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    Home » बिहारः क्या वक़्फ़ क़ानून से फंस गए नीतीश
    भारत

    बिहारः क्या वक़्फ़ क़ानून से फंस गए नीतीश

    Janta YojanaBy Janta YojanaApril 5, 2025No Comments5 Mins Read
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    सुबह पांच बजे मस्जिद से अज़ान शुरू होते ही मंदिर से हनुमान चालीसा का पाठ शुरू हो जाता है। दोनों के लाउडस्पीकर पूरे वॉल्यूम पर होते हैं। ये नीतीश कुमार का बिहार है। यहां मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर पाबंदी नहीं है। लेकिन मंदिरों को भी पूरी आजादी है। बिहार में बुलडोजर राज भी नहीं है। नीतीश की सरकार पूरी तरह से बी जे पी की बैसाखी पर निर्भर है। विधान सभा में बी जे पी के 80 और नीतीश की पार्टी जे डी यू के महज़ 43 विधायक हैं। फिर भी नीतीश को मुख्य मंत्री बनाए रखना बी जे पी की मजबूरी है। इसका एक मात्र कारण ये है कि नीतीश के लिए लालू यादव की पार्टी आर जे डी के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। 

    नीतीश सांप्रदायिक नहीं हैं। इसलिए आर जे डी उन्हें स्वीकार करने के लिए हमेशा तैयार रहती है। बी जे पी के साथ सरकार चलाने के बावजूद उन्हें मुसलिम विरोधी नहीं माना जाता। जे डी यू को कई इलाकों में मुसलिम मतदाताओं का वोट भी मिल जाता है। वक़्फ़ क़ानून से मुसलमानों के बीच ध्रुवीकरण तेज होने का अनुमान लगाया जा रहा है। सवाल ये है कि क्या वक़्फ़ क़ानून से नवंबर -दिसंबर में होने वाले विधान सभा चुनाव में नीतीश की पार्टी को नुक़सान होगा। 

    मुसलिम वोट की राजनीति 

    बिहार की आबादी इस समय क़रीब 13 करोड़ होने का अनुमान है। नीतीश सरकार के जातीय सर्वेक्षण 2023 के मुताबिक़ बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब साढ़े 17 फ़ीसदी है। ज़ाहिर है कि मुसलमान अगर एक तरफा मतदान करेंगे तो जे डी यू को कई क्षेत्रों में नुक़सान हो सकता है। ख़ास कर पूर्णिया और अन्य सीमांत क्षेत्रों में जहां कुछ विधान सभा क्षेत्रों में मुसलमानों की आबादी 50 प्रतिशत तक है। केंद्रीय बिहार में भी मुसलमानों की अच्छी खासी करीब 15 से 20 प्रतिशत आबादी है। 

    बी जे पी को मुसलिम वोटों की चिंता नहीं है। लेकिन एन डी ए में शामिल बिहार के अन्य दल जैसे जे डी यू , लोक जन शक्ति पार्टी (राम बिलास पासवान), हिंदुस्तान अवाम पार्टी और इनके नेता नीतीश कुमार,चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुसवाहा मुसलिम विरोधी नहीं माने जाते हैं।

    यह अलग बात है कि 2020 के विधान सभा चुनाव में इन दलों का एक भी मुसलिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका था। लेकिन 2020 में जे डी यू ने 11 मुसलिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। एक भी चुनाव नहीं जीत पाया। इसके बावजूद जे डी यू में मुसलमानों से दूरी बनने की मांग कभी नहीं उठी। इसके बड़ा कारण ये माना जाता है कि कई क्षेत्रों में मुसलमानों के वोट की मदद से जे डी यू के उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई।

    माई पर भी संकटः लालू यादव की पार्टी आर जे डी की ताकत शुरू से ही यादव के साथ मुसलमान रहे हैं। नब्बे के दशक में लालू ने एम वाई अर्थात मुसलिम और यादव समीकरण तैयार किया। करीब 17 प्रतिशत मुसलमान और 14 प्रतिशत यादव के साथ कुछ अन्य पिछड़ी जातियों कि मदद से लालू ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया। 2005 में अति पिछड़ा और अति दलित के नए समीकरण के साथ सवर्णों के समर्थन से नीतीश ने लालू को सत्ता से बाहर कर दिया।

    वक़्फ़ क़ानून के बाद विधान सभा चुनावों में माई फैक्टर आर जे डी के लिए फ़ायदे मंद साबित हो सकता है। लेकिन उनके सामने दो चुनौतियां खड़ी हो चुकी हैं। पहली चुनौती ओवैसी की पार्टी ए आई एम आई एम है। ओवेसी मुस्लिम बहुल इलाक़ों में अपना उम्मीदवार खड़ा करते हैं। 2020 के विधान सभा चुनावों में कुल 19 मुसलमान विधान सभा चुनाव जीते। ओवैसी की पार्टी के 5 उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई। बाद में उनमे से चार आर जे डी में शामिल हो गए। 2020 में सबसे ज़्यादा 8 मुसलमान आर जे डी के टिकट पर जीते। कांग्रेस से टिकट पर  4 और कम्युनिस्ट पार्टी का एक मुसलमान चुनाव जीता। 

    2015 में विधान सभा में 24 मुसलमान थे जो 2020 में घट कर 19 रह गए। चुनाव विश्लेषण के कई आंकड़े बताते हैं कि  2020 में आर जे डी के कई उम्मीदवार ए आई एम आई एम के मुसलिम उम्मीदवारों के वोट काटने से चुनाव हार गए। तब ये आरोप भी लगा था कि ओवैसी को अंदर खाने बी जे पी का समर्थन प्राप्त है और वो आर जे डी गठबंधन का वोट काटने के लिए चुनाव लड़ते हैं। आर जे डी गठबंधन के लिए प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के रूप में एक नई चुनौती खड़ी हो गयी है। प्रशांत ने 2024 के नवंबर में विधान सभा के 4 उप चुनावों में उम्मीदवार खड़ा किया। उनमे से एक मुसलिम उम्मीदवार को सवा लाख से ज़्यादा वोट मिले जिसके चलते आर जे डी का उम्मीदवार हार गया। 

    प्रशांत विधान सभा के चुनावों में 40 मुसलमानो को टिकट देने की बात कर रहे हैं। आरोप है कि प्रशांत को भी बी जे पी का गुप चुप समर्थन मिलता है। ओवैसी के बाद प्रशांत सीधे तौर पर आर जे डी के माई के लिए संकट खड़ा कर सकते हैं। वक़्फ़ क़ानून जे डी यू को नुक़सान पहुंचा सकता है। लेकिन ओवैसी और प्रशांत मुसलिम वोट बांट कर आर जे डी गठबंधन के बहुमत के सपने को चकनाचूर कर सकते हैं। 

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