ता आज भी कायम है।
शून्य मील पत्थर और आज का भारत
आज जब भारत GPS, डिजिटल मानचित्रों और उपग्रह आधारित नेविगेशन जैसी आधुनिक तकनीकों से सुसज्जित है। ऐसे समय में शून्य मील का पत्थर हमें उस दौर की याद दिलाता है जब सर्वेक्षण और भौगोलिक गणना मैनुअल उपकरणों और सूक्ष्म मापन विधियों पर आधारित थीं। यह स्मारक न केवल ब्रिटिश भारत की सटीक मानचित्रण प्रणाली की ऐतिहासिक झलक प्रस्तुत करता है बल्कि यह भारत की भौगोलिक चेतना और सर्वेक्षण परंपरा का प्रतीक भी बन चुका है। नागपुर में स्थित “Survey of India” का कार्यालय इस विरासत को और अधिक प्रासंगिक बनाता है। क्योंकि यह संस्था ऐतिहासिक रूप से भारत के नक्शों, सीमाओं और भौगोलिक जानकारी के निर्माण और संरक्षण का दायित्व निभाती रही है। शून्य मील का पत्थर इस बात का स्मरण कराता है कि आधुनिक तकनीकों की नींव पुराने समय की वैज्ञानिक दूरदर्शिता पर ही रखी गई है।
शून्य मील से जुड़ी अन्य रोचक बातें
शून्य मील का पत्थर मुख्य रूप से ब्रिटिश भारत के संदर्भ में प्रासंगिक था, जब इसे उपनिवेशकालीन सीमाओं के आधार पर देश का भौगोलिक केंद्र घोषित किया गया था। लेकिन 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, सीमाओं में भारी बदलाव आया और इसके साथ ही नागपुर का यह केंद्रीय बिंदु तकनीकी व प्रशासनिक दृष्टि से अप्रासंगिक हो गया। आज भी इसे ‘भारत का भौगोलिक केंद्र’ कहा जाता है लेकिन यह वैज्ञानिक रूप से पूरी तरह सटीक नहीं है। क्योंकि यह केवल ब्रिटिश भारत की भौगोलिक रेखाओं पर आधारित था, न कि स्वतंत्र भारत की वर्तमान सीमा-रेखाओं पर। वर्तमान समय में इसकी देखरेख महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (MTDC) द्वारा की जाती है। यद्यपि प्रशासनिक रूप से इसकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है फिर भी इसका ऐतिहासिक महत्व आज भी बना हुआ है।