विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने संसद की स्थायी समिति को बताया है कि इस युद्धविराम में संयुक्त राज्य अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने समिति को बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए युद्धविराम को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्थता के दावे को भारत ने सिरे से खारिज कर दिया है। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से यह कहा गया है।
यह बयान तब आया है जब ट्रंप लगातार यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने भारत पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने में मध्यस्थता की। ट्रंप ने 10 मई को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर कहा था कि उनकी मध्यस्थता के कारण भारत और पाकिस्तान युद्धविराम के लिए सहमत हुए।
संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति की बैठक में सोमवार को विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने साफ़ किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम पूरी तरह से द्विपक्षीय था और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी। मिस्री ने समिति को बताया कि ट्रंप ने अपनी मध्यस्थता का दावा करने से पहले भारत सरकार से कोई अनुमति नहीं ली या परामर्श नहीं किया।
मिस्री ने समिति के सवालों का जवाब देते हुए कहा, ‘यह युद्धविराम भारत की रणनीतिक कार्रवाइयों और कूटनीतिक प्रयासों का परिणाम था। भारत ने अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया। अमेरिका या किसी अन्य देश की इसमें कोई मध्यस्थता नहीं थी।’ उन्होंने यह भी साफ़ किया कि भारत ने अपनी सैन्य और कूटनीतिक ताक़त का इस्तेमाल कर तनाव को नियंत्रित किया, जिसमें मध्य पूर्व के सहयोगी देशों जैसे सऊदी अरब और यूएई के साथ समन्वय शामिल था।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार पैनल के एक सदस्य ने पूछा, ‘ट्रम्प ने सार्वजनिक रूप से कम से कम सात बार दावा किया कि उन्होंने युद्धविराम में मदद की। भारत चुप क्यों रहा?’ एक अन्य ने तीखे सवाल उठाए कि भारत ने ‘ट्रम्प को बार-बार नैरेटिव बनाने क्यों दिया’, खासकर जब वह अपने बयानों में कश्मीर का जिक्र करते रहे।
रिपोर्टों के अनुसार समिति ने यह भी पूछा कि ट्रंप के दावों का भारत की विदेश नीति और क्षेत्रीय कूटनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। मिस्री ने आश्वासन दिया कि भारत की स्थिति साफ़ है और वह अपनी संप्रभुता पर किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा।
विदेश सचिव ने यह भी कहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष पारंपरिक क्षेत्र में था और इस्लामाबाद की ओर से कोई परमाणु संकेत नहीं दिया गया। उन्होंने 10 मई को दोनों देशों के बीच युद्धविराम की घोषणा के नौ दिन बाद समिति को जानकारी दी।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता में सोमवार को हुई समिति की बैठक दो घंटे तक चली। मिस्री ने समिति को बताया कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू करने से पहले पाकिस्तान को सूचित नहीं किया था। राहुल गांधी सहित कई कांग्रेसी नेताओं ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के उस बयान पर निशाना साधा था जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत ने पाकिस्तान को उसकी जमीन पर आतंकी ढांचे को निशाना बनाने के बारे में बताया था। विदेश मंत्रालय ने राहुल गांधी के बयान का जवाब देते हुए कहा कि तथ्यों को गलत रूप से पेश किया गया था।
एक विपक्षी सदस्य ने 22 अप्रैल को पहलगाम हमले में शामिल आतंकवादियों के ठिकाने के बारे में जानना चाहा और यह भी कि भारत उन्हें पकड़ने के लिए क्या कर रहा है।
एक अन्य सदस्य ने पूछा कि सरकार पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने के लिए क्या कदम उठा रही है और भारत अमेरिका पर पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ़ की ग्रे लिस्ट में वापस डालने के लिए दबाव कैसे डालेगा।
विदेश सचिव के खिलाफ ट्रोलिंग की सर्वसम्मति से निंदा
संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति ने सोमवार को विदेश सचिव विक्रम मिस्री के खिलाफ सोशल मीडिया पर की जा रही ट्रोलिंग की सर्वसम्मति से निंदा की। समिति की बैठक में यह मुद्दा तब उठा जब विपक्षी और सत्तापक्ष के सदस्यों ने मिस्री के उस बयान का समर्थन किया, जिसमें उन्होंने भारत-पाक युद्धविराम में अमेरिका की मध्यस्थता से इनकार किया था।
समिति ने कहा कि मिस्री के खिलाफ ट्रोलिंग निंदनीय और राष्ट्रहित के खिलाफ है। कुछ अज्ञात यूज़रों ने मिस्री को भारत की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर करने का आरोप लगाया था, जिसे समिति ने निराधार और प्रायोजित करार दिया। समिति ने सरकार से ऐसी ट्रोलिंग पर अंकुश लगाने और जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।