
ईरान इसराइल तनाव के बीच जिस मुद्दे से सबसे ज्यादा बवाल मचा हुआ है वो है ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनई की जान पर मंडरा रहा ख़तरा। इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू खुलेआम ख़ामेनई को हत्या की धमकी दे चुके हैं। नेतन्याहू का मानना है कि ख़ामेनई की मौत दोनों देशों के तनाव को ख़त्म कर सकती है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि अगर यह धमकी सच हुई और ख़ामेनई को मार दिया गया तो ईरान का अगला नेता कौन होगा? क्या ईरान में हुई धार्मिक क्रांति के पहले की शाही शासन की वापसी होगी, या फिर कोई नया धार्मिक नेता ही सत्ता संभालेगा?
आयतुल्लाह अली ख़ामेनई की जान पर भारी संकट मंडरा रहा है। हालाँकि, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पहले नेतन्याहू को ख़ामेनई पर हमला करने के लिए मना कर दिया था लेकिन बाद में ट्रंप अपनी बात से थोड़ा पलट गए और कहा कि ख़ामेनई अभी हमारे निशाने पर तो नहीं हैं, लेकिन हम ऐसा कर सकते हैं तो अगर ख़ामेनई को वाक़ई कुछ हो गया तो ईरान की सत्ता कौन संभालेगा, यह सवाल अब उठ रहा है। तो ख़ामेनई के उत्तराधिकारी के तौर पर अभी जिन लोगों की चर्चा चल रही है उनमें यही पाँच लोग हैं जिन्हें बाद में ईरान के सुप्रीम लीडर का ताज़ मिल सकता है। यह हैं मुजतबा ख़ामेनई, यह अली रज़ा आराफ़ी, सादिक़ लारिज़ानी, हसन खुमैनी और रज़ा पहलवी। लेकिन ये पांचों हैं कौन?
मुजतबा ख़ामेनई
आयतुल्लाह अली ख़ामेनई के बेटे मुजतबा ख़ामेनई और यही ईरानी सत्ता के पहले दावेदार हैं। कहा जाता है कि पिता की सत्ता पर बेटे का पहला हक होता है। अगर यह माना गया तो अगले सुप्रीम लीडर मुजतबा हो सकते हैं। मुजतबा एक धर्मगुरु हैं और आम तौर पर पब्लिक में कम ही दिखाई देते हैं। लेकिन ईरान की सत्ता के अंदर उनका काफ़ी दबदबा माना जाता है। बहुत से जानकार मानते हैं कि ख़ामेनई उन्हें अगला सर्वोच्च नेता बनाने की तैयारी कर रहे हैं। मुजतबा का ईरान की ताक़तवर सेना IRGC और उनके पिता ख़ामेनई के दफ्तर में भी अच्छा-खासा प्रभाव है। लेकिन उनका धार्मिक दर्जा बहुत ऊँचा नहीं है, और चूँकि ईरान की मौजूदा सत्ता पूरी तरह से धर्मगुरुओं के हाथ में ही है, इसलिए इनकी दावेदारी कुछ कमज़ोर पड़ सकती है।
लेकिन दूसरी तरफ़ कुछ और कारण हैं जो मुजतबा ख़ामेनई की दावेदारी को मज़बूत कर सकते हैं। इसकी वज़ह यह है कि अंदरूनी और बाहरी चुनौतियों से जूझ रहे ईरान में हालात पहले से ही ख़राब हैं। देश की आर्थिक स्थिति ख़राब है क्योंकि पश्चिमी देशों ने उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। इसी बीच, ईरान और इसराइल के बीच तनाव भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय में मुजतबा ख़ामेनई और भी ज़्यादा अहम हो गए हैं क्योंकि वह राजनीति, धर्म और सेना, तीनों के बड़े लोगों के बीच एक मज़बूत कड़ी का काम कर रहे हैं। लेकिन लाइन में और भी लोग हैं। उनके बारे में भी जान लेते हैं और देखते हैं कि वो ईरानी सत्ता के कितने पक्के दावेदार हो सकते हैं।
अली रज़ा आराफ़ी
ईरानी सत्ता के दूसरे दावेदार हैं अली रज़ा आराफ़ी। अली रज़ा की दावेदारी इसलिए भी मज़बूत मानी जा रही है क्योंकि अली रज़ा पर ख़ामेनई बहुत ज़्यादा विश्वास करते हैं। अगर ख़ामेनई की हत्या हुई तो सत्ता में उथल-पुथल मच जाएगी। यदि ऐसा हुआ तो IRGC सत्ता हथिया सकता है, और रज़ा का नंबर पहला हो सकता है।
अली रज़ा खुद भी राजनीति और सुरक्षा से जुड़े मामलों में सक्रिय हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने कोई बहुत बड़ी सरकारी या धार्मिक भूमिका नहीं निभाई है। चूँकि उनका परिवार सत्ता के क़रीब माना जाता है, इसलिए वे भी भविष्य में कोई बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। अली रज़ा ईरानी राजनीति में एक प्रभावशाली युवा चेहरा माना जाता है, जो अभी तो पर्दे के पीछे से काम कर रहे हैं लेकिन धीरे-धीरे ताक़तवर होते जा रहे हैं। अली की राजनीतिक यात्रा महज़ 19 साल की उम्र में ही शुरू हो गई थी। वे एक्सपेडिएंसी काउंसिल के सचिवालय में शामिल हो गए थे। रज़ा ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है और युवा नेतृत्व को लेकर खास रुचि रखते हैं। अपने पिता की राजनीतिक पहुँच और सेना तथा धार्मिक संस्थानों से जुड़ाव के कारण अली रज़ा की सत्ता में अच्छी खासी पहुँच है। हालाँकि, उनके राजनीतिक प्रभाव की मुख्य वजह अभी भी उनके परिवार का असर ही है। अली रज़ा अभी तक किसी ऊँचे पद पर नहीं हैं, लेकिन वे सरकार, धार्मिक संस्थानों और सेना के बीच एक बड़ी भूमिका निभाते हैं।
सादिक़ लारिज़ानी
ईरानी सत्ता के तीसरे दावेदार हैं सादिक़ लारिज़ानी। पूर्व न्यायपालिका प्रमुख और विशेषज्ञों की सभा के सदस्य सादिक़ लारिजानी एक वरिष्ठ धर्मगुरु और कट्टरपंथी नेता हैं। उनकी धार्मिक और राजनीतिक साख, ख़ामेनई के साथ उनकी नज़दीकी, इन्हें भी एक मज़बूत दावेदार बनाती है। सादिक़ लारिज़ानी ईरान के एक कट्टर धार्मिक नेता और केंद्रीय राजनीतिक हस्ती हैं। वह मार्च 1963 में इराक़ के नजाफ़ में पैदा हुए और धर्मशास्त्र की पढ़ाई क़ोम से की। अगस्त 2009 में सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने सादिक़ को चीफ़ जस्टिस नियुक्त किया। 2009 से 2019 तक वह इस पद पर रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने सत्ता के राजनीतिक विरोधियों और प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ बेहद कड़ा रुख अपनाया और बहुत से लोगों को मृत्युदंड दिया। 2018 में उन्हें ईरान की शक्तिशाली सलाहकार परिषद का अध्यक्ष बनाया गया। उसके अलावा, वे गार्जियन काउंसिल के सदस्य भी रहे। लारिज़ानी परिवार को ईरान की ‘राजनीतिक डाइनैस्टी’ कहा जाता है। उनके भाई अली, मोहम्मद जवाद और बाकी सदस्य भी उच्च पदों पर रहे हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में उनपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। लेकिन फिर भी वे ईरानी शासन में एक मज़बूत खिलाड़ी बने हुए हैं।
हसन खुमैनी
ईरानी सत्ता की दावेदारी में जो नाम चौथे नंबर पर है वो है हसन खुमैनी का। हसन खुमैनी ईरान के पहले सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी के पोते हैं। इनका जन्म 1972 में हुआ था। मुजतबा ख़ामेनई और सादिक़ लारिज़ानी के मुक़ाबले हसन खुमैनी एक उदार और आधुनिक सोच वाले धर्मगुरु माने जाते हैं। इनके विचार युवाओं के विचार से मेल खाते हैं इसलिए ईरान के युवा इन्हें बहुत पसंद करते हैं। खुमैनी ने धर्म की पढ़ाई 1993 में पूरी की और 1995 से अपने दादा के मकबरे की देखरेख कर रहे हैं। वे धार्मिक शिक्षा देने के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर भी अपनी राय खुलकर रखते हैं। खासतौर पर उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति अहमदीनेज़ाद की कई नीतियों की आलोचना की थी। हसन खुमैनी ने राजनीति में भी क़दम रखने की कोशिश की। 2016 में उन्होंने ‘असेंबली ऑफ़ एक्सपर्ट्स’ का चुनाव लड़ना चाहा, लेकिन गार्जियन काउंसिल ने उनकी उम्मीदवारी खारिज कर दी। 2020 में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ा क्योंकि कहा गया कि सुप्रीम लीडर ख़ामेनई को अभी खुमैनी पद के लिए लायक नहीं लगते हैं। खुमैनी एक धार्मिक नेता होने के बाद भी लोकतांत्रिक और शांत सोच के समर्थक हैं। हालांकि कट्टरपंथी ताक़तें और IRGC उन्हें पसंद नहीं करतीं, फिर भी यह देश में बदलाव लाने वाले एक उम्मीदवार नेता माने जाते हैं।
रज़ा पहलवी
आयतुल्लाह ख़ामेनई की सत्ता के आखिरी दावेदार हैं रज़ा पहलवी। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका और इसराइल पूरा ज़ोर लगा रहे हैं कि ईरान में धार्मिक शासन का अंत हो जाए और ईरान की सत्ता रज़ा पहलवी के हाथों में आ जाए। आखिर क्यों?
दरअसल, रज़ा पहलवी ईरान के आखिरी राजा मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी के बेटे हैं जिन्हें शाह के नाम से जाना जाता है। रज़ा पहलवी इस समय 64 साल के हैं। 1979 में जब ईरान में इस्लामी क्रांति हुई, तब शाह का शासन खत्म हो गया था और उनका पूरा परिवार देश छोड़कर भाग गया था। उस समय रज़ा पहलवी युवा थे। तब से वह अमेरिका में निर्वासन में रह रहे हैं। रज़ा पहलवी आज खुद को इस्लामी शासन का विरोधी बताते हैं और वे ईरान में धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र लाना चाहते हैं। उन्हें पश्चिमी देशों का समर्थन भी मिला है, लेकिन खुद ईरान में उन्हें जनता का समर्थन मिलना बहुत मुश्किल है। साथ ही, ईरान की ताक़तवर सेना IRGC कभी नहीं चाहेगी कि रज़ा वापस आकर सत्ता संभालें। हालाँकि, अगर कभी मौजूदा इस्लामी शासन गिरता है और पश्चिमी देश दखल देते हैं, तो वह रज़ा पहलवी के नाम पर ही मोहर लगाएंगे।
रज़ा पहलवी के दादा रज़ा शाह पहलवी ने 1925 में एक सैन्य तख्तापलट कर ईरान की सत्ता हासिल की थी और देश में कई बदलाव किए जैसे कि सड़कें और स्कूल बनवाए। लेकिन उन्होंने नाज़ी जर्मनी से नज़दीकी बना ली, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन और रूस ने उन्हें सत्ता से हटा दिया। इसके बाद उनके बेटे मोहम्मद रज़ा पहलवी 1941 में शाह बने और 1979 तक शासन किया। उन्होंने ‘श्वेत क्रांति’ नाम से सामाजिक और आर्थिक सुधार किए, जिसमें महिलाओं के अधिकार और ज़मीन सुधार जैसे काम थे। इससे पश्चिम में उनकी बहुत तारीफ़ हुई, लेकिन ऐसे लोग पहलवी से नाराज़ भी हुए जिनके लिए धर्म बहुत प्यारा था।
मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासन के दौरान ईरान में जिस तरह से पश्चिमी संस्कृति और खुलेपन का व्यापक प्रभाव बढ़ा उससे वहां के धार्मिक नेताओं में ग़ुस्सा बढ़ता गया। और उन्होंने ईरान के कम्यूनिस्टों के साथ मिलकर शाह के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया और 1979 में एक क्रांति के बाद शाह को सत्ता छोड़कर ईरान से भाग जाने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद ईरान में इस्लामिक गणराज्य बना और आयतुल्लाह खुमैनी सत्ता में आए। आज रज़ा पहलवी ईरान के बाहर लोकतंत्र की बात करते हैं, लेकिन उनके पास फिलहाल देश की सत्ता संभालने का एक ही रास्ता है और वो यह कि ईरान इसराइल के साथ चल रहे युद्ध में पराजित हो जाए और मौजूदा सुप्रीम नेता ख़ामेनई मारे जाएँ, जिसके बाद अमेरिका दबाव बनाए।
सुप्रीम लीडर कैसे चुने जाते रहे हैं?
ईरान के संविधान के अनुसार, अगर सर्वोच्च नेता की मृत्यु हो जाती है या वे देश चलाने में असमर्थ हो जाते हैं, तो ‘विशेषज्ञों की सभा’ तुरंत एक बैठक बुलाती है। इस सभा में 88 सदस्य होते हैं, जो देश के धार्मिक और क़ानूनी जानकार लोग होते हैं। इस सभा का काम होता है पहले किसी अस्थायी नेता को चुनना और फिर सोच-विचार करके नया स्थायी सर्वोच्च नेता तय करना। नए सुप्रीम लीडर बनने के लिए व्यक्ति को कुछ ज़रूरी शर्तें पूरी करनी होती हैं। वह इस्लामी क्रांति के विचारों का समर्थन करता हो। धार्मिक और राजनीतिक मामलों की अच्छी समझ हो। देश की सेना और अहम पदों को संभालने की क्षमता रखता हो।
जिस भी व्यक्ति को चुना जाएगा, उसे कम से कम 45 सदस्यों का वोट मिलना ज़रूरी है। विशेषज्ञों की सभा आमतौर पर ऐसे उम्मीदवार को चुनने की कोशिश करती है जिस पर ज़्यादातर लोग सहमत हों, ताकि देश में कोई विवाद या सत्ता की लड़ाई न हो।
अगर कोई उत्तराधिकारी सही नहीं लगा, तो विशेषज्ञों की सभा एक नेतृत्व परिषद बना सकती है, जिसमें धार्मिक, सैन्य, और राजनीतिक नेता शामिल होंगे। अगर IRGC ने सत्ता हथियाई तो ईरान में सैन्य शासन आ सकता है, जो जनता के लिए ठीक नहीं होगा। पश्चिमी हस्तक्षेप से शासन गिरने पर ईरान में अराजकता फैल सकती है, जैसा इराक और लीबिया में हुआ। लेकिन अगर रज़ा पहलवी की सत्ता संभालने की स्थिति बनी तो जाहिर है कि सुप्रीम नेता के चुने जाने की प्रक्रिया इनके मामले में लागू नहीं होगी।