राजनीति में परिवार वाद पर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने हाल में एक तीखा व्यंग किया। उन्होंने कहा कि अब एक जमाई आयोग बनाया जाना चाहिए। तेजस्वी बिहार के कुछ नेताओं के जमाई यानी दामादों को कई आयोगों में महत्वपूर्ण पद दिए जाने पर टिपण्णी कर रहे थे। लेकिन जे डी यू सरकार के मंत्री अशोक चौधरी ने राजनीति में लालू / तेजस्वी के परिवारवाद को उछाल कर उन्हें भी कटघरे में खड़ा कर दिया। तेजस्वी के परिवार के तीन लोग संसद और विधानसभा में हैं। देश की ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों में परिवारवाद राजनीति के लिए चुनौती बनती जा रही है। बिहार कोई अपवाद नहीं है। उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव,तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन महाराष्ट्र में शरद पवार और ठाकरे परिवार के साथ साथ तथा जम्मू कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार सहित अनेक राज्यों में प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का नियंत्रण परिवारों के पास है। और तो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती तथा बंगाल में ममता बनर्जी, जिन्होंने विवाह नहीं किया, वो भी परिवारवाद से बच नहीं पायीं। केंद्र में कांग्रेस पर यह आरोप लगता रहा है लेकिन बी जे पी भी अब परिवारवाद से अछूती नहीं रही।एक नया ट्रेंड ये है कि एक परिवार के कई सदस्य अलग अलग पार्टियों में घुस कर विधानसभा और संसद तक पहुच जाते हैं।
“जमाई, जीजा, मेहरारू”
अशोक चौधरी ने पत्रकारों से कहा कि सायन को आर एस एस कोटा से यह पद दिया गया है। केंद्र में मंत्री जीतन राम मांझी के दामाद देवेंद्र कुमार मांझी को बिहार अनुसूचित जाति आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया।केंद्र में पूर्व मंत्री स्वर्गीय राम विलास पासवान के दामाद और वर्तमान केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के बहनोई मृणाल पासवान को बिहार अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष का पद दिया गया।मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव दीपक कुमार की पत्नी रश्मि रेखा वर्मा को बिहार राज्य महिला आयोग की सदस्यता मिली। तेजस्वी ने इन नियुक्तियों पर चुटकी लेते हुए कहा कि सरकार को “ जमाई,जीजा,मेहरारू (पत्नी के लिए स्थानीय भाषा में प्रयोग किया जाने वाला शब्द)” आयोग बना देना चाहिए ताकि और नेताओं के रिश्तेदारों को एडजस्ट किया जा सके।लेकिन अशोक चौधरी ने राजनीति में लालू / तेजस्वी के परिवारवाद का सवाल उठा दिया। तेजस्वी और उनके भाई तेज प्रताप विधायक हैं। बहन मीसा भारती राज्यसभा सदस्य हैं। एक और बहन रोहिणी आचार्य लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। लालू यादव के साले भी राजनीति में हैं। लालू और राबड़ी देवी तो मुख्यमंत्री रह ही चुके हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब तक अपवाद हैं। उनके बेटे निशांत कुमार राजनीति में नहीं हैं, लेकिन जे डी यू के कई नेता निशांत को राजनीति में लाने की वकालत कर रहे हैं।
मुलायम का परिवार पर भरोसा
स्टालिन, चंद्रबाबू नायडू भी अलग नहीं
ग़ैर हिंदी भाषी राज्यों में भी इसी तरह की प्रवृत्ति दिखायी देती है। तमिलनाडु में पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि के बेटे स्टालिन के हाथों में अब डी एम के पार्टी की कमान है। वे ख़ुद राज्य के मुख्यमंत्री हैं और कनिमुझी सहित उनके परिवार के कई सदस्य पार्टी और विधानसभा तथा संसद की शोभा बढ़ाते रहे हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू , पूर्व मुख्यमंत्री एन टी रामाराव के दामाद हैं। उनकी साली राज्य में कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं। आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी , पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री वाई एस राज शेखर रेड्डी के बेटे थे। जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला के पिता फ़ारूख़ अब्दुला और दादा शेख़ अब्दुला भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं। राज्य की मुख्य विपक्षी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती के पिता मुफ़्ती मोहम्मद सईद भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विवाह नहीं किया। उनकी कोई संतान तो नहीं है, लेकिन वो अपने भाई को नेतृत्व संभालने के लिए तैयार कर रही हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को अपने भतीजे पर विश्वास है। उन्हें कभी पार्टी से हटा दिया जाता है तो कभी पुनः स्थापित कर दिया जाता है।
बीजेपी का परिवारवाद
एक विश्लेषण के अनुसार 2019 में चुने गए सांसदों में से करीब 30 प्रतिशत पुराने नेताओं के परिवार से थे। इसी तरह 2014 में वंश परंपरा से आने वाले सांसदों में करीब 44 प्रतिशत बी जे पी से चुने गए थे। विश्लेषण के अनुसार ज्यादातर पार्टियों में आंतरिक लोक तंत्र नहीं है। पार्टियां किसी एक नेता के प्रभाव पर चलती हैं। पार्टियों को स्थापित करने वाले नेताओं के बाद उनके परिवार को आसानी से नेतृत्व मिल जाता है। कांग्रेस पर अगर राहुल गांधी का दबदबा है तो बी जे पी इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छाया से बाहर जाने की स्थिति में नहीं है। ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों का उदय उस क्षेत्र की प्रमुख वंचित जाति के नेताओं के सामाजिक- आर्थिक आंदोलन से हुआ। उन्हीं नेताओं का परिवार, जाति और जाति समूह के विकास का पर्याय बन गया। बिहार और उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाति यादव की राजनीतिक और आर्थिक महत्वाकांक्षा ने लालू यादव और मुलायम सिंह यादव को पिछड़ों तथा अल्पसंख्यकों का नेता बना दिया। तमिलनाडु के द्रविड़ आंदोलन से करुणानिधि स्थापित हुए। उनके बाद उनके बेटे स्टालिन को आसानी से डी एम के पार्टी का नेतृत्व मिल गया। उड़ीसा में बीजू पटनायक के बाद उनके बेटे नवीन पटनायक 20 साल तक सत्ता में रहे। एक शोध के मुताबिक राजनीति में परिवार वाद बढ़ने का एक बड़ा कारण समाज में व्याप्त सामंती सोच है, जिसमे राजा के बाद उसकी संतान को गद्दी मिल जाती थी। हिंदू धर्म में व्याप्त जाति वाद भी एक बड़ा कारण है। सदियों से दबी कुचली जातियों का कोई नेता जब राजनीति में दबदबा बना लेता है तो उन जातियों के लोग उसके परिवार को अपना नेता मान लेते हैं। लेकिन सबसे ऊपर है अशिक्षा। अशिक्षित लोग जातियों में ही ख़ुद को सुरक्षित महसूस करते हैं।