अमेरिकी मीडिया में इस बात की बड़ी चर्चा है कि इसराइल की मंशा ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई को मारने की थी, जिस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वीटो लगा दिया, यानी रोक लगा दी। इसराइल और ईरान के बीच युद्ध के दौरान कई ईरानी नेताओं की जान जा चुकी है। इनमें ईरान की रिवोल्यूशनरी गार्ड के हेड होसैन सलामी, ईरानी फौज के चीफ मोहम्मद बाघेरी के साथ अली शमखानी भी शामिल हैं। अली शमखानी ईरानी सुप्रीम लीडर खामेनेई के मुख्य सलाहकार थे।
गौरतलब है कि इसराइल के हमले के बाद शुरू हुए ईरान इसराइल युद्ध के बाद दोनों ही देशों में काफ़ी तबाही मच चुकी है। इसराइली हमले में सैकड़ों ईरान वासियों की जान जा चुकी है, वहीं ईरान के पलटवार में इसराइल का महत्वपूर्ण हाइफ़ा पोर्ट ध्वस्त हो गया है। इसराइल ने ईरान पर हमला ऑपरेशन राइज़िंग लॉयन के तहत किया था। इसके बाद ईरान के सुप्रीम लीडर ने बिना किसी झिझक के इसराइली हमलों का जवाब देना शुरू किया था। यहाँ तक कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की परमाणु समझौते को लेकर दी गई धमकियों को भी नज़रअंदाज कर दिया था।
इतने कड़े फ़ैसले लेने वाले अली खामेनेई ईरान में उसी परंपरा के वाहक हैं जिसकी शुरुआत क्रांतिकारी नेता अयातुल्लाह खोमैनी ने शुरू की थी। ईरान के मशहद के धार्मिक परिवार में 1939 में पैदा हुए अली खामेनेई के पिता इस्लाम के विद्वान जवाद खामेनेई हैं। अली खामेनेई ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1962 में की थी जब वे शाह मुहम्मद रजा पहलवी के खिलाफ़ अयातुल्लाह खामेनेई की धार्मिक क्रांति में शामिल हुए थे। जल्द ही अली खामेनेई अयातुल्लाह खोमैनी के अनुयायी बन गये।
अपनी धार्मिक और राजनीतिक विचारों एवं महत्वाकांक्षाओं की वजह से खामेनेई को 1960 से 1970 के दौरान कई बार गिरफ्तार भी किया गया। 1981 में एक मौका ऐसा आया जब उनके भाषण के दौरान बम ब्लास्ट हुआ और उनका दायाँ हाथ लकवाग्रस्त हो गया। 1989 में अयातुल्लाह खोमैनी के निधन के बाद जब उनका कोई सीधा उत्तराधिकारी नहीं था, अली खामेनेई को नये सुप्रीम लीडर के तौर पर चुना गया।
इस समय अली खामेनेई के अधिकार क्षेत्र में न केवल न्यायपालिका बल्कि सेना और काफ़ी ऊंचे दर्जे की माना जाने वाला रिवोल्यूशनरी गार्ड भी आती है। खामेनेई ईरान की 12 सदस्यों वाली गार्डियन काउंसिल के भी मुखिया हैं। देश का मीडिया भी उनके प्रभाव क्षेत्र में काम करता है।
ईरान की तमाम विदेश नीतियों के सर्वेसर्वा खामेनेई हैं। साथ ही सभी आवश्यक आर्थिक फ़ैसले भी वे ही लेते हैं। अयातुल्लाह खामेनेई के पास यह शक्ति भी है कि वे युद्ध अथवा विराम की घोषणा कर सकें। खामेनेई के कुछ मित्र देशों में चीन और रूस आते हैं। माना जाता है कि अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ में भी खामेनेई को पसंद करने वाले लोग हैं।
जब से खामेनेई सत्ता में आए हैं पश्चिमी देशों से उनका रिश्ता कोई खास सद्भाव वाला नहीं रहा है। दोनों ही पक्ष एक दूसरे के प्रति शंका से भरे हुए रहे हैं। अपनी चिंता खामेनेई कई बार ज़ाहिर कर चुके हैं। 2018 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने परमाणु समझौते को छोड़ने की बात की थी तो खामेनेई ने बयान दिया था, “मैंने पहले दिन से कहा था: अमेरिका पर भरोसा मत करो।”
खामेनेई का कहना है कि अमेरिका ईरान के साथ संरक्षक-ग्राहक संबंध चाहता है, जैसा कि पहलवी राजशाही के दौरान था। अमेरिका ईश्वर की सत्ता को एक मखमली क्रांति से हटाना चाहता है।
इसराइल के प्रति उनका क्रोध उनके सोशल मीडिया पोस्ट में कई बार नज़र आया है। एक बार उन्होंने होलोकॉस्ट को लेकर भी संदेह दिखाया था। 2014 की अपनी इस पोस्ट में उन्होंने लिखा था कि “होलोकॉस्ट एक ऐसी घटना है जिसकी वास्तविकता अनिश्चित है, और अगर यह हुआ है, तो यह भी अनिश्चित है कि यह कैसे हुआ।”
ख़ामेनेई का यह स्टैंड इसराइल को बेहद चुभता है। ग़ज़ा के प्रति ख़ामेनेई की सहानुभूति भी इसराइल को पसंद नहीं आती है। ईरान पर ताज़ा हमले को सही ठहराते हुए इसराइली नेता बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान पर आरोप लगाया कि “ईरान बहुत कम समय में परमाणु हथियार बना सकता था– यह एक साल भी हो सकता था, या कुछ महीने भी हो सकते थे।”
हालांकि ईरान ने बार-बात परमाणु हथियार के आरोप को ख़ारिज किया है।
अली खामेनेई इसराइल और अमेरिका को एक ही सिक्के का दो पहलू कहते हैं। सुप्रीम लीडर की अगुआई में ईरान ने हमेशा फिलिस्तीन की आज़ादी की बात की है। वे ग़ज़ा के नागरिकों के मानवाधिकार को लेकर भी सचेत रहे हैं, मगर ईरान के सुप्रीम लीडर को अपने ही वतन में महिलाओं के अधिकारों को दबाने का आरोपी माना जाता है। हालांकि अपने एक सोशल मीडिया ट्वीट में खामेनेई महिलाओं को समाज और परिवार में “फूलों” की तरह जरूरी बताते हुए यह कह चुके हैं कि औरतें घरेलू और सामाजिक जिम्मेदारियों को सुंदरता और गरिमा के साथ निभाती हैं, पर ईरान में स्त्री अधिकारों की लड़ाई काफ़ी लंबी है।
खामेनेई जिस इस्लामी ढांचे के तहत शासन करते हैं उसमें महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार तो है पर उनके लिए हिजाब और नैतिकता के सख्त नियमों का पालन करना बेहद ज़रूरी है। खामेनेई फेमिनिज़्म के मौलिक मूल्यों को भी खारिज करते हैं और उसे इस्लामी मूल्यों के ख़िलाफ़ ठहराते हैं। उनका कहना है कि इस्लामी नियम महिलाओं को अधिक सशक्त बनाते हैं, अगर महिलाएँ अपनी सीमा में रहकर इनका पालन करें।
2022 में हिजाब को लेकर विरोध-प्रदर्शन करने वाली क्रांतिकारी माशा अमीनी की हिरासत में हुई मौत के बाद देश भर में महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया था। खामेनई ने इसे “विदेशी साजिश” और “प्लैन्ड” करार दिया था। साथ ही उन्होंने सरकारी मोरल पुलिस की बर्बरताओं का भी बचाव किया था। खामेनेई बार-बार पश्चिमी देशों पर ईरानी महिलाओं के अधिकारों को ग़लत तरीक़े से प्रस्तुत करने का आरोप लगा चुके हैं। विरोध प्रदर्शनों के बावजूद, खामेनेई ने सुधारों के बजाय सख्त नीतियों पर जोर दिया, जिससे महिलाओं के अधिकारों पर बहस और तनाव बना हुआ है।
86 साल के खामेनेई के व्यक्तित्व के अलग-अलग पहलू हैं। एक पहलू अगर ग़ज़ा के लोगों के मानवाधिकार के प्रति चिंतित है तो दूसरे पर अपने ही देश की आधी आबादी को जबरन दबाने का आरोप लग सकता है।