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    मां सती का गिरा था यहां अंग, इस पवित्र शक्तिपीठ का अद्भुत है इतिहास, जानें क्यो इतना खास और पहुंचने का रास्ता

    Janta YojanaBy Janta YojanaNovember 16, 2025No Comments3 Mins Read
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    Sri Lanka Famous Temples

    Sri Lanka Famous Temples

    Sri Lanka Famous Temples: विश्वभर में स्थित 18 प्रमुख महाशक्तिपीठों में से एक मां शंकरी देवी का मंदिर श्रीलंका में स्थित है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका इतिहास कई पौराणिक कथाओं और कालखंडों से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि मां सती के शरीर का कमर का हिस्सा (कटि भाग) श्रीलंका की एक पहाड़ी पर गिरा था, और उनकी रक्षा के लिए भगवान शिव स्वयं त्रिकोणेश्वर के रूप में यहाँ विराजमान हुए।

    जानें, मंदिर का ऐतिहासिक महत्व 

    शंकरि देवी मंदिर का इतिहास अत्यंत रोचक है। यह मंदिर श्रीलंका के पूर्वी तट पर त्रिंकोमाली के पास स्थित रावणन वेद्दु नाम की पहाड़ी पर बना है। हालांकि 15वीं शताब्दी ईस्वी में पुर्तगालियों ने इस मंदिर पर हमला कर इसे बुरी तरह नष्ट कर दिया था। मंदिर की प्रतिमाओं और अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं को भक्तों ने वर्षों तक एक कुएं में छुपाकर सुरक्षित रखा। बाद में दक्षिण भारतीय चोल शासक कुलकोट्टन ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। पुनर्निर्माण के कुछ वर्षों बाद मंदिर के पास ही भगवान शिव के त्रिकोणेश्वर मंदिर का निर्माण भी कराया गया। हालांकि मूल मंदिर पूरी तरह सुरक्षित नहीं बच सका, लेकिन इसका आधा स्तंभ आज भी मंदिर में मौजूद है और भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

    पौराणिक मान्यताएं और आध्यात्मिक महत्व

    कहा जाता है कि श्रीलंका में लगभग 2500 वर्षों से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि त्रिकोणेश्वर मंदिर की नींव स्वयं ऋषि अगस्त्य द्वारा रखी गई थी। माना जाता है कि भगवान शिव ने स्वप्न में उन्हें मंदिर निर्माण का निर्देश दिया था। देवी शंकरी की पूजा यहां मथुमाई अंबल के रूप में होती है। यह मंदिर इसलिए भी अद्भुत माना जाता है क्योंकि इसे भगवान ने अपने परम भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए बनवाया था।

    प्राकृतिक आश्चर्य और धार्मिक स्थल

    मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, वह प्राकृतिक रूप से अत्यंत सुंदर है। आसपास के क्षेत्र में कई गर्म पानी के झरने, ज्वालामुखीय संरचनाएं और भूकंपीय गतिविधियों वाले क्षेत्र शामिल हैं। ये स्थान पर्यटकों और भक्तों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। मंदिर परिसर में स्थित बिल्व वृक्ष भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि इसी स्थान पर बैठकर भगवान श्रीराम ने भगवान शिव का ध्यान किया था। मंदिर के पास बहने वाली महावेली गंगा भी आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र मानी जाती है। नदी पहाड़ों से बहकर हिंद महासागर में समाहित होती है। भक्त मंदिर दर्शन के बाद नदी के दर्शन अवश्य करते हैं।

    देखें मंदिर तक पहुंचने का मार्ग

    कोनेश्वरम मंदिर तक पहुँचने के लिए पहले कोलंबो से त्रिंकोमाली पहुँचना होता है, जिसके लिए हवाई, सड़क और रेल तीनों मार्ग उपलब्ध हैं। कोलंबो से त्रिंकोमाली के लिए घरेलू उड़ानें सबसे तेज और सुविधाजनक साधन हैं, जबकि बस या टैक्सी द्वारा सड़क मार्ग से भी यात्रा की जा सकती है। इसके अलावा कोलंबो से त्रिंकोमाली के लिए रेल सेवा भी एक आरामदायक विकल्प है। त्रिंकोमाली पहुँचने के बाद मंदिर तक जाना काफी आसान है, जहां आप शहर से मंदिर परिसर तक टैक्सी या ऑटो रिक्शा ले सकते हैं, जो सबसे सरल और सीधा तरीका माना जाता है। इसके साथ ही स्थानीय बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं, जो मंदिर के पास तक पहुँचाती हैं।

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